शिहाबुद्दीन अहमद प्रथम (1422-1446 ई.) | Shihaabuddeen ahamad pratham | Shihabuddin Ahmed I
शिहाबुद्दीन अहमद प्रथम – इसने सर्वप्रथम गुलबर्गा के स्थान पर बीदर को राजधानी बनाने का निर्णय लिया। गुलबर्गा के षङयंत्रपूर्ण बीदर की आदर्श जलवायु और बहमनी साम्राज्य के केन्द्र में स्थित होने के कारण बीदर को गुलबर्गा के स्थान पर महत्त्व दिया गया। बहमनी साम्राज्य की इस नवीन राजधानी को मुहम्मदाबाद नाम दिया गया। इस राजधानी परिवर्तन के बाद बहमनी दरबार में अफाकियों या विदेशियों का प्रभाव क्रमशः तेजी से बढता गया। सुल्तान अहमद ने खलाफ हसन (जिसने उसे सिंहासनारूढ होने में सहायता प्रदान की थी) को वकील-ए-सल्तनत या प्रधानमंत्री पद पर नियुक्त किया और मलिक-उत-तुज्जर की उपाधि से विभूषित किया। खलाफ हसन की पदोन्नति से दक्खिनियों और परदेशियों के मध्य वैमनस्य बहुत उग्र हो गया। अहमद के शासनकाल में इस दलगत राजनीति ने सांप्रदायिक रूप सा ले लिया, क्योंकि सुल्तान ने ईरान से शिया संतों को भी आमंत्रित करना प्रारंभ कर दिया था, जबकि दक्खिनी सुन्नी मुसलमान थे। इसका बहमनी साम्राज्य की संस्कृति और राजनीति दोनों पर बहुत दूर तक प्रभाव पङा।
अपने पूर्वजों की भाँति अहमद को भी विजयनगर के साथ संघर्ष करना पङा। विजयनगर ने वेलम सरदार को सहायता प्रदान करके तेलंगाना में बहमनी सेना को पराजित कर दिया। परंतु 1425 ई. में सुल्तान ने इस पराजय का बदला ले लिया और वेलम सरदार को पराजित करके, तेलंगाना में अपनी स्थिति को पुनः सुदृढ कर लिया। 1426 ई. में सुल्तान ने माहूर के राजा के विद्रोह का दमन किया और 1429 ई. में मालवा की होशंगशाही सेनाओं को पराजित किया। इसी बीच उसने गुजरात और मालवा के मध्य संघर्ष का लाभ उठाना चाहा और कुछ गुजराती प्रदेशों की विजय के प्रयास किए। परंतु बहमनी सेना किसी भी मोर्चे पर सफल नहीं हो सकी और अंततः सुल्तान को गुजरात के साथ समझौता करना पङा। यह महत्त्वपूर्ण तथ्य है कि गुजरात के विरुद्ध इन निरर्थक युद्धों से बहमनी साम्राज्य की प्रतिष्ठा को भयंकर क्षति पहुँची। इन सैनिक अभियानों के कारण दक्खिनियों और अफाकियों के मध्य वैमनस्य की दरार भी बढती गयी। सुल्तान अहमद इस दलगत राजनीति को रोकने के स्थान पर अधिकाधिक रूप से अफाकियों को प्रश्रय देता गया। उसका शासनकाल न्याय तथा धर्मनिष्ठता के लिये प्रख्यात था। अतः उसे इतिहास में अहमदशाह वली या संत भी कहा जाता है।