खिलजी वंश का संस्थापक जलालुद्दीन फिरोज खिलजी

अन्य संबंधित महत्त्वपूर्ण लेख-
- दिल्ली सल्तनत के राजवंश का इतिहास
- खिलजी वंश का इतिहास
- गुलाम वंश से संबंधित महत्त्वपूर्ण प्रश्न एवं उत्तर
- भारत पर तुर्क आक्रमणः महमूद गजनवी
जलालुद्दीन फिरोज खिलजी ( 1290-98 ई. )-
बुगरा खां की सलाह पर कैकुबाद ने जलालुद्दीन फिरोज खिलजी को शासन संभालने के लिये दिल्ली बुलाया। कैकुबाद ने जलालुद्दीन को शाइस्ताखाँ की उपाधि दी लेकिन जलालुद्दीन फिरोज खिलजी ने 1290 में कैमूर्स/क्यूमर्स को सुल्तान घोषित किया । किन्तु कुछ माह बाद कैमूर्स की हत्या कर जलालुद्दीन ने खिलजी वंश की स्थापना की।
फिरोज खिलजी शासक बनने से पहले आरिज-ए-मुमालिक ( सैन्य विभाग का प्रमुख ) था।
इसने 70 वर्ष की आयु में कैकुबाद द्वारा निर्मित किलोखरी महल ( दिल्ली ) में राज्याभिषेक कराया तथा किलोखरी को ही राजधानी बनाया।
किलोखरी महल कैकुबाद ने बनवाया था।
जलालुद्दीन फिरोज खिलजी ने उदार धार्मिक नीति अपनाई। उसने घोषणा करी कि शासन का आधार शासितों ( प्रजा ) की इच्छा होनी चाहिए। ऐसी घोषणा करने वाला यह प्रथम शासक था। अपनी उदार नीति के कारण जलालुद्दीन ने अपने शत्रुओं को भी उच्च पद दिये थे, जो निम्नलिखित हैं-इन्होंने जलालुद्दीन फिरोज खिलजी के विरुद्ध कई विद्रोह किये फिर भी इन विद्रोहियों को पद से नहीं हटाया।
- दिल्ली का कोतवाल – फकरुद्दीन
- अवध का इक्तेदार- मल्लू खाँ
अमीर खुसरो की पुस्तक मिफताह-उल-फतह के अनुसार जलालुद्दीन खिलजी कहता है कि “अनेक हिन्दू ढोल नगाङे बजाते हुये मेरे महल के पास से गुजरते हैं तथा मूर्ती विसर्जन करते हैं, लेकिन मैं कुछ नहीं कर पाता। “
जलालुद्दीन खिलजी द्वारा किये गये अभियान-
- 1291 ई. में जलालुद्दीन ने रणथंभौर अभियान किया लेकिन जीत नहीं पाया।वह कहता है कि “वह मुस्लिम सरदारों के खून के बदले इस किले को नहीं जीतना चाहता। इस किले का महत्त्व मुस्लिम सेना के बाल के बराबर है। “
- 1292 ई. में अब्दुल्ला के नेतृत्व में मंगोलों ने आक्रमण किया जिसे जलालुद्दीन द्वारा पराजित किया गया। इसी अभियान के दौरान उलूग नामक मंगोल सेनानायक के नेतृत्व में 4000मंगोल सैनिकों ने इस्लाम गृहण किया। जलालुद्दीन ने इन्हें अपनी सेना में शामिल किया। दिल्ली के समीप रहने का स्थान दिया। ( वर्तमान में मंगोलपुरी नामक स्थान ) इसके साथ ही जलालुद्दीन ने उलूग से अपनी पुत्री का विवाह किया।
- आगे चलकर ये धर्मांतरित मंगोल नवमुस्लिम कहलाये।
- 1292 ई. में ही मंडौर ( जोधपुर ) को जीता तथा सल्तनत में मिलाया।
- 1294 ई. में अली गुर्शास्प ( अलाउद्दीन खिलजी ) द्वारा मालवा व भिलसा ( मध्यप्रदेश ) को जीता। मालवा अभियान के समय अलाउद्दीन खिलजी ने उज्जैन, धारा नगरी, चंदेरी के मंदिरों को नष्ट किया। इस अभियान से प्रशन्न होकर अपने भतीजे एवं दामाद अली गुर्शास्प को कङा मानिकपुर (उत्तरप्रदेश) के साथ-2 अवध का इक्तेदार बनाया।
धार्मिक सहिष्णुता का अपवाद –
- जलालुद्दीन फिरोज खिलजी धार्मिक सहिष्णु व्यक्ति था, लेकिन 1291-92 में सुल्तान ने ईरानी संत सीद्दी मौला को सुल्तान की आलोचना करने पर मृत्यु दंड दिया।
जलालुद्दीन फिरोज खिलजी का अंत-
- 1296 ई. में अली गुर्शास्प ने सुल्तान की अनुमति लिये बिना ही देवगिरि ( मध्यप्रदेश ) के रामचंद्रदेव पर आक्रमण कर बङी मात्रा में धन लूटा। सुल्तान से क्षमा मांगने व धन सौंपने के बहाने अली गुर्शास्प ने अवध में अपने विश्वास पात्र इख्तियारुद्दीन हूद की सहायता से सुल्तान की हत्या करवा दी। तथा स्वयं सुल्तान ( अलाउद्दीन खिलजी ) बन गया।
बरनी का कथन-
- अलाउद्दीन खिलजी के राज्याभिषेक पर बरनी का कथन है कि, “शहीद सुल्तान (फिरोज खिलजी) के कटे मस्तष्क से अभी रक्त टपक ही रहा था कि, शाही चंदोबा अलाउद्दीन खिलजी के सिर पर रखा गया और उसे सुल्तान घोषित कर दिया गया।”
Reference : https://www.indiaolddays.com/