हेनरी फेयोल कौन थे?

हेनरी फायोल का जन्म 1841 ई. में एक मध्य वर्गीय फ्रांसीसी परिवार में हुआ था। खदान इंजीनियरिंग में स्नातक करने के बाद फायोल की एक खदान कंपनी में इंजीनियर के पद पर नौकरी लग गयी। यह 1860 की बात है। फायोल की जिस खदान कंपनी में नौकरी में नौकरी लग गयी। यह 1860 की बात है। फायोल की जिस खदान कंपनी में नौकरी लगी उसका नाम था, एस.ए.कमेंटरी-फूरचंबाल्ट। 1888 में तरक्की करते हुए फायोल कंपनी के प्रबंध निदेशक पद पर पहुंच गये। इसी पद पर रहते हुए वह 1918 में सेवानिवृत्त हुए। हालांकि वह 84 वर्ष की उम्र में 1925 में अपनी मृत्यु के पहले तक कंपनी के प्रबंध निदेशक बने रहे।
उनके प्रबंध निदेशक रहने के दौरान वह खदान कंपनी, फायोल के प्रयासों के चलते दिवालिएपन की कगार से उबर कर मजबूत वित्तीय हैसियत वाली कंपनी बन गयी। जैसा कि उर्विक्क करते हैं – वह सफलता जो फायोल ने अपने प्रबंध निदेशक के पद पर रहते हासिल की फ्रांस के औद्योगिक इतिहास में एक अतिरंजना पूर्ण घटना है।
फायोल ने अपनी इस शानदार सफलता का श्रेय खुद की प्रतिमा को नहीं दिया बल्कि उस प्रबंधन प्रक्रिया को दिया जो उन्होंने बहुत मेहनत और कल्पना के संयोग से विकसित की थी और जिसका इस्तेमाल उन्होंने पूरी सजगता के साथ किया था। फायोल ईसाई दर्शन और एडम स्मिथ के लेखन से बहुत प्रभावित था। शायद यही कारण है कि उनकी कार्य संयोजन की प्रक्रिया में एडम स्मिथ के श्रम विभाजन सिद्धांत को खोजा जा सकता है। मगर इस प्रभाव के बावजूद फायोल की प्रबंधन संबंधी अधिकांश अवधारणाएं एक प्रबंधक की हैसियत से किए गये उनके मौलिक चिंतनों से उपजी है।
फायोल जमकर और लगातार लिखते रहने वाले व्यक्ति थे। वह तकनीकी और वैज्ञानिक मामलों के साथ-साथ प्रबंधन पर भी प्रचुर मात्रा में लिखते थे। खनन इंजीनियरिंग और भूगर्भ शास्त्र पर दस किताबों के लिखने के अलावा उन्होंने प्रबंधन पर तमाम पर्चे लिखे। उनकी लिखी किताबों में सबसे बेहतरीन किताब सामान्य और औद्योगिक प्रबंधन (1916) है। इस अकेली किताब के प्रकाशन से उनकी ख्याती बहुत बढ गयी। यह किताब आज तक पुनर्प्रकाशित हो रही है। बङी तादाद में उनके पर्चे लोक सेवाओं के सुधार को लेकर हैं। उनके पर्चे राज्य में प्रशासन के सिद्धांत का (जो कि 1923 में संपन्न लोक प्रशासन की द्वितीय अंतरराष्ट्रीय कांग्रेस में प्रस्तुत किया गया था) लोक प्रशासन के सिद्धांतीकरण में बहुत बङा योगदान है।