मालवा के बारे में जानकारी

अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य-
- 16 महाजनपद काल : 600 ई. पू. का भारतवर्ष
- बौद्ध धर्म की शाखाएँ हीनयान एवं महायान
- जैन धर्म के प्रमुख सिद्धांत
- मध्यकालीन भारत के बंगाल का इतिहास क्या था
मालवा का राज्य नर्मदा और ताप्ती नदियों के बीच पठार पर बसा था।1305 ई. में इस राज्य पर अलाउद्दीन खिलजी ने अधिकार कर लिया था।मालवा की स्वतंत्र सल्तनत की स्थापना (1401ई.) हुसैन खाँ गौरी ने की थी, जिसे फिरोज तुगलक ने अमीर के रूप में दिलावर खाँ की उपाधि प्रदान की थी। उसने धार को अपना प्रांतीय मुख्यालय (राजधानी) बनाया।
मालवा के शासक-
- अल्पखाँ- 1406ई. में दिलावर खाँ का महत्वाकांक्षी पुत्र अल्प खाँ हुशंग शाह का विरुद धारण करके मालवा की गद्दी पर बैठा।1407ई. में गुजरात के शासक मुजफ्फर शाह ने मालवा पर आक्रमण करके उसे बंदी बना लिया तथा मालवा पर अधिकार कर लिया। गुजरात से मुक्त होने के बाद हुशंग शाह ने माण्डू को अपनी राजधानी बनाया। हुशंग शाह एक अत्यंत लोकप्रिय शासक था। उसने बहुसंख्यक हिन्दुओं के प्रति सहिष्णुता की उदार नीति अपनाई। उसने अनेक हिन्दुओं (राजपूतों) को मालवा में बसने के लिए प्रोत्साहित किया।
हुशंगशाह ने जैनीयों सहायता प्रदान की जो राज्य के मुख्य व्यापारी एवं शाहूकार थे। सफल व्यापारी नरदेव सोनी उसका खजांची और सलाहकार था। हुशंगशाह महान विद्वान और रहस्यवादी सूफी संत शेख बुहरानुद्दीन का शिष्य था। उसके संरक्षण में अनेक सूफी संत मालवा की ओर आकर्षित हुए। उसने हिन्दुओं को मंदिर आदि निर्मित कराने की पूर्ण स्वतंत्रता प्रदान की। 1435ई. में अपनी मृत्यु से पूर्व उसने नर्मदा के किनारे होशंगाबाद नगर की स्थापना की।
- महमूद खलजी प्रथम(1436-1469ई.)- 1436ई. में सुल्तान महमूद गोरी को उसके वजीर खलजी तुर्क महमूद खाँ ने जहर देकर मार डाला और तख्त पर कब्जा करके खलजी वंश की नींव डाली। वह मालवा के सुल्तानों में सर्वाधिक शक्तिशाली माना जाता है। महमूद ने अपने पिता के संरक्षण में शासन प्रारंभ किया। उसने अपना अधिकांश जीवन विभिन्न राजाओं से युद्ध करने में बिताया। ऐसा कोई वर्ष मुश्किल से नहीं जाता रहा होगा जब वह मैदान में न उतरता हो।उसके विषय में फरिश्ता ने लिखा है कि “इस तरह शिविर उसका घर बन गया था और मैदान उसके लिए आरामगाह था। वह अपने फुरसत के पल दुनिया के विभिन्न राजदरबारों के इतिहासों और संस्मरणों को सुनने में व्यतीत करता था। “
मेवाङ के साथ राणा कुम्भा से हुए युद्धों में दोनों शासकों ने विजय का दावा किया है। राणा कुम्भा ने चित्तौङ में विजय स्तंभ बनवाया और महमूद खलजी ने माण्डू में सात मंजिलों वाला स्तंभ स्थापित किया। इसके शासन काल में मालवा का गौरव अपने चरमोत्कर्ष पर पहुँच गया उसने गौर मुस्लिम प्रजा के प्रति उदारतापूर्ण नीति अपनाई और उन्हें शासन में उच्च पदों पर नियुक्त किया।उसने व्यापार एवं वाणिज्य के संवर्धन के लिए जैन पूंजीपतियों को संरक्षण प्रदान किया। प्रजा के स्वास्थ्य के लिए उसने माण्डू में एक चिकित्सालय की स्थापना की, जिसमें रोगियों के ठहरने के लिए तथा औषधियों की पर्याप्त व्यवस्था की।शिक्षा के लिए उसने माण्डू में एक आवासीय महाविद्यालय की स्थापना की।
- गयासुद्दीन – गयासुद्दीन के चरित्र में बङा अंतर्विरोध था। वह बाहर से पवित्र एवं धार्मिक जीवन व्यतीत करने का दिखावा करता था, पर व्यक्तिगत जीवन में वह नितांत इन्द्रियलोलुप था। उसके महल में 16000 दासियाँ थी जिसमें से अनेक हिन्दू सरदारों की पुत्रियां भी थी। उसने इथोपियाई एवं तुर्की दासियों की एक अंगरक्षक सेना गठित की।
- महमूद द्वितीय- महमूद शाह खलजी द्वितीय (1511ई.) बङी विषम परिस्थितियों में सुल्तान बना था। उसने मुसलमान अमीरों के षड्यंत्रों से अपनी रक्षा के लिए चंदेरी के राजपूत शासक मेदनी राय को अपना वजीर नियुक्त किया। 1531ई. में गुजरात के शासक बहादुरशाह ने महमूद को पराजात कर मालवा को गुजरात राज्य में मिला लिया।
Reference : https://www.indiaolddays.com/