तृतीय आंग्ल-मराठा युद्ध कब हुआ ?

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तृतीय आंग्ल-मराठा युद्ध कब हुआ ?

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तृतीय आंग्ल-मराठा युद्ध 1817-18 ई. में हुआ।

तृतीय आंग्ल-मराठा युद्ध(Third Anglo-Maratha War)1817-1818ई.

अगस्त, 1805 में वेलेजली भारत से चला गया। उसके स्थान पर लार्ड कार्नवालिस को पुनः भारत भेजा गया। किन्तु यहाँ आने के कुछ ही महीनों बाद गाजीपुर में उसकी मृत्यु हो गयी। अतः जार्ज बार्लो को गवर्नर जनरल नियुक्त किया गया। कार्नवालिस व जार्ज बार्लो दोनों ने देशी राज्यों के प्रति अहस्तक्षेप की नीति का पालन किया और मराठों के प्रति उदारता की नीति अपनाई। फलस्वरूप 22 नवंबर,1805 को सिंधिया से एक नई संधि की गई, जिसके अनुसार उसे ग्वालियर व गोदह के दुर्ग तथा उसका उत्तरी चंबल का भू-भाग लौटा दिया। कंपनी ने राजपूत राज्यों को अपने संरक्षण में लेने का विचार त्याग दिया। फलस्वरूप राजपूत राज्यों पर पुनः मराठों का प्रभाव स्थापित हो गया। इसी प्रकार 7जनवरी, 1806 को होल्कर के साथ भी संधि करके उसे उसके अधिकांश क्षेत्र लौटा दिये। तत्पश्चात् 1807 में लार्ड मिण्टो गवर्नर-जनरल बनकर आया। उसने भी अहस्तक्षेप की नीति का अनुसरण किया। इन तीनों की नीतियों के फलस्वरूप मराठों ने अपनी शक्ति पुनः संगठित कर ली। इधर पिंडारी भी, जो आरंभ में मराठों के सहयोगी थे, अपनी स्वयं की शक्ति बढा रहे थे। ऐसी परिस्थितियों में 1813 में लार्ड हेस्टिंग्ज गवर्नर जनरल बनकर भारत आया। लार्ड हेस्टिंग्ज मराठा शक्ति को पूरी तरह समाप्त कर राजपूत राज्यों पर ब्रिटिश संरक्षण स्थापित करना चाहता था। लार्ड हेस्टिंग्ज ने सर्वप्रथम पिंडारियों की शक्ति को नष्ट करने की योजना बनायी, क्योंकि उसे भय था कि कहीं पिंडारियों से युद्ध करने से पूर्व 27मई,1816 को भोंसले के साथ तथा 5नवंबर,1817 को सिंधिया के साथ समझौता किया गया। इस समझौते में उन्होंने पिंडारियों को कुचलने के लिए अंग्रेजों को समर्थन देने का वादा किया तथा सिंधिया ने चंबल नदी से दक्षिण पिश्चिम राज्यों पर से अपना प्रभाव हटा दिया।

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