इतिहासइस्लाम धर्मप्राचीन भारत

इस्लाम का उदय और विस्तार (570-1200ई.)

इस्लाम का उदय

इस्लाम का उदय (The Rise of Islam)

आज जबकि हम 21वीं शताब्दी में प्रवेश कर चुके हैं, संसार के समस्त भागों में रहने वाले मुसलमानों की संख्या एक अरब से अधिक है। वे भिन्न-भिन्न राष्ट्रों के नागरिक हैं, अलग-अलग भाषाएँ बोलते हैं, और उनका पहनावा भी अलग-अलग किस्म का है।

वे जिन तरीकों में मुसलमान बने वे भी भिन्न-भिन्न प्रकार के थे, और वे परिस्थितियाँ भी भिन्न-भिन्न थी, जिनके कारण वे अपने-अपने रास्तों पर चले गए। फिर भी, मुस्लिम समाजों की जङें एक अधिक एकीकृत अतीत में समाहित हैं, जिसका प्रारंभ लगभग 1400 वर्ष पहले अरब प्रायद्वीप में हुआ था। हम इस आर्टिकल में इस्लाम के उदय और मिस्र से अफगानिस्तान तक के विशाल क्षेत्र में, उसके विस्तार के बारे में आपको बतायेंगे।

इस्लाम धर्म क्या है

600 से 1200 तक की अवधि में यह इलाका इस्लामी सभ्यता का मूल क्षेत्र था। इन शताब्दियों में, इस्लामी समाज में अनेक प्रकार के राजनीतिक और सासंस्कृतिक प्रतिरूप दिखते हैं। इस्लामी शब्द का प्रयोग यहाँ केवल उसके धार्मिक अर्थों में नहीं, बल्कि उस समूचे समाज और संस्कृति के लिए भी किया गया है, जो ऐतिहासिक दृष्टि से इस्लाम से संबद्ध रही है।

इस समाज में जो कुछ भी घटित हो रहा था उसका उद्भव सीधे धर्म से नहीं हुआ था, बल्कि इसका उद्भव एक ऐसे समाज में हुआ था, जिसमें मुसलमानों को और उनके धर्म का सामाजिक रूप से प्रमुखता प्राप्त थी। गैर-मुसलमान भले ही कुछ गौण सही लेकिन हमेशा इस समाज के अभिन्न भाग रहे, जैसे कि ईसाई प्रदेशों में यहूदी थे।

इन इस्लामी क्षेत्रों के सन 600 से 1200 तक के इतिहास के बारे में हमारी समझ इतिवृत्तों अथवा तवारीख पर (जिसमें घटनाओं का वृत्तांत कालक्रम के अनुसार दिया जाता है) और अर्ध-ऐतिहासिक कृतियों पर आधारित है, जैसे जीवन-चरित (सिरा), पैगम्बर के कथनों और कृत्यों के अभिलेख (हदीथ) और कुरान के बारे में टीकाएँ (तफसीर)।

इन कृतियों का निर्माण जिस सामग्री से किया गया था, वह प्रत्यक्षदर्शी वृत्तांतों (अखबार) का बहुत बङा संग्रह था, ये वृत्तांत विशेष कालावधि में मौखिक रूप से बताकर अथवा कागज पर लिखित रूप में लोगों तक पहुँचे। ऐसी प्रत्येक सूचना की प्रामाणिकता की जाँच एक आलोचनात्मक तरीके से की जाती थी, जिसमें सूचना भेजने (इस्नाद) की श्रृंखला का पता लगाया जाता था और वर्णनकर्ता की विश्वनीयता स्थापित की जाती थी।

यद्यपि यह तरीका नितांत दोषरहित नहीं था, लेकिन मध्यकालीन मुस्लिम लेखक सूचना का चयन करने और अपने सूचनादाताओं के अभिप्राय को समझने के मामले में विश्व के अन्य भागों के अपने समकालीन लोगों की अपेक्षा अधिक सतर्क थे। विवादास्पद मुद्दों के मामले में, उन्होंने अपने स्रोतों से ज्ञात एक ही घटना के विभिन्न रूपांतरण प्रस्तुत किए, और उन्हें परखने का कार्य अपने पाठकों के लिए छोङ दिया।

उनके अपने समय के आस-पास की घटनाओं के बारे में उनका वर्णन अधिक सुनियोजित और विश्लेषणात्मक है और उसे अखबारों का संग्रह मात्र ही नहीं कहा जा सकता। अधिकतर ऐतिहासिक और अर्ध-ऐतिहासिक रचनाएँ अरबी भाषा में हैं। इनमें सर्वोत्तम कृति तबरी की तारीख है, जिसका 38 खंडों में अंग्रेजी में अनुवाद किया गया है।

फारसी में इतिवृत संख्या की दृष्टि से बहुत कम है, लेकिन उनमें ईरान और मध्य एशिया के बारे में विस्तृत जानकारी दी गयी है। सीरियाक (अरामेइक की एक बोली) में लिखे ईसाई वृत्तांत ग्रंथ और भी कम हैं, लेकिन उनसे प्रारंभिक इस्लाम के इतिहास पर महत्त्वपूर्ण रोशनी पङती है। इतिवृत्तों के अलावा, हमें कानूनी पुस्तक, भूगोल, यात्रा-वृत्तांत और साहित्यिक रचनाएँ जैसे कहानियाँ और कविताएँ प्राप्त होती हैं।

दस्तावेजी साक्ष्य (लेखों के खंडित अंश, जैसे सरकारी आदेश अथवा निजी पत्राचार) इतिहास लेखन के लिए सर्वाधिक बहुमूल्य हैं, क्योंकि इनमें पूर्व चिंतन कर घटनाओं और व्यक्तियों का उल्लेख नहीं होता। लगभग समूचा साक्ष्य यूनानी और अरबी पैपाइरस (जो प्रशासनिक इतिहास के लिए बढिया है) और गेनिजा अभिलेखों से प्राप्त होता है। कुछ साक्ष्य पुरातत्वीय (उजङे महलों में की गई खुदाई), मुद्राशास्त्रीय (सिक्कों का अध्ययन) और पुरालेखीय (शिलालेखों का अध्ययन) स्रोतों से उभर कर सामने आते हैं। ये आर्थिक इतिहास, कला इतिहास, नामों और तारीखों के प्रमाणीकरण के लिए बहुमूल्य है।

सही मायने में इस्लाम के इतिहास ग्रंथ लिखे जाने का कार्य 19वीं शताब्दी में जर्मनी और नीदरलैंड के विश्वविद्यालयों के प्रोफेसरों द्वारा शुरू किया गया। मध्य पूर्व और उत्तरी अफ्रीका में औपनिवेशिक हितों से फ्रांसीसी और ब्रिटिश शोधकर्त्ताओं को भी इस्लाम का अध्ययन करने के लिए प्रोत्साहन मिला। ईसाई पादरियों ने इस्लाम के इतिहास की ओर बारीकी से ध्यान दिया और कुछ अच्छी पुस्तकें लिखी, हालाँकि उनकी दिलचस्पी मुख्यतः इस्लाम की तुलना ईसाई धर्म से करने में रही। ये विद्वान, जिन्हें प्राच्यविद कहा जाता है, अरबी और फारसी के ज्ञान के लिए और मूल ग्रंथों के आलोचनात्मक विश्लेषण के लिए प्रसिद्ध हैं।

इग्नाज गोल्डजिहर हंगरी के एक यहूदी थे, जिन्होंने काहिरा के इस्लामी कॉलेज (अल-अजहर) में अध्ययन किया और जर्मन भाषा में इस्लामी के 20 वीं शताब्दी के इतिहासकारों ने अधिकतर प्राच्यविदों की रुचियों और उनके तरीकों का ही अनुसरण किया है।

उन्होंने नए विषयों को शामिल करके इस्लाम के इतिहास के दायरे का विस्तार किया है और अर्थशास्त्र, मानव-विज्ञान और सांख्यिकी जैसे संबद्ध विषयों का इस्तेमाल करके प्राच्य अध्ययन के बहुत से पहलुओं का परिष्करण किया है। इस्लाम का इतिहास लेखन इस बात का एक अच्छा उदाहरण है कि इतिहास के आधुनिक तरीकों का इस्तेमाल करके धर्म का अध्ययन किस प्रकार किया जा सकता है, ऐसे लोगों द्वारा जो स्वयं अध्ययन करने वाले धर्म के अनुयायी न हों।

Note – अरामेइक, हिब्रू अरबी से संबंधित भाषा हैं। अशोक के अभिलेखों में भी इनका प्रयोग किया गया है।

कबीले रक्त संबंधों (वास्तविक या काल्पनिक) पर संगठित समाज होते थे। अरबी कबीले वंशों से बने हुए होते थे अथवा बङे परिवारों के समूह होते थे। गैर-रिश्तेदार वंशों का, गढे हुए वंशक्रम के आधार पर इस आशा के साथ आपस में विलय होता था कि नया कबीला शक्तिशाली होगा। गैर-अरब व्यक्ति (मवाली) कबीलों के प्रमुखों के संरक्षण से सदस्य बन जाते थे, लेकिन इस्लाम में धर्मांतरण के बाद भी मवालियों के साथ अरब मुसलमानों द्वारा समानता का व्यवहार नहीं किया जाता था और उन्हें अलग मस्जिदों में इबादत करनी पङती थी।

हम आगे के आर्टिकल में अरब में इस्लाम का उदय पढेंगे

Related Articles

error: Content is protected !!