तृतीय आंग्ल-मैसूर युद्ध कब समाप्त हुआ?

तृतीय आंग्ल-मैसूर युद्ध 1792 में समाप्त हुआ।
तृतीय आंग्ल मैसूर युद्ध – टीपू के समय लङे गये तृतीय आंग्ल मैसूर युद्ध का कारण अंग्रेजों ने टीपू के ऊपर इस आरोप को लगा कर तैयार किया कि उसने फ्रांसीसियों से अंग्रेजों के विरुद्ध गुप्त समझौता किया है तथा त्रावणकोर पर उसने (टीपू) आक्रमण किया।
अंग्रेजों ने मराठों और निजाम के सहयोग से श्रीरंगपट्टनम् स्थित किले को घेरकर उसे संधि के लिए मजबूर किया।
अंग्रेजों और टीपू के बीच मार्च 1792 में श्रीरंगपट्टनम् की संधि संपन्न हुई। संधि की शर्तों के अनुसार टीपू को अपने राज्य को अपने राज्य का आधा हिस्सा मिला अंग्रेजों और उसके सहयोगियों को देना था। साथ ही युद्ध के हर्जाने के रूप में टीपू को तीन करोङ रुपये अंग्रेजों को देना था।
श्रीरंगपट्टनम् की संधि में यह भी शामिल था कि जब तक टीपू तीन करोङ रुपये नहीं देंगे तब तक उसके दो पुत्र अंग्रेजों के कब्जे में रहेंगे।
तृतीय आंग्ल मैसूर युद्ध के परिणाम स्वरूप मैसूर आर्थिक तथा सामरिक रूप से इतना कमजोर हो गया कि टीपू के लिए इसे अधिक दिनों तक स्वतंत्र रखना मुश्किल हो गया।
तृतीय आंग्ल मैसूर युद्ध के बारे में यह कथन सिद्ध है कि बिना अपने मित्रों को शक्तिशाली बनाये हमने अपने शत्रु को कुचल दिया। लार्ड कार्नवालिस
आंग्ल मैसूर युद्धों का वर्णन –
प्रथम आंग्ल मैसूर युद्ध(1767-69ई.) – यह युद्ध अंग्रेजों की आक्रामक नीति का परिणाम था। हैदरअली ने अंग्रेजों को करारा जवाब देने के उद्देश्य से मराठे तथा निजाम से संधि कर एक संयुक्त सैनिक मोर्चा बनाया। हैदरअली के नेतृत्व वाले मोर्चे ने अंग्रेजों के मित्र राज्य कर्नाटक पर आक्रमण किया परंतु 1767ई. में हैदर और निजाम तिरुवन्नमलई, संगम में पराजित हुए…अधिक जानकारी
द्वितीय आंग्ल मैसूर युद्ध(1780-84ई.) – इस युद्ध के समय एक बार फिर हैदर ने निजाम और मराठों से अंग्रेजों के विरुद्ध संधि कर ली। 1773ई. में अंग्रेजों ने मैसूर में स्थित फ्रांसीसी कब्जे वाले माहे पर आक्रमण कर अधिकार कर लिया जो हैदर के लिए एक खुली चुनौती थी। 1780ई. में हैदरअली ने कर्नाटक पर आक्रमण कर द्वितीय आंग्ल-मैसूर युद्ध की शुरूआत की, उसने अंग्रेज जनरल बेली को बुरी तरह परास्त कर आरकाट पर अधिकार कर लिया…अधिक जानकारी