ब्रह्म मेरिजेज एक्ट(1872) (Brahma Marriage Act)
ब्रह्म मेरिजेज एक्ट (brahm marriages act) – 1886 में ब्रह्म समाज दो दलों में विभाजित हो गया था – आदि ब्रह्म समाज तथा भारतीय ब्रह्म समाज। भारतीय ब्रह्म समाज, समाज सुधार का अधिक पक्षपाती था। इसने विवाह की प्रचलित कुरीतियों को दूर कर उसमें परिवर्तन किया।
ब्रह्म समाज की स्थापना किसने एवं कब की?
इस परिवर्तन के फलस्वरूप कई अंतर्जातीय विवाह और विधवा विवाह सम्पन्न हुए।किन्तु कानून विशेषज्ञों का कहना था कि हिन्दू कानून के अनुसार ऐसे विवाह वैध नहीं थे। अतः इन्हें वैध रूप देने के लिए एक विशेष अधिनियम की आवश्यकता थी।
केशवचंद्र सेन के अनुरोध पर 1868 में हेनरी मेन ने एक विधेयक प्रस्तुत किया, जिसे 1872 में पार कर दिया गया।

ब्रह्म मेरिजेज एक्ट के अनुसार अन्तर्जातीय विवाह और विधवा विवाह हो सकते थे तथा बाल विवाह व बहुविवाह का निषेध कर दिया गया। इस अधिनियम में यह भी कहा गया कि 14 वर्ष से कम लङकी और 18 वर्ष से कम लङके का विवाह नहीं हो सकेगा।
ब्रह्म मेरिजेज एक्ट में अधिक सफलता प्राप्त नहीं हुी, क्योंकि इस अधिनियम के अनुसार यह घोषणा करनी पङती थी, कि वे हिन्दू नहीं हैं। अतः यह अधिनियम समाज सुधार के क्षेत्र में कोई विशेष सफल नहीं हुआ।
