टीपू सुल्तान एवं अंग्रेजों के बीच श्रीरंगपट्टम की संधि कब हुई?

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टीपू सुल्तान एवं अंग्रेजों के बीच श्रीरंगपट्टम की संधि कब हुई?

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टीपू सुल्तान एवं अंग्रेजों के बीच श्रीरंगपट्टम की संधि (Treaty of Srirangapatna)23 मार्च, 1792 ई. को हुई थी। लॉर्ड कॉर्नवालिस ने तृतीय आंग्ल-मैसूर युद्ध के दौरान 5 फरवरी, 1792 ई. को श्रीरंगपट्टम के किले पर अधिकार कर लिया। कार्नवालिस ने मराठों को विजय का आधा भाग देने का लोभ देकर अपनी ओर कर लिया। निजाम पहले ही अंग्रेजों से मिल चुका था। इस त्रिगुट(मराठा, निजाम, अंग्रेज) ने टीपू के राज्य को चारों ओर से घेर लिया। दो वर्षों तक टीपू अकेला ही अपने शत्रुओं से लङता रहा। अंत में मार्च, 1791 में बैंगलोर को विजय करने के बाद अंग्रेजी सेना ने टीपू की राजधानी श्रीरंगपट्टम को घेर लिया। अंत में मार्च, 1792 में टीपू को विवश होकर संधि करनी पङी। श्रीरंगपट्टम की संधि की शर्तें निम्नलिखित थी-

  • टीपू को लगभग अपना आधा राज्य और क्षतिपूर्ति के रूप में 30 लाख पौंड अंग्रेजों को देना पङा।
  • इसमें से आधा भाग तो तुरंत दे दिया गया और शेष किश्तों में देने का वचन दिया गया।
  • इसके लिए टीपू ने अपने दो पुत्रों को अंग्रेजों के पास बंधक के रूप में रखना स्वीकार किया।
  • टीपू से लिये गये प्रदेश को त्रिगुट के सदस्यों में विभाजित कर दिया गया। अंग्रेजों को इस विभाजन से सबसे अधिक लाभ हुआ। उन्हें डिण्डीगल, सलेम और मालाबार के प्रदेश मिले। युद्ध में कुर्ग के राजा ने जो मैसूर के अधीन था, अंग्रेजों का साथ दिया। उसे अंग्रेजों ने अपने प्रभुत्व में ले लिया। इस प्रकार अंग्रेजों ने श्रीरंगपट्टम के आस-पास के क्षेत्रों को अपने अधिकार में कर लिया, जिससे अवसर पङने पर उसे सुगमता से जीता जा सके। निजाम को कृष्णा और पन्ना नदियों के बीच का प्रदेश दिया गया तथा मराठों को पश्चिमी कर्नाटक मिला…अधिक जानकारी
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