इतिहासप्राचीन भारतवैदिक काल
वैदिक कालीन त्रि ऋण

तीन ऋणों का पालन एक गृहस्थ को करना पङता था।
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देव ऋण-
मनुष्य के भाग्य निर्धारण में देवताओं की भूमिका होती है इसलिए यज्ञ करने में देवऋण से मुक्ति मिलती है।
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पितृ ऋण-
माता- पिता ने जन्म दिया है तो विवाह करके संतानोत्पति (पुत्र की प्राप्ति) करना।
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ऋषि ऋण-
विद्या अध्ययन में गुरुजनों की (ऋषियों ) की भूमिका है। वेदों का अध्ययन , दान देना।
Reference : https://www.indiaolddays.com/