फ्रांस में रॉब्सपियर(आतंक का राज्य)कौन था
फ्रांस में रॉब्सपियर(आतंक का राज्य)कौन था
कन्वेन्शन के शासन की शुरुआत के साथ ही राजधानी पेरिस और प्रांतीय राजधानियों में प्रतिदिन लोगों को सूली पर चढाया जाता रहा। उन लोगों में अधिकांश ऐसे थे,जिन्होंने क्रांति का नेतृत्व किया था अथवा क्रांति को सफल बनाने में प्रांणों की बाजी लगा दी थी।
फिर भी, उस युग के लिये आतंक शब्द का प्रयोग नहीं किया गया था, क्योंकि वह सब कुछ गणतंत्र के शत्रुओं को दंड देने के नाम पर हुआ था। आतंक का राज्य तो अब शुरु होने वाला था। इसमें व्यक्तिगत और राजनीतिक लाभ के लिये अपने ही साथियों को मौत के घाट उतारा जा रहा था।
फ्रांसीसी क्रांति के कारण क्या थे?
10 अगस्त, 1792 के बाद में व्यावहारिक दृष्टि से फ्रांस में दो सरकारें थी – एक कम्यून अथवा पेरिस की सरकार और दूसरी कन्वेन्शन अथवा फ्रांस की सरकार। अब तक दोनों ने मिलकर काम किया था, परंतु अब दोनों में बिगाङ उत्पन्न हो गया। कम्यून के नेता थे – हर्बर्ट और शोमेते।
ये दोनों ही अत्यधिक उग्रवादी, बर्बर और अधार्मिक थे। एक तरह से पेरिस के वास्तविक शासक थे। उनके नेतृत्व में कम्यून ने कन्वेन्शन को विवश किया कि वह फ्रांस को ईसाइयत के प्रभाव से मुक्त करने का प्रयत्न करने लगे और विवश कन्वेन्शन ने इसके लिये काफी प्रयास भी किया। अब ईश्वर के स्थान पर बुद्धि की पूजा की जाने लगी। कन्वेन्शन और जनरक्षा समिति ने अपनी इच्छा के विरुद्ध यह सब कुछ स्वीकार कर लिया, परंतु रॉब्सपियर इससे संतुष्ट न था।
रॉब्सपियर
रॉब्सपियर जनरक्षा समिति का सर्वाधिक प्रभावशाली सदस्य था। वह हर्बर्ट और दांतो, दोनों गुटों का सफाया करना चाहता था। पहले हर्बर्ट और उसके साथियों पर धर्म विरोधी कार्यों का आरोप लगाकर उन्हें बंदी बना लिया गया और 24 मार्च, 1793 को उन सभी को गिलोटीन पर चढा दिया गया।
इसके बाद अब रक्तपात को बंद करके उदार नीति का प्रतिपादन करने लगे थे। हर्बर्ट और दांतो की मृत्यु के बाद रॉब्सपियर का जैकोबिन दल, कम्यून और जनरक्षा समिति पर एकाधिकार कायम हो गया। 5 अप्रैल, 1794 से लेकर 27 जुलाई तक अर्थात् लगभग 100 दिन तक रॉब्सपियर ने वास्तविक अधिनायक की भाँति शासन किया।
वह एक निपुण ढोंगी था। एक प्रांतीय वकील के रूप में उसने जीवन आरंभ किया था। फिर उसने जैकोबिन दल में अपना प्रांतीय वकील के रूप में उसने जीवन आरंभ किया था। फिर उसने जैकोबिन दल में अपना प्रभाव बढाया। वह अवसरवादी था और ठीक अवसर पर अपने शत्रुओं पर वार करता था।
पूर्ण सत्ता हाथ में आते ही रॉब्सपियर ने उन सभी लोगों को गिलोटीन पर चढाना शुरू कर दिया, जो उसके लिये अवांछनीय तथा खतरनाक थे अथवा हो सकते थे। इसके लिये उसने जूरी के सदस्य भी बदल दिये ताकि जूरी हत्याओं के सिलसिले में बाधक सिद्ध न हों।
उसके अल्प शासनकाल में लगभग, 1,400 व्यक्तियों को प्राण दंड दिया गया, परंतु यही बात उसके पतन का कारण बनी। कन्वेन्शन तथा जनरक्षा समिति के सदस्यों को भी अपने प्राणों का भय सताने लगा और उन लोगों ने महा आतंक के नेता रॉब्सपियर का अंत करने का निश्चय कर लिया। 27 जुलाई, 1794 को उसे बंदी बना लिया गया।
कम्यून की भीङ उसे कारागार से छुङाकर ले गई, परंतु रात्रि में सेना ने घमासान लङाई के बाद उसे और उसके साथियों को बंदी बना लिया और कन्वेन्शन के आदेश से उसी रात्रि में उन सभी को गिलोटीन पर चढा दिया गया। इस प्रकार फ्रांस में आतंक के राज्य का अंत हुआ।
1. पुस्तक- आधुनिक विश्व का इतिहास (1500-1945ई.), लेखक - कालूराम शर्मा