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जापान में राजनीतिक चेतना का विकास

जापान में राजनीतिक चेतना का विकास

जापान में राजनीतिक चेतना – 19 वीं शताब्दी के उदारवाद का प्रभाव जापान पर भी पङा, अतः अब जापान में यह प्रश्न खङा हो गया, कि मेजी राजप्रतिष्ठा की नींव पर जापानी शासन का कौनसा ढांचा खङा किया गया। जापान के नए शिक्षा कार्यक्रम ने पहले ही यह संकेत दे दिया था, कि नया शासन राष्ट्रवादी और विशिष्ट जापानी अरथों में केन्द्रीभूत होगा। अब पश्न यह था, कि क्या वह शासन लोकप्रिय संविधान, जनाधिकार-पत्र, व्यापक मताधिकार, जापान में राजनीतिक चेतना या राजनीतिक दल और पश्चिम के लोकतंत्री देशों के प्रभावशाली मध्यम वर्ग की धारणा के अनुसार व्यक्तिवाद के आधार पर लोकतंत्री देशों के प्रभावशाली मध्यम वर्ग की धारणा के अनुसार व्यक्तिवाद के आधार पर लोकतंत्री होगा।
जापान में राजनीतिक चेतना

नई परिस्थितियों में अब शासन में सुधार करना भी आवश्यक था। 1868 ई. में ही सम्राट ने एक घोषणा प्रकाशित कर दी थी, जिसमें शासन संबंधी नए सिद्धांतों का प्रतिपादन कर दिया गया था। इस घोषणा में एक संसद की स्थापना की व्यवस्था थी, जो राज्य की नीति का निर्धारण करेगी और इसमें जापान के अधिक से अधिक व्यक्तियों का प्रतिनिधित्व होगा।

जापान में राजनीतिक चेतना के विकास का प्रारंभ

राजनीतिक चेतना के अनुसार न्याय के क्षेत्र में सभी नागरिकों को समान स्तर पर रखा जायेगा, किन्तु जापान में कुछ लोग शासन सुधार के विरोधी भी थे, जो किसी प्रकार का परिवर्तन नहीं चाहते थे। अतः इस समय जापान में कुछ विचारक भी हुए, जिन्होंने शासन सुदार के लिये आंदोलन चलाया। इस आंदोलन का नेता ईसागाकी नाईसूके था।

1874 ई. में उसने सम्राट से अनुरोध किया कि 1868 ई. की घोषणा के अनुसार जापान में एक संसद की स्थापना की जाय, जो जापान के लोकमत का वास्तविक प्रतिनिधित्व करे। इस माँग को राष्ट्रव्यापी बनाने के लिये 1885 ई. में आईकोकूरैशा (देशभक्तों का समाज) नामक एक संगठन बनाया गया। बाद में इसका नाम कोक्काई कीसेई दोमेई (राष्ट्रीय संसद स्थापना दल) रख दिया गया। इस आंदोलन को जीयू मीनकेन उन्दो (जनतंत्रीय आंदोलन) कहते थे।

इस आंदोलन को गाँव के जमींदोरों, किसानों, मजदूरों, व्यापारियों और उद्योगपतियों का समर्थन प्राप्त था। इस आंदोलन से प्रभावित होकर सम्राट ने कुछ सुधार किये। जिसके अनुसार जापान में पहली बार एक सीनेट और एक प्रधान केन्द्रीय न्यायालय की स्थापना की गयी। 1878 ई. में जापान में स्थानीय स्वशासन का सूत्रपात किया गया।

जापान में राजनीतिक चेतना के फलस्वरूप 1878ई. में प्रांतों में पाँच येन या उससे अधिक लगान देने वाले पुरुषों द्वारा चुनी हुई प्रांतीय प्रतिनिधि सभा स्थापित करने का निर्णय लिया गया। इनका काम वित्तीय मामलों पर विचार करना था, लेकिन प्रांतों के गवर्नरों को विशेषाधिकार देकर इन संस्थाओं को निरर्थक कर दिया गया। शहरों, कस्बों और गाँवों में भी इसी तरह की संस्थाएँ स्थापित की गयी, जो केवल जनतंत्र की माँग करने वालों के आँसू पौंछने के लिये थी।

जापान में बहुत से ऐसे लोग थे, जो जापान में राजनीतिक चेतना के पक्ष में थे, और जापान को पूर्णतः एक लोकतांत्रिक देश बनाना चाहते थे। अतः इसी समय जापान में राजनीतिक दलों का प्रादुर्भाव हुआ।

जापान में राजनीतिक चेतना का उदय

1881 ई. में ईतागाकी ने अपने संगठन को छो जीयूतो (उदारवादी दल) में बदल दिया। इसकी विचारधारा फ्रांसीसी उग्रवादी सिद्धांत पर आधारित थी। इसका मूल मंत्र था, स्वतंत्रता मनुष्य की प्राकृतिक दशा है। इस उग्रवादीता का विरोध करने के लिये 15 मार्च, 1882 ई. में काउण्ट ओकूमा शीगेनोबू ने रीक्केन काईशिन्तो (संवैधानिक सुधार दल) बनाया। इसमें शहरों के व्यापारी और बुद्धिजीवी शामिल थे। उसी समय रूढिवादियों ने रीक्केन तेईसेईतो (संवैधानिक साम्राज्यवादी दल) बनाया, यह दल सम्राट की प्रभुसत्ता में विश्वास करता था। सरकार ने इन दलों पर अनेक प्रतिबंध लगाने आरंभ कर दिये, किन्तु साथ ही संविधान बनाने का काम भी चलता रहा।

जापान में राजनीतिक चेतना में सरकार का विरोध

सरकार ने राजनीतिक दलों के आंदोलनों को कुचलने के लिये अनेक नियम बनाए तथा राजनीतिक दलों के पत्र-पत्रिकाओं पर पाबंदियाँ लगा दी। 25 दिसंबर, 1887 ई. को एक सुरक्षा आधिनियम जारी किया, जिससे सरकार को किसी व्यक्ति पर शांति के लिये खतरा होने का आरोप लगाकर उसे टोकियो से निष्कासित करने का अधिकार मिल गया। इस अधिनियम के अन्तर्गत लगभग छः सौ व्यक्तियों को टोकियो से निष्कासित कर दिया गया।

1. पुस्तक- आधुनिक विश्व का इतिहास (1500-1945ई.), लेखक - कालूराम शर्मा

Online References
Wikipedia : जापान में राजनीतिक चेतना

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