बॉस्टन में ब्रिटिश सैनिकों की उपस्थिति ने उपद्रवकारियों को और भी अधिक उत्तेजित कर दिया। जून, 1767 ई. में ब्रिटिश संसद ने एक और कठोर कदम उठाया। उसने न्यूयार्क की विधानसभा को इसलिये निलंबित कर दिया कि अंग्रेज सैनिकों के आवास की संतोषजनक व्यवस्था नहीं कर पाई थी।
यह कदम उपनिवेशियों की स्वाधीनता के मूल तत्वों पर कुठाराघात था। दोनों पक्षों के मध्य असंतोष बढता गया और अंत में 5 मार्च, 1770 ई. के दिन बॉस्टन नगर में सात अंग्रेज सैनिकों और नगरवासियों के बीच झगङा हो गया। पहले तो इस झगङे में बर्फ और मुक्कों से काम लिया गया।परंतु अंत में घबराए हुए ब्रिटिश सिपाहियों ने गोली चला दी। इसमें तीन नागरिक मारे गये। उपनिवेशों के उपद्रवकारियों को इंग्लैण्ड के विरुद्द भङकाने वाले आंदोलन में इससे बहुमूल्य सहयोग मिला।
एक अमेरिकी इतिहासकार ने लिखा है, कि इस घटना को बॉस्टन हत्याकाण्ड की संज्ञा देकर इसे नाटकीय ढंग से ब्रिटिश ह्रदयहीनता और नृशंसता के प्रमाण-रूप में चित्रित किया गया, जिसका बहुत अनुकूल प्रभाव पङा।
अमेरिका और अंग्रेज व्यापारियों के विरोध के सामने ब्रिटिश संसद ने झुकना ही अच्छा समझा और इस अधिनियम को संशोधित कर दिया। संशोधन के अनुसार चाय के अलावा अन्य सभी वस्तुओं पर से टाउनशेड शुल्कों को हटा दिया गया। चाय-कर भी जार्ज तृतीय के विशेष जोर देने पर रखा गया। उसका मानना था, कि अधिकार की रक्षा के लिये एक कर तो रहना ही चाहिये। जो भी हो, इससे स्थिति काफी शांत हो गयी।

1. पुस्तक- आधुनिक विश्व का इतिहास (1500-1945ई.), लेखक - कालूराम शर्मा