प्रथम कर्नाटक युद्ध(1746-48ई.) किस-किस के बीच हुआ

भूमिक – मुगलों के पतन के बाद राजनैतिक प्रभुत्व प्राप्त करने के लिए देशी शासकों के साथ-साथ विदेशी शक्तियां भी संघर्षरत हो गयी। देशी ताकतों में मुख्य रूप से मराठे थे तो विदेशी ताकतों में असली लड़ाई अंग्रेजों और फ्रांसीसियों के मध्य हो रही थी। इन दोनों शक्तियों में प्रभुत्व का यह संघर्ष 60-70 साल चला और अंत में अंग्रेजों को सफलता मिली।
इस में दोनों शक्तियों के बीच पहली बड़ी लड़ाई कर्नाटक क्षेत्र में हुई।
इसमें एक ओर फ्रांस का गवर्नर डूप्ले और कर्नाटक का नवाब थे तो दूसरी ओर अंग्रेजी ईस्ट इंडिया कम्पनी का गवर्नर था।यह युद्ध प्रथम कर्नाटक युद्ध ( pratham karnaatak yuddh ) कहलाता है जो 1746 ई. से 1748 ई. तक चला। कहते हैं कि यूरोप में ऑस्ट्रिया के उत्तराधिकार के युद्ध में इंग्लैंड और फ्रांस के बीच जो संघर्ष चला, उसी का परिणाम भारत में प्रथम कर्नाटक युद्ध (First Carnatic War) के रूप में सामने आया।
इस युद्ध का तात्कालिक कारण था –अंग्रेज कैप्टन बर्नेट के नेतृत्व में अंग्रेजी सेना द्वारा कुछ फ्रांसीसी जहांजों पर अधिकार कर लेना।
बदलें में फ्रांसीसी गवर्नर(मारीशस)ला बूर्दने के सहयोग से डूप्ले ने मद्रास के गवर्नर मोर्स को आत्म समर्पण के लिए मजबूर कर दिया,इस समय अंग्रेज फ्रांसीसियों के सामने बिल्कुल असहाय थे।
प्रथम कर्नाटक युद्ध के समय ही कर्नाटक के नवाब अनवरुद्दीन ने महफूज खां के नेतृत्व में दस हजार सिपाहियों की एक सेना का फ्रांसीसियों पर आक्रमण के लिए भेजा, कैप्टन पैराडाइज के नेतृत्व में फ्रांसीसी सेना ने सेंटथोमे के युद्ध में नवाब को पराजित किया।
जून,1748ई. में अंग्रेज रियर-एडमिरल बोस्काबेन के नेतृत्व में एक जहांजी बेङा ने पांडिचेरी को घेरा,परंतु सफलता नहीं मिली।
यूरोप में अंग्रेजों और फ्रांसीसियों के बीच ऑस्ट्रिया में लङे जा रहे उत्तराधिकार युद्ध की समाप्ति हेतु 1749ई. में ऑक्सा-ला-शैपेल नामक संधि के सम्पन्न होने पर भारत में भी इन दोनों कंपनियों के बीच संघर्ष समाप्त हो गया।मद्रास पुनःअंग्रेजों को मिल गया।
प्रथम कर्नाटक युद्ध के परिणाम (RESULTS)
- ऑक्सा ला चैपल संधि ने डूप्ले (Joseph François Dupleix) की आशा पर पानी फेर दिया। भारत में फ्रांसीसी साम्राज्य की स्थापना का स्वप्न पूरा नहीं हो सका।
- अंग्रेजों की शक्ति नष्ट नहीं हुई।विजय अथवा पराजय का निर्णय नहीं हो सका।
- इस युद्ध ने भारतीय राजनीति के खोखलेपन को पूर्णतया स्पष्ट कर दिया।
- अंग्रेज और फ्रांसीसी भारतीय नरेशों की युद्ध-पद्धति और सैनिक दुर्बलता से परिचित हो गए। अब तक अंग्रेज और फ्रांसीसी केवल सामुद्रिक शक्ति के विकास पर ही बल दे रहे थे। परन्तु भारतीय नरेशों की कमजोरी को दखते हुए उनमें राजनीतिक प्रभुत्व कायम करने का हौसला बढ़ा दिया।
- भारतीय नरेशों का आपसी संघर्ष, उनकी सैनिक कमजोरी, नौसेना का अभाव, इन सब तत्वों ने मिलकर विदेशियों को भारत में साम्राज्य कायम करने की प्रेरणा दी।
Reference : https://www.indiaolddays.com/