जब मैं बङगाँव समझौते की धाराओं को पढता हूँ, तो मेरा सिर लज्जा से झुक जाता है। यह कथन किसका था?

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जब मैं बङगाँव समझौते की धाराओं को पढता हूँ, तो मेरा सिर लज्जा से झुक जाता है। यह कथन किसका था?

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“जब मैं बङगाँव समझौते की धाराओं को पढता हूँ, तो मेरा सिर लज्जा से झुक जाता है।” यह कथन वारेन हेस्टिंग्ज का था।

बड़गाँव समझौता – जनवरी, 1779 ई. में किया गया था। यह समझौता प्रथम मराठा युद्ध (1775-82 ई.) के दौरान भारत में ईस्ट इंडिया कम्पनी की सरकार की ओर से कर्नल काकबर्क और मराठों के मध्य हुआ।

वारेन हेस्टिंग्ज – बंगाल में ब्रिटिश शासन की स्थापना के बाद कंपनी के साम्राज्य की उत्तरोत्तर वृद्धि होती गई। बढते हुए साम्राज्य में प्रशासनिक पूनर्गठन आवश्यक था । अतः कंपनी सरकार ज्यों-ज्यों साम्राज्य का विस्तार करती रही, त्यों-त्यों अपने क्षेत्रों में प्रशासनिक व्यवस्था का पुनर्गठन भी करती रही। साम्राज्य विस्तार और पुनर्गठन की इस प्रक्रिया में कंपनी सरकार ने भारत में कुछ ऐसे गवर्नर-जनरल भी भेजती रही, जिन्होंने विस्तृत साम्राज्य को संगठित करने में अपनी रुचि दिखाई। वॉरेन हेस्टिंग्ज को कंपनी ने 1772में बंगाल का गवर्नर बनाकर भारत भेजा था, यह गवर्नर के पद 1773ई. तक रहा। इसके बाद 1773में हेस्टिंग्ज को गवर्नर जनरल बना दिया गया जो 1785 ई. तक रहा।

वॉरेन हेस्टिंग्ज बंगाल का प्रथम गवर्नर जनरल था। 1772से 1793 के बीच विभिन्न गवर्नर-जनरलों द्वारा किये गये प्रशासनिक परिवर्तनों में से वारेन हेस्टिंग्ज द्वारा किये गये प्रशासनिक परिवर्तन इस प्रकार हैं-

वॉरेन हेस्टिंग्ज द्वारा प्रशासन का पुनर्गठन (1773-1785)

वारेन हेस्टिंग्ज 1750 में कंपनी का कर्मचारी बनकर कलकत्ता आया था। अपनी योग्यता एवं लगन के कारण वह निरंतर उन्नति करता गया और 1772 में उसे बंगाल का गवर्नर नियुक्त कर दिया गया। किन्तु उस समय कंपनी के सम्मुख अनेक समस्याएँ उपस्थित थी। क्लाइव द्वारा स्थापित द्वैध शासन के बुरे परिणाम स्पष्ट दिखाई देने लगे थे। कंपनी के अंग्रेज कर्मचारियों तथा भारतीय नायब दीवानों ने अत्याचारों द्वारा अपनी जेबें गर्म करना तथा जनता का तीव्र शोषण करना आरंभ कर दिया था। कंपनी के संचालकों को भी विश्वास हो गया था कि कंपनी के राजस्व का एक बहुत बङा भाग कंपनी के कर्मचारी अपने निजी अधिकार में रख लेते हैं। अतः 1771 में संचालक समिति ने बंगाल कौंसिल के अध्यक्ष को आदेश दिया कि-

  • कंपनी स्वयं दीवानी का कार्य करे तथा राजस्व वसूली का कार्य कंपनी के कर्मचारियों द्वारा किया जाय।
  • नायब दीवान तथा उसके अधीन कार्य करने वाले समस्त कर्मचारियों को पदच्युत कर दिया जाय।
  • दोनों नायब दीवानों को बंदी बनाकर उन पर मुकदमा चलाया जाय, ताकि नायब दीवानों द्वारा किये गये धन का अपहरण व घूसखोरी का पता लगाया जा सके।

 

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