भक्ति आंदोलन में कबीर का योगदान

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कबीर ( 1440-1510ई. )- कबीर सिकंदर लोदी के समकालीन थे। उन्होंने अपने गुरु रामानंद के सामाजिक दर्शन को सुनिश्चित रूप दिया। वे हिन्दू मुस्लिम एकता के हिमायती थे। कबीर के ईश्वर निराकार और निर्गुण थे। उन्होंने जात-पात, मूर्ति पूजा तथा अवतार सिद्धांत को अस्वीकार कर दिया।
कबीर 15वीं सदी के भारतीय रहस्यवादी कवि और संत थे। वे हिन्दी साहित्य के भक्तिकालीन युग में ज्ञानाश्रयी-निर्गुण शाखा की काव्यधारा के प्रवर्तक थे। उनके लेखन सिक्खों के आदि ग्रंथ में भी मिला जा सकता है।
वे हिन्दू धर्म व इस्लाम के आलोचक थे। उनके जीवनकाल के दौरान हिन्दू और मुसलमान दोनों ने उन्हें अपने विचार के लिए धमकी दी थी।
कबीर पंथ नामक धार्मिक सम्प्रदाय इनकी शिक्षाओं के अनुयायी हैं।कबीर की भाषा सधुक्कड़ी है।
कबीर ने काशी के पास मगहर में देह त्याग दी। ऐसी मान्यता है कि मृत्यु के बाद उनके शव को लेकर विवाद उत्पन्न हो गया था। हिन्दू कहते थे कि उनका अंतिम संस्कार हिन्दू रीति से होना चाहिए और मुस्लिम कहते थे कि मुस्लिम रीति से। इसी विवाद के चलते जब उनके शव पर से चादर हट गई, तब लोगों ने वहाँ फूलों का ढेर पड़ा देखा। बाद में वहाँ से आधे फूल हिन्दुओं ने ले लिए और आधे मुसलमानों ने। मुसलमानों ने मुस्लिम रीति से और हिंदुओं ने हिंदू रीति से उन फूलों का अंतिम संस्कार किया। मगहर में कबीर की समाधि है। जन्म की भाँति इनकी मृत्यु तिथि एवं घटना को लेकर भी मतभेद हैं किन्तु अधिकतर विद्वान् उनकी मृत्यु संवत 1575 विक्रमी (सन 1518 ई.) मानते हैं, लेकिन बाद के कुछ इतिहासकार उनकी मृत्यु 1448 को मानते हैं।
Reference : https://www.indiaolddays.com/