1799 में श्रीरंगपट्टम के पतन के साथ किस राज्य का भाग्य अस्त हो गया?

1799 में श्रीरंगपट्टम के पतन के साथ किस राज्य का भाग्य अस्त हो गया?
1799 में श्रीरंगपट्टम के पतन के साथ मैसूर राज्य का भाग्य अस्त हो गया।
मैसूर राज्य का उत्थान एवं पतन – भारत के पूर्वी और दक्षिणी घाट, दक्षिण के सुदूर भाग में जहाँ मिलते हैं, उस क्षेत्र में मैसूर का छोटा सा राज्य था। किसी जमाने में यह क्षेत्र विजयनगर साम्राज्य का अंग था। इस महान साम्राज्य के पतन के बाद रामराय के भाई तिरुमाल ने वेनुगोंडा को राजधानी बनाया और 1570 ई. में उसने अरविंदु वंश की नींव रखी। उसके बाद रंग द्वितीय और उसके बाद वेंकट द्वितीय ने शासन किया। वेंकट द्वितीय के शासन काल में राज्य का विघटन शुरू हो गया और मैसूर का राज्य पूरी तरह से स्वतंत्र हो गया। इस राज्य पर वादयार (वाडियार) वंश के हिन्दू राजाओं ने लंबे समय तक शासन किया, यद्यपि 1704 ई. में उन्हें औरंगजेब की अधीनता स्वीकार करनी पङी। 1719 ई. की संधि के अनुसार मराठों को मैसूर से चौथ वसूल करने का अधिकार मिल गया। उसके बाद मैसूर से कर वसूल करने के संबंध में निजाम और मराठों में झगङे आरंभ हो गये।
18 वीं शताब्दी के मध्य में मैसूर पर चिंकाकृष्णराज का शासन था। परंतु वह नाममात्र का शासक था। शासन की समस्त शक्ति देवराज तथा नंदराज नामक दो भाइयों के हाथ में थी। बाद में, नंदराज राज्य का सर्वेसर्वा बन गया। इन दोनों मंत्रियों के समय में ही मैसूर में एक अन्य सैनिक अधिकारी – हैदरअली का प्रभाव बढता गया और अन्ततः 1761 ई. में उसने सेना की सहायता से शासन स्वयं संभाल लिया। इस प्रकार, हैदरअली मैसूर का सुल्तान बन बैठा। मैसूर राज्य ने 18 वीं शता के अंत तक भारत के इतिहास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। अंग्रेजों से डटकर लोहा लेने वालों में मैसूर राज्य के हैदरअली और टीपू सुल्तान के नाम प्रमुख हैं…अधिक जानकारी