संत पीपा का इतिहास
पीपा – पापी, राजस्थान में गागरोण के खींची राजपूत राजा थे। वे भी बाल्यकाल से ईश्वर भक्ति में लीन रहते थे तथा गागरोण की गद्दी ग्रहण करने के बाद तो उनकी यह प्रवृत्ति उत्तरोत्तर बढती गयी। अंत में वे भी काशी जाकर रामानंद के शिष्य बन गये। कहा जाता है कि रामानंद ने उन्हें माया त्याग कर साधुओं की सेवा करने का आदेश दिया था।
अतः काशी से लौटकर उन्होंने अपना राजसी वैभव त्याग कर साधु संतों की सेवा करने लगे। एक वर्ष बाद पीपा के विशेष आग्रह पर रामानंद ने अपने शिष्यों – कबीर, रैदास आदि के साथ गागरोण आये और कुछ दिन विश्राम करके द्वारिका चले गये। इसी समय पीपा अपने राज्य को त्याग कर गुरु-मंडली में शामिल हो गये। द्वारिका से वे काशी गये और फिर घूमते-फिरते गागरोण आकर एक गुफा में रहने लगे।
पीपा उच्चकोटि के संत थे और गुरु की महत्ता को स्वीकार करते थे। ईश्वर भक्ति को मोक्ष प्राप्ति का प्रमुख साधन मानते थे। वे मूर्ति-पूजा व भक्ति के बाह्य आडंबरों के विरोधी थे। जातिगत भेद-भाव व ऊँच-नीच की भावना में उनका विश्वास नहीं था। उनके अनुसार ईश्वर की दृष्टि में सभी प्राणी समान हैं।
References : 1. पुस्तक - राजस्थान का इतिहास, लेखक- शर्मा व्यास