संस्कृत नाटककारों में भास का नाम सर्वप्रथम उल्लेखनीय है। वे कालिदास के पूर्ववर्ती हैं। सबसे पहले 1909 ई. में गणपति शास्त्री ने भास के तेरह नाटकों को खोज निकाला था। उसके बाद भास के विषय में चर्चा प्रारंभ की गयी। अभी तक भास विषयक जो सामग्री मिलती है, उससे स्पष्ट हो जाता है, कि भास ही लौकिक संस्कृत के प्रथम साहित्यकार हैं।
भास के समय के विषय में में मतभेद है। विद्वानों ने ईसा पूर्व चौथी शताब्दी से लेकर सातवीं शताब्दी ईस्वी तक की तिथियाँ भास के लिये प्रस्तावित की है। संभवतः उनका आविर्भाव ईसा पूर्व पाँचवी-चौथी शती में हुआ था।
भास की रचनायें निम्नलिखित हैं-
- प्रतिमा
- अभिषेक
- पंचरात्र
- मध्यम व्यायोम
- दूतघटोत्कच
- कर्णभार
- दूतवाक्य
- उरुभंग
- बालचरित
- दरिद्रचारुदत्त
- अविमारक
- प्रतिज्ञायौगन्धरायण
- स्वप्नवासवदत्ता
प्रतिमा तथा अभिषेक की कथायें रामायण से ली गयी हैं और इनमें क्रमशः राम वनवास से लेकर रावण वध तथा राम के अभिषेक की घटनायें वर्णित हैं। पंचरात्र, मध्यम व्यायोम, दूत घटोत्कच, कर्णभार, दूतवाक्य तथा उरुभंग के कथानक महाभारत से लिये गये हैं।
बालचरित में कृष्ण का चरित वर्णित है। दरिद्र चारुदत्त में निर्धन ब्राह्मण चारुदत्त तथा वसंतसेना की प्रेम कथा है। अविमारक में अविमारक तथा कुरंगी के प्रेम का वर्णन है। प्रतिज्ञायौगंधरायण तथा स्वप्न वासवदत्ता का संबंध कौशाम्बी नरेश उदयन तथा अवन्तिराज की पुत्री वासवदत्ता के प्रणय प्रसंगों से है। स्वप्नवासवदत्ता भारत का सर्वाधिक प्रसिद्ध नाटक है।
भास ने अपने नाटकों के माध्यम से सामाजिक जीवन के विभिन्न अंगों का अच्छा चित्रण प्रस्तुत किया है। शैली सीधी तथा सरल है तथा नाटकों का मंचन आसानी से किया जा सकता है। समस्त पदों अथवा अलंकारों के भार से उनके नाटक बोझिल नहीं होने पाये हैं।
References : 1. पुस्तक- प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति, लेखक- के.सी.श्रीवास्तव
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