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गुप्त काल में मृण्मूर्ति कला

गुप्तकाल में मृदभांड कला की प्रगति हुई। इस काल के कुंभकारों ने पकी हुई मिट्टी की छोटी-२ मूर्तियाँ बनायी। इनमें चिकनाहट और सुडौलता पाई जाती है। विष्णु, कार्तिकेय, दुर्गा, गंगा, यमुना आदि देवी-देवताओं की बहुसंख्यक मृण्मूर्तियाँ पहाङपुर, राजघाट, भीटा, कौशांबी, श्रावस्ती पवैया, अहिच्छत्र, मथुरा आदि स्थानों से प्राप्त हुई हैं। धार्मिक मूर्तियों के साथ-२ इन स्थानों से अनेक लौकिक मूर्तियाँ भी मिलती हैं।

पहाङपुर से कृष्ण लीलाओं से संबंधित कई मूर्तियाँ मिलती हैं। अहिच्छत्र की मूर्तियों में गंगा-यमुना की मूर्तियाँ तथा पार्वती के सुंदर सिर का उल्लेख किया जा सकता है। कुछ मूर्तियों में उच्चकोटि की कारीगरी का प्रदर्शन मिलता है। एक गोल फलक पर रथ में आसीन सूर्य का चित्रण है। रथ को सात घोङे खींच रहे हैं। दो देवियाँ उषा और प्रत्यूषा प्रकाश बिखेर रही हैं।

कुछ मृण्फलक शिव के जीवन की प्रमुख घटनाओं, जैसे दक्ष के यज्ञ का विध्वंस, उनका विकराल भैरव रूप धारण करना, लकुलीश रूप, दक्षिणामूर्ति रूपी योगी का स्वरूप आदि का अंकन अत्यंत कुशलता से करते हैं। श्रावस्ती से जटाजूटधारी शिव के सिर की मूर्ति मिली है। इसी प्रकार श्रावस्ती की मृण्मूर्तियों में एक बङी नारी-मूर्ति का उल्लेख किया जा सकता है। उसके साथ दो बालक बैठे हुए हैं तथा उनके समीप लड्डुओं की एक डाली रखी हुई प्रदर्शित की गयी है।

यह संभवतः यशोदा के साथ कृष्ण तथा बलराम का दृश्य है।

Reference : https://www.indiaolddays.com

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