अमेरिका की क्रांति के अंतिम दिनों में इंग्लैण्ड की राजनीति में परिवर्तन आ गया था, जार्ज तृतीय के राजा बनने के एक वर्ष के भीतर ही पिट को प्रधानमंत्री का पद छोङना पङा और ग्रेनविल नया प्रधानमंत्री बना। ग्रेनविल और उसके स्थायी मंत्री टाउनशेड ने यह तय किया कि उपनिवेशों में अधिक जागरूक शासन की व्यवस्था करनी चाहिये।
इसके लिये दो उपाय सोचे गये – नाविक और व्यापारिक नियमों का कङाई से पालन करवाना और अमेरिकी व्यापार और उद्यम से संबंधित नए कानून बनाना। नई व्यवस्था आरंभ करने में पहला कदम 1764 ई. में शुगर एक्ट था, जिसका ध्येय व्यापार को नियंत्रित किए बिना आय बढाना था।
यह पुराने मोलसेज एक्ट का ही संशोधित रूप था। संशोधित शुगर एक्ट के अनुसार विदेशी रम का आयात बंद कर दिया गया, सभी स्थानों से आए शीरे पर साधारण कर लगा दिया और शराब, रेशम, कॉफी तथा अनेक विलास-सामग्रियों पर भी कर लगाए गये।
सीमा-शुल्क अधिकारियों को यह आदेश दिया गया कि वे अधिक दृढता से काम करें। अमेरिकी समुद्र में स्थित ब्रिटिश युद्ध-पोतों को कहा गया, कि वे तस्कर – व्यापारियों को पकङ लें और शाही अधिकारियों को रिट्स ऑफ असिस्टेंस, (विस्तृत अधिकारों के वारण्ट) द्वारा संदिग्ध स्थानों की तलाशी लेने का अधिकार दे दिया गया।
उपनिवेशों के लिये इस नियम की व्यापकता तथा इसके पालन के लिये उठाए गये कदम, दोनों ही असंतोषजनक थे, क्योंकि इससे उनके आर्थिक हितों को नुकसान पहुँच रहा था। एक पीढी से भी अधिक समय न्यू इंग्लैण्ड वाले अपने रम की भट्टियों के लिये अधिकांश शीरा फ्रांसीसी दामों पर शक्कर ही मोल ले सकते थे और न रम बनाने के लिए शीरा ही ला सकते थे। इसके विपरीत यह नियम अंग्रेज शक्कर-उत्पादकों के लिये लाभदायक था, अतः उनका उत्तेजित होना स्वाभाविक ही था।
कर लगाने का यह नया अधिकार शीघ्र ही विवाद का विषय बन गया। इसी विवाद ने अन्ततः अमेरिकी उपनिवेशों को इंग्लैण्ड से अलग कर दिया।
1. पुस्तक- आधुनिक विश्व का इतिहास (1500-1945ई.), लेखक - कालूराम शर्मा