उपनयन संस्कार को यज्ञोपवीत संस्कार के नाम से भी जाना जाता है। यज्ञोपवीत शब्द ( यज्ञ +उपवीत से मिलकर बना है।)इसके दो अर्थ हैं ।
उपनयन संस्कार जिसमें जनेऊ पहना जाता है तथा विद्यारंभ होता है। उपनयन संस्कार में मुंडन तथा पवित्र जल में स्नान भी करवाया जाता था। अतः इस संस्कार को जनेऊ पहनाने का संस्कार भी कहा जाता है।
सूत का बना पवित्र धागा जिसे यज्ञोपवीतधारी व्यक्ति बाएँ कंधे के ऊपर तथा दाईं भुजा के नीचे पहनते हैं। यह संस्कार यज्ञ द्वारा पूर्ण होता है अतः इसे यज्ञोपवीत संस्कार भी कहा जाता है।
उपनयन संस्कार (जनेऊ धारण करना) का अधिकार केवल ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य को दिया गया था। शूद्रों को उपनयन संस्कार का अधिकार नहीं था।
द्विज-
वेदों के अध्ययन का अधिकार द्विजों को था। द्विज-दुबारा जन्म लेना। द्विज – ब्राह्मण ,क्षत्रिय, वैश्य को कहा गया है।द्विज को जनेऊ धारण करने के लिए अलग -अलग ऋतु का पालन करना पङता था।
समाज पुरुष प्रधान था तथा महिलाओं की स्थिति में ऋग्वैदिक काल में गिरावट आई थी परंतु परवर्ती काल की तुलना (बाद के काल)में स्थिति अच्छी हो गई थी।साक्ष्य के अनुसार- ऋग्वेदमें पुत्रों के जन्म की कामना की गई है लेकिन पुत्रियों के जन्म को हतोत्साहित नहीं किया गया है।
अथर्ववेदमें पुत्रों के जन्म की कामना की गई है। लेकिन पुत्रोयों के जन्म को दुख का कारण माना गया है।
मैत्रायणी संहिता में- स्त्री की तुलना मदिरा,विष, पासे से की गई है।
याज्ञवलक्य-गार्गी संवाद में याज्ञवलक्य एक वाद-विवाद में गार्गी को डांट कर चुप करा देते हैं।