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जापान में शिक्षा में सुधार

जापान में शिक्षा

मेजी काल के प्रारंभिक सुधारों में महत्त्वपूर्ण सुधार शिक्षा में सुधार हुआ। जापानियों में नए पश्चिमी विश्व को जानने का पहले से ही उत्साह था। 1811 ई. में शोगून शासन ने पाश्चात्य भाषाओं के ग्रंथों का जापानी भाषा में अनुवाद करने के लिये जो बान्शो शीराबेशो नामक संस्था स्थापित की थी, उसे 1857 ई. में एक विद्यालय का रूप दे दिया गया, जिसमें पश्चिमी भाषाओं और विधाओं की शिक्षा दी जाती थी। इस उद्देश्य के लिये कुछ जापानियों ने पश्चिमी देशों की यात्रा भी की, किन्तु मेजी पुनर्स्थापना के बाद शिक्षा के क्षेत्र में बङी तेजी से प्रगति हुई।

जापान में औद्योगिक विकास

जापान में शिक्षा

जापान में शिक्षा विभाग की स्थापना

जापान में शिक्षा में सुधार के लिये 1871 ई. में एक शिक्षा विभाग की स्थापना की गयी। इसके लिये एक कानून बनाकर यह व्यवस्था की गयी कि, हर व्यक्ति ऊँचा और नीचा, स्री और पुरुष शिक्षा प्राप्त करे, जिससे सारे समाज में कोई भी परिवार और परिवार का कोई भी व्यक्ति अशिक्षित और अज्ञानी नहीं रह जाय।

सामंती व्यवस्था में शिक्षा केवल उच्च वर्ग के लोगों के लिये थी, लेकिन अब ऐसी बात नहीं रही।अर्थात् अब जापान में शिक्षा में सुधार हुआ और प्राथमिक शिक्षा सभी के लिये अनिवार्य कर दी गयी। अमेरिका की प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा में यथोचित संशोधन कर जापान ने उसे अपनी पद्धति का आधार बना लिया। संपूर्ण देश को आठ विश्वविद्यालयी क्षेत्रों में बाँटा गया।इस प्रत्येक क्षेत्र में बत्तीस माध्यमिक विद्यालय प्रदेश बनाए गये। प्रत्येक प्रदेश को दो सौ दस प्राथमिक पाठशाला हलकों में विभाजित किया गया। इस प्रकार प्रत्येक छः सौ व्यक्तियों के लिये एक प्राथमिक पाठशाला उपलब्ध हो गयी। छः वर्ष के बालक-बालिकाओं के लिये पहले चार वर्ष का और बाद में छः वर्ष का शिक्षण काल पूरा करना अनिवार्य कर दिया। उन्हें सामान्य विषयों के अलावा सम्राट के प्रति आदर और निष्ठा एवं चारित्रिक शिक्षा भी दी जाती थी। प्रारंभ में यह अनिवार्य शिक्षा 16 महीने की थी। 1880 ई. में इस अवधि को तीन वर्ष कर दिया गया तथा 1886 ई. में यह अवधि चार वर्ष कर दी गयी। 1907 ई. में पूरा छः वर्ष का पाठ्यक्रम अनिवार्य हो गया। 1899 ई. तक पाँच वर्ष वाले माध्यमिक विद्यालय सभी प्रांतों में खोल दिये गये। इनके द्वारा छात्रों को विश्वविद्यालय या किसी रोजगार के लिये तैयार किया जाता था। सामान्य विद्यालयों से अध्यापक तैयार होने लगे तथा व्यापारिक विद्यालयों से उद्योग में काम करने वाले स्नातक तैयार होने लगे। इंजीनियरिंग आदि व्यावसायिक शिक्षा के लिये अलग से शिक्षणालय थे। इन सबके ऊपर तीन वर्ष का विश्वविद्यालय का पाठ्यक्रम था। इस प्रकार कुल शिक्षा काल 17 वर्ष का था।

1869 ई. में येदो के कन्फ्यूशियसी विद्यालय शोगूनी आयुर्वेद शिक्षालय और बान्शो शीराबेशो को मिलाकर एक नया राजकीय विश्वविद्यालय बनाया गया। 1877 ई. में इसका नाम टोकियो विश्वविद्यालय रखा गया। 1886 ई. में इसमें सभी संकाय कायम कर दिये गये। इसका विधि संकाय विशेष रूप से प्रतिष्ठित था तता उसके स्नातक उच्च पदों पर नियुक्त किये जाते थे। तत्पश्चात 1897 ई. में क्योतो, 1907 ई. में सेन्दाई, 1910 ई. में फूकूओका, 1918 ई. में साप्पोरो आदि विश्वविद्यालय स्थापित किये गये। 1850 ई. में ओकूमा शीगेनोबू ने वासेदा विश्वविद्यालय की नींव रखी।

नए जापान ने स्रियों की शिक्षा पर भी ध्यान दिया। लङकियों के लिये प्राथमिक शिक्षा लङकों के समान ही थी, किन्तु माध्यमिक शिक्षा में उन्हें अच्छी पत्नी और अच्छी माता बनाने की योग्यता प्रदान करने पर अधिक जोर दिया जाता था। 1902 ई. तक लङकियों के लिये उच्च शिक्षा की व्यवस्था नहीं की गयी थी, फिर भी स्री-शिक्षा के इस सीमित कार्यक्रम में भी जापान अनेक पश्चिमी देशों से आगे था। 1913 ई. में जापान में एक महिला विश्वविद्यालय की भी स्थापना हुई।

जापान में शिक्षा

जापानियों में नई-नई जानकारी प्राप्त करने के लिये बङा उत्साह था और यह यूरोपीय भाषा के माध्यम से ही संभव था, अतः इस युग में अंग्रेजी भाषा को माध्यमिक और उच्चतर पाठ्यक्रमों का अंग बनाया गया। 1869 ई. में एक जापानी अंग्रेजी शब्दकोश बनाया गया तथा अंग्रेजी भाषा को प्राथमिक शिक्षा में भी स्थापन दे दिया गया। जर्मन और फ्रेंच भाषा पढाने की भी व्यवस्था थी। इस दौरान पाश्चात्य साहित्य के अनुवाद का कार्य भी चलता रहा। स्टुअर्ट मिल, बेन्थम आदि की कृतियों का जापानी में अनुवाद किया गया। नई शिक्षा पद्धति में पाश्चात्य विधाओं को प्रमुखता से स्थान दिया गया। 1871 ई.में जर्मन डॉक्टरों की सहायता से जापानी चिकित्सा प्रणाली में यूरोपीय पुट दिया गया। 1877 ई. में हारवर्ड के प्रोपेसर ई.एस. मोसे ने जन्तु-विज्ञान, पुरामान विज्ञान, पुरातत्त्व विज्ञान और समाजशास्र के अध्ययन की आधारशिला रखी। 1878 ई. में बोस्टन से अर्नेस्ट फेनोलोसा दर्शन के प्राध्यापक बनकर टोकियो आए और उन्होंने स्थानीय कला में लोगों की रुचि जागृत की।

1879ई. में जापान सरकार ने शिक्षण संस्थाओं की स्वायत्तता का सिद्धांत स्वीकार कर लिया। 1889 ई. के संविधान में जब जापान के लिये धर्म निरपेक्षता का सिद्धांत स्वीकार कर लिया गया, तब जापान की शिक्षा-प्रणाली पर भी इसका प्रभाव पङा। जापान में 1868 ई. से जो शिक्षा के क्षेत्र में सुधार किये गये, वे राजनीतिक और आर्थिक क्रांति से कम महत्त्वपूर्ण नहीं थी।

ऊँची शिक्षा ने समाचार पत्र और पत्रकारिता को अत्यधिक प्रभावित किया। 1870 ई. में जापान का सबसे पहला समाचार पत्र योकोहामा माईनीची शीम्बून का प्रकाशन शुरू हुआ पाँच वर्षों के भीतर ही समाचार-पत्रों की संख्या एक सौ से लगभग पहुँच गयी। महिलाओं और बच्चों के लिये अलग से पत्रिकाएँ निकलती थी। समाचार पत्रों के प्रसार ने जापानियों के बौद्धिक स्तर को ऊँचा उठाने में बङी सहायता प्रदान की। जापानी भाषा को एक नई किन्तु सरल शैली मिली। भाषा की क्लिष्टता दूर हुी और जापानियों में अत्यधिक जागरूकता आई। इन समाचार-पत्रों ने संसदीय संविधान की माँग को बल प्रदान किया।

1. पुस्तक- आधुनिक विश्व का इतिहास (1500-1945ई.), लेखक - कालूराम शर्मा

Online References
Wikipedia : जापान में शिक्षा

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