रघुजी भौंसले को पराजित होने के कारण अंग्रेजों से कौनसी संधि करनी पङी थी?

रघुजी भौंसले को पराजित होने के कारण अंग्रेजों से कौनसी संधि करनी पङी थी?
रघुजी भौंसले को पराजित होने के कारण अंग्रेजों से देवगांव की संधि करनी पङी थी।
असीरगढ व अरगाँव के युद्धों में मराठा पूर्णरूप से पराजित हुए। अरगाँव में पराजित होने के बाद 17सितंबर,1803 को भोंसले ने अंग्रेजों से देवगढ की संधि कर ली। इस संधि के अंतर्गत भोंसले ने वेलेजली की सहायक संधि की सभी शर्तों को स्वीकार कर लिया। केवल एक शर्त,राज्य में कंपनी की सेना रखने संबंधी शर्त स्वीकार नहीं की और वेलेजली ने भी इस शर्त को स्वीकार करने के लिए जोर नहीं दिया। इस संधि के अनुसार कटक व वर्धा नदी के आस-पास के क्षेत्र अंग्रेजों को दे दिये गये।
देवगाँव की संधि जिसे ‘देवगढ़ की संधि’ के नाम से भी जाना जाता है। यह संधि 17 दिसम्बर, 1803 ई. को रघुजी भोंसले और अंग्रेजों के बीच हुई थी। द्वितीय मराठा युद्ध के दौरान आरगाँव की लड़ाई (नवम्बर, 1803) में अंग्रेजों ने रघुजी भोंसले को पराजित किया था, उसी के फलस्वरूप यह संधि हुई।
देवगांव की संधि की शर्तें निम्नलिखित थी-
- इस संधि के अनुसार बरार के भोंसला राजा ने अंग्रेजों को कटक का प्रान्त दे दिया, जिसमें बालासौर के अलावा वरदा नदी के पश्चिम का समस्त भाग शामिल था।
- भोंसला राजा को अपनी राजधानी नागपुर में ब्रिटिश रेजीडेण्ट रखने के लिए मजबूर होना पड़ा। उसने निजाम अथवा पेशवा के साथ होने वाले किसी भी झगड़े में अंग्रेजों को पंच बनाना स्वीकार कर लिया।
- अंग्रेजों ने उससे यह वायदा भी लिया कि, वह अपने यहाँ कम्पनी सरकार की अनुमति के बिना किसी भी यूरोपीय अथवा अमेरिकी को नौकरी नहीं देगा।
- व्यावहारिक दृष्टिकोण से इस संधि ने भोंसले को अंग्रेजों का आश्रित बना दिया।