आर्य समाज (Arya Samaj)

यद्यपि ब्रह्म समाज(Brahma Samaj) ने धर्म एवं समाज सुधार के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण कार्य किया, किन्तु ब्रह्म समाज ने पाश्चात्य सभ्यता और ईसाई धर्म से प्रभावित होकर हिन्दू धर्म और समाज की कुरीतियों को दूर करने का प्रयास किया तथा ईसाई धर्म को समान स्थान प्रदान करते हुए हिन्दू धर्म की श्रेष्ठता स्थापित नहीं की। अतः हिन्दू धर्म एवं समाज को एक उग्र आंदोलन की आवश्यकता थी तथा इस आवश्यकता की पूर्ति आर्य समाज ने की। आर्य समाज के संस्थापक गुजरात के संन्यासी स्वामी दयानंद सरस्वती थे। स्वामी दयानंद सरस्वती द्वारा चलाया गया आर्य समाज आंदोलन विभिन्न प्रकार से ब्रह्म समाज से भिन्न था।
आर्य समाज के नियम-
स्वामी दयानंद सरस्वती तथा उनके द्वारा स्थापित आर्य समाज के सभी मौलिक सिद्धांतों का परिचय हमें उनके महान ग्रंथ सत्यार्थ प्रकाश में मिलता है। इस ग्रंथ के आधार पर आर्य समाज के निम्नलिखित दस नियम हैं-
- ईश्वर एक है तथा वह निराकार है। वह सर्वशक्तिमान,न्यायकारी, दयालु, निर्विकार,सर्वव्यापक, अजर,अमर, पवित्र और सृष्टिकर्त्ता है। अतः उसकी उपासना करने योग्य हैं।
- वेद ही सच्चे ज्ञान के स्त्रोत हैें। अतः वेद का पढना-पढाना और सुनना-सुनाना सब आर्यों का परम धर्म है।
- प्रत्येक व्यक्ति को सदा सत्य ग्रहण करने और असत्य को छोङने के लिए तैयार रहना चाहिये।
- सब कार्य धर्मानुसार अर्थात् सत्य और असत्य को विचार करके करना चाहिये।
- संसार का उपकार करना इस समाज का मुख्य उद्देश्य है, अर्थात् सबकी शारीरिक, आत्मिक और सामाजिक उन्नति करना।
- प्रत्येक को अपनी ही उन्नति में संतुष्ट न रहाना चाहिये, सबकी उन्नति में अपनी उन्नति समझनी चाहिए।
- समस्त ज्ञान का निमित्त कारण और उसके माध्यम से समस्त बोध ईश्वर है।
- प्रत्येक को अविद्या का नाश और विद्या की वृद्धि करनी चाहिये।
- सभी से धर्मानुसार प्रीतिपूर्वक यथोयोग्य व्यवहार करना चाहिए।
- व्यक्तिगत हितकारी विषयों में प्रत्येक व्यक्ति को आचरण की स्वतंत्रता रहे,परंतु सामाजिक भलाई से संबंधित भलाई से संबंधित विषयों में सब मतभेदों को भुला देना चाहिए।
आर्य समाज ने हिन्दू धर्म एवं समाज सुधार हेतु महत्त्वपूर्ण कार्य किये। स्वामी दयानंद ने अपना संपूर्ण जीवन मूर्तिपूजा तथा हिन्दू धर्म के अंधविश्वासों तथा कुरीतियों के खंडन और वैदिक सिद्धांतों के प्रचार में लगाया। दयानंद ने वेदों में एकेश्वरवाद की कल्पना को प्रमुख माना तथा वेदों में वर्णित यज्ञों और अन्य संस्कारों की नयी व्याख्या की।
हवन का मुख्य उद्देश्य वायुमंडल को शुद्ध करना था। उन्होंने बताया कि हिन्दू धर्म सैद्धांतिक एवं व्यावहारिक दृष्टि से उदार रहा है। स्वयं वेद भी अपनी श्रेष्ठता का दावा नहीं करते। इसलिए हिन्दू धर्म ने सभी धर्मों के प्रति सहिष्णुता का व्यवहार किया, जबकि इस्लाम और ईसाई धर्म क्रमशः कुरान और बाइबिल को ही एकमात्र सत्य ग्रंथ मानते हैं और उसी धर्म का पालन करना स्वर्ग जाने का मार्ग बताते हैं।
इसी कारण हिन्दू धर्म की उदारता उसकी निर्बलता सिद्ध हुई और इसीलिए हिन्दू धर्म कट्टर इस्लाम और ईसाई धर्म का मुकाबला करने में असमर्थ रहा। अतः स्वामीजी ने हिन्दू धर्म को कट्टरता प्रदान की। इसीलिए आर्य समाज सैनिक हिन्दुत्व कहलाया।
आर्य समाज ने वेदों के आधार पर हिन्दू धर्म को पुनः स्थापित करने का प्रयत्न किया, इसीलिए इसे पुनरुत्थानवादी आंदोलन कहा जाता है। आर्य समाज आंदोलन किसी बाहरी तत्वों से प्रेरित न होकर अपने ही मूल सिद्धांतों से प्रेरित था। पहले वेदों का अध्ययन केवल ब्रह्मणों का ही एकाधिकार था।
स्वामी दयानंद ने सभी वर्णों के लोगों को वेदों के अध्ययन तथा उनकी व्याख्या करने का अधिकार दे दिया। इस प्रकार समानता और धार्मिक कट्टरता की भावना को लेकर आर्य समाज ने भारत में धार्मिक,सामाजिक,शैक्षणिक और राजनैतिक क्षेत्र में जो कार्य किया उसकी तुलना किसी भी धर्म सुधार आंदोलन से नहीं की जा सकती।
Reference :https://www.indiaolddays.com/