निम्न जाति आंदोलन क्या था?

निम्न जाति आंदोलन – यह महाराष्ट्र से शुरू होता है। जब ज्योतिबा फूले ने सत्यशोधक समाज की 1874 में स्थापना की। इन्होंने एक पुस्तक भी लिखी थी। जिसका नाम गुलामगिरि था। इस पुस्तक के माध्यम से उन्होंने ब्राह्मणीय श्रेष्ठता का विरोध किया, जातिप्रथा की निन्दा की।
निम्न जातीय आन्दोलन दलितों और अस्पृश्य लोगों को उच्च वर्ग के समान अधिकार दिलाने के लिए किये गये। ये आन्दोलन हिन्दुओं की निम्न जातियों और उप-जातियों द्वारा किये गये।
इसका मुख्य कारण उच्च जातियों द्वारा निम्न जातियों का सामाजिक, आर्थिक तथा धार्मिक आधार पर शोषण करना था।
इन आन्दोलनों का मुख्य उद्देश्य उच्च वर्गों के विशेषाधिकारों पर आक्रमण करना और अपने लिये समान अधिकार प्राप्त करना था।
जातिगत आन्दोलन दक्षिण-पश्चिमी भारत में मुख्य रूप से महाराष्ट्र में अधिक सक्रिय रहे। क्योंकि उत्तरी भारत की तुलना में दक्षिण भारत में उच्च वर्गों द्वारा निम्न जातियों का अधिक शोषण किया गया।
दक्षिण भारत में अधिक सक्रियता का दूसरा कारण यह भी है कि दक्षिण भारत में मध्य काल से ही विभिन्न सन्तों और विद्वानों द्वारा जातीय समानता पर अधिक बल दिया गया था, जिसके कारण वहाँ का निम्न सामाजिक वर्ग अधिक सजग था।
केरल में श्रीनारायण गुरू ने जातीय श्रेष्ठता का खंडन करते हुए कहा कि मानव की एक जाति, एक धर्म व एक ईश्वर है।
तमिलनाडु में पेरियार ने आत्म सम्मान आंदोलन शुरू किया।
इन आंदोलनों में हम संस्कृतिकरण की प्रक्रिया देख सकते हैं, जो निम्न वर्ग के द्वारा उच्च वर्ग के खान-पान, रहन-सहन, वस्त्र परिधान, बोली-भाषा की नकल करना। यह संकल्पना एम.एस.श्रीनिवासन ने की है।
Suman Changed status to publish नवम्बर 23, 2021