इतिहासप्रथम विश्वयुद्धविश्व का इतिहास

प्रथम विश्वयुद्ध : घटनाएँ

प्रथम विश्वयुद्ध : घटनाएँ

प्रथम विश्वयुद्ध : घटनाएँ – प्रथम विश्व युद्ध काफी लंबा और व्यापक रहा। प्रथम विश्व युद्ध की कुछ प्रमुख घटनाओं का विवरण इस पॉस्ट में किया गया है।

जर्मनी ने जिस समय रूस और फ्रांस के विरुद्ध युद्ध की घोषणा की थी, उस समय उसकी योजना थी – फ्रांस को यथाशीघ्र पराजित करके रूस से निपटना, क्योंकि रूस एक विशाल देश था और उससे निपटने के लिये विशाल पैमाने पर कार्यवाही करने की आवश्यकता थी।

उस समय जर्मनी को इंग्लैण्ड की तटस्थता की आशा थी, अतः उसने बाल्कन युद्ध क्षेत्र को आस्ट3िया के भरोसे छोङ दिया और फ्रांस पर टूट पङा। फ्रांस पर आक्रमण करने के लिये बेल्जियम ने जर्मन सेनाओं को रास्ता देने से मना कर दिया तो जर्मन फौजें बलपूर्वक उसकी सीमा में घुस गई। इसी घटना ने इंग्लैण्ड को भी युद्ध में सम्मिलित कर दिया।

प्रथम विश्वयुद्ध : घटनाएँ

जर्मनी ने केवल एक मास में फ्रांस को जीतने की योजना बनाई थी, परंतु बेल्जियम की सेना ने उसकी योजना पर पानी फेर दिया बेल्जियम की सेना ने बङी बहादुरी के साथ जर्मन फौजों का सामना किया और 24 अगस्त तक उन्हें फ्रांस की ओर नहीं बढने दिया। इससे फ्रांस और इंग्लैण्ड को युद्ध की तैयारी का थोङा समय मिल गया।

16 अगस्त तक इंग्लैण्ड के 1,10,000 सैनिक फ्रांस पहुँच चुके थे, परंतु मान्स के युद्ध में जर्मन फौजों ने इंग्लैण्ड और फ्रांस की संयुक्त सेना को बुरी तरह से पराजित किया। अब पेरिस केवल केवल 25 मील दूर रह गया था और सभी को आशा थी कि जर्मन फौजें बहुत जल्दी पेरिस पर अपना अधिकार जमा लेंगी, परंतु मार्न चमत्कार ने जर्मनी की आशा को धूमिल कर दिया।

9 सितंबर को अंग्रेजों की एक सेना मार्न नदी को पार करके जर्मन सेना को बुरी तरह से पराजित करके एन नदी तक पीछे खदेङ दिया। इस प्रकार, पेरिस खतरे से बच गया। जर्मन सेना एन नदी पर खाइयाँ खोदकर डट गई। मित्र राष्ट्रों ने भी वैसा ही किया। उन्होंने भी खाइयाँ खोदकर मोर्चाबंदी कर ली।

शीघ्र ही दोनों पक्षों की खाइयों की पंक्तियों स्विट्जरलैण्ड की उत्तरी सीमा से लेकर बेल्जियम के उत्तरी किनारे तक फैल गई और कई महीनों तक दोनों पक्ष खाइयों की यह लङाई लङते रहे। 1918 ई. तक किसी भी पक्ष को कोई उल्लेखनीय सफलता नहीं मिली और इस प्रकार युद्ध का पश्चिमी मोर्चा अपेक्षाकृत शांत बना रहा।

परंतु बेल्जियम में प्रारंभिक प्रतिरोध के बाद जर्मन सेना को पर्याप्त सफलता मिली। उसने संपूर्ण बेल्जियम को रौंद डाला।10 अक्टूबर को जर्मन सेना ने एण्टवर्प पर अधिकार कर लिया।

इसके बाद उसने केले के बंदरगाह को लेने की योजना बनाई, क्योंकि यह बंदरगाह इंग्लिश चैनल के नजदीक था और यहाँ से इंग्लैण्ड पर आक्रमण करने की सुविधा थी, परंतु एंग्लो-फ्रेंच सेनाओं ने सेर नदी के तट की सख्त नाकेबंदी के द्वारा जर्मनी को अपनी योजना छोङने के लिये मजबूर कर दिया।

इसी बीच, जर्मनी की एक अन्य सेना ने फ्रांस पर आक्रमण किया और फ्रांसीसी किलेबंदी को नष्ट करके उत्तरी-पूर्वी फ्रांस के एक बहुत बङे भाग पर अपना अधिकार जमा लिया। इस प्रदेश में फ्रांस की कच्चे लोहे तथा कोयले की खानें थी। जर्मनी ने अबबर्दून, रैन्स तथा सेरन नदी पर अपना मोर्चाबंदी जमा ली।

पूर्वी मोर्चा

युद्ध शुरू होते ही रूसी सेनाओं ने तेजी के साथ प्रमाण करके पूर्वी प्रशा पर आक्रमण कर दिया। आरंभ में रूसी सेना को कुछ सफलता मिली, परंतु 26 अगस्त को प्रसिद्ध जर्मन सेनानायक हिण्डेनबर्ग ने डेनबर्ग के युद्ध में रूसियों को बुरी तरह से पराजित किया और रूसी सेना को भागकर अपने ही सीमान्तों में जाना पङा।

इस युद्ध में रूस के लगभग 80,000 सैनिक मारे गए। इसके बाद , रूस की एक अन्य सेना ने आस्ट्रिया पर आक्रमण किया और गेलेशिया के प्रदेश पर अधिकार कर लिया। इसके बाद रूस की एक अन्य सेना ने आस्ट्रिया पर आक्रमण किया और गेलेशिया के प्रदेश पर अधिकार कर लिया।

इसके बाद कोर्पोथियन के दर्रे पर भी रूसियों का अधिकार कायम हो गया। यहाँ से रूस की योजना हंगरी पर आक्रमण करने की थी, परंतु जर्मन सेनापति मेकेन्सन ने रूसियों को पराजित करके गेलेशिया से भाग दिया। इसके पश्चात आस्ट्रो-जर्मन सेनाओं ने वारसा पर आक्रमण किया और रूसियों को पराजित होना पङा।

थोङे ही समय में जर्मन सेना ने पोलैण्ड के कई प्रमुख नगरों पर अधिकार कर लिया और रूस के कूरलैण्ड, लिवोनिया, एस्थोनिया आदि प्रदेशों पर भी अधिकार जमा लिया।

प्रथम विश्वयुद्ध : घटनाएँ

नवंबर, 1914 में तुर्की भी मित्र राष्ट्रों के विरुद्ध जर्मनी का पक्ष लेकर युद्ध में सम्मिलित हो गया। इस पर अंग्रेजों ने मिस्त्र के खदीव को राजच्युत कर दिया और मिस्त्र को तुर्की से पृथक कर दिया। अंग्रेजों ने अपनी कूटनीति तथा प्रलोभन के द्वारा अरबों को तुर्की के विरुद्ध भङका दिया।

डार्डेनेलीज के जल संजकों पर तुर्की का अधिकार था और उसने रूस तथा अन्य मित्र राष्ट्रों का यातायात बंद कर दिया, जिससे रूस अकेला पङ गया और मित्र राष्ट्र उसे सहायता न पहुँचा सके। एंग्लो-फ्रेंच सेना ने डार्डेनेलीज पर अधिकार करने की योजना बनाई, परंतु इसमें मित्र राष्ट्रों को भारी क्षति उठानी पङी।

उनके हजारों सैनिक मारे गए। वस्तुतः इस मार्ग से तुर्की पर आक्रमण करना भयंकर भूल थी, जिसका परिणाम उनको भुगतना पङा।

सर्बिया की पराजय

युद्ध के शुरू में सर्बिया की अल्पसंख्यक सेना ने बङी बहादुरी के साथ आस्ट्रियन सेना का मुकाबला किया और एक दो स्थानों पर उसे पराजित करने में सफल भी रही, परंतु उसी समय बल्गेरिया ने जर्मनी के पक्ष में युद्ध की घोषणा कर दी और उसने दक्षिण की तरफ से सर्बिया पर आक्रमण क दिया। छोटा सा सर्बिया तीन देशों की सेनाओं के सामने अधिक समय तक युद्ध में न टिक सका और संपूर्ण सर्बिया पर केन्द्रीय सत्ता (धुरी राष्ट्र) का शासन थोप दिया गया।

1916 की घटनाएँ

पश्चिमी मोर्चा

एंग्लो-फ्रेंच सेनाओं को अलग-थलग करने की दृष्टि से जर्मन सेना ने 21 फरवरी, 1916 को फ्रांस के मुख्य द्वार बर्दून पर आक्रमण कर दिया, परंतु फ्रांसीसी सेना भी डट गई। उसने जर्मन सेना की प्रगति को रोक दिया और फिर प्रत्याक्रमण कर उसे पराजित कर दिया।

जर्मन सेना की इस पराजय से उसका बर्दून अभियान शिथिल पङ गया और फ्रांसीसी सेना ने अपनी किलेबंदी को मजबूत तथा सुरक्षित बना लिया। जुलाई से नवंबरके मध्य साम नदी के आस-पास दोनों पक्षों में विनाशकारी युद्ध चलता रहा, जिसमें दोनों को ही भारी क्षति उठानी पङी और स्थिति में विशेष परिवर्तन भी नहीं हुआ। इस युद्ध की विशेष घटना है – अंग्रेजों द्वारा पहली बार टैंकों का प्रयोग करना।

इटालियन मोर्चा

इटली द्वारा मित्र राष्ट्रों का पक्ष लेकर युद्ध में सम्मिलित हो जाने पर आस्ट्रिया ने इटली पर आक्रमण करने का निश्चय किया। जिस समय जर्मन सेनाएँ बर्दून पर आक्रमण कर रही थी, उसी समय आस्ट्रियन सेना ने इटली पर आक्रमण कर दिया। उसका उद्देश्य वेनेशिया प्रांत पर अधिकार जमाना था, परंतु इटली के सैनिक बहादुरी के साथ लङे और अपार क्षति के बाद भी उन्होंने आस्ट्रियन सेना की प्रगति को रोके रखा।

उसी समय रूस ने पूर्व की तरफ से आस्ट्रिया पर आक्रमण कर दिया, अतः आस्ट्रिया को वेनेशिया विजय की योजना छोङकर अपनी रक्षा करने के लिये जुट जाना पङा। इससे इटली को राहत मिल गई।

पूर्वी मोर्चा

जून, 1916 तक रूस ने अपनी पिछली क्षति की पूर्ति कर ली और ब्रूसीलॉव के नेतृत्व में रूसी सेना पुनः आक्रमण के लिये तैयार हो गयी। इस बार रूसी सेना गेलीशिया में घुस पङी और बुकोविना पर अधिकार कर लिया और फिर लेम्बर्ग की ओर बढने लगी।

इस बार हजारों आस्ट्रियन सैनिकों को युद्धबंदी बनाया गया और आस्ट्रियन फौजों को अपने कई ठिकानों से पीछे हटना पङा, परंतु जर्मन सेनानायक हेण्डेनबर्ग ने समय पर सहायता भेजकर रूसी प्रगति को रोक दिया। इससे रूसियों का हौंसला पस्त हो गया। इसी समय इटली ने अवसर का लाभ उठाकर गोरिजिया पर अधिकार कर लिया और उसकी सेनाएँ ट्रिस्ट की तरफ बढने लगी, परंतु मित्र राष्ट्रों में निर्धारित योजनानुसार काम करने की कमी से इससे कोी विशेष लाभ नहीं हुआ।

रूमानियन युद्ध

रूस तथा इटली की सफलताओं से प्रोत्साहित होकर रूमानिया भी मित्र राष्ट्रों का पक्ष लेकर युद्ध में सम्मिलित हो गया। उसकी सेनाओं ने शीघ्रता ही ट्रान्सिलवानिया के एक बङे भाग पर अधिकार जमा लिया, परंतु सितंबर में मेकेन्सन डोब्रूजा जा पहुँचा और पश्चिम की तरफ हिण्डेनबर्ग भी आ पहुँचा।

रूमानिया ने जर्मनी के इन दो प्रसिद्ध सेनानायकों का वीरतापूर्वक सामना किया, परंतु उसे परास्त होना पङा। 6 दिसंबर तक उसकी राजधानी बुखारेस्ट पर जर्मन सेनाओं का अधिकार हो गया। रूमानिया की विजय से धुरी राष्ट्रों के अधिकार में रूमानिया के गेहूँ तथा तेल के प्रचुर साधन प्राप्त हो गए।

सामुद्रिक लङाई

यद्यपि स्थल युद्ध में मित्र राष्ट्रों को कई बार अपमानित होना पङा, परंतु समुद्र पर इंग्लैण्ड की नौ-सेना ने अपना प्राधान्य अक्षुण्ण रखा। जर्मन नौ-सेना ने जटलैण्ड के पास अवरोध को तोङने का प्रयत्न किया। 31 मई को एजमिरल बीटी ने जर्मन जहाजों पर आक्रमण किया, युद्ध अनिर्णायक रहा, परंतु इंग्लैण्ड के तीन जहाज डूब गए।

उसके स्थान पर जान जेलिको को नियुक्त किया गया। इस बार जर्मन जहाजों को ऐसा सबक सिखाया गया कि भविष्य में उन्होंने अपने अड्डों से निकलकर ब्रिटिश नौ सेना का मुकाबला करने का साहस नहीं किया। ब्रिटिश नौ सेना तथा जापानी नौ सेना के कारण जर्मनी को अपने तटबंदी की कि उपनिवेशों के साथ उनका संपर्क टूट गया।

1917 की घटनाएँ

पश्चिमी मोर्चा

1917 के प्रारंभ में जर्मन सेनाओं ने अपनी रक्षा पंक्ति को सीमित बनाकर हिण्डेनबर्ग रक्षा पंक्ति का निर्माण किया। एंग्लो-फ्रेंच सेनाओं ने इस रक्षा पंक्ति को तोङने का अथक प्रयास किया, परंतु लगभग 3 लाख सैनिकों को खोकर भी उन्हें केवल तीन हजार गज भूमि का टुकङा ही प्राप्त हो सका।

यद्यपि इस मोर्चे पर ब्रिटिश टैंकों ने कुछ समय के लिये जर्मन फौंजों को विचलित कर दिया था, परंतु जर्मन सेना अपने मोर्चे पर डटी रही।

इटालियन मोर्चा

जर्मन का मुख्य उद्देश्य अपने विश्वासघातक मित्र इटली को बुरी तरह से पराजित करने का था। सर्बिया और रूमानिया पर धुरी राष्ट्रों का अधिकार हो चुका था, अतः अब इटली पर जबरदस्त प्रहार किया गया।

इटली की सेना दुश्मन की इस मार का मुकाबला न कर सकी और परास्त होकर उसे अपने कई ठिकानों से पीछे हटना पङा। पियाव नदी पर इटली की दृढ रक्षा पंक्ति तथा समय पर एंग्लो-फ्रेंच सेनाओं की सहायता से इटली की सुरक्षा हो गई और दुश्मन को पीछे धकेल दिया गया।

रूस की राज्य क्रांति

इस साल की प्रमुख घटना थी, रूस की राज्य क्रांति। शताब्दियों से चले आ रहे निरंकुश जारों का शासन समाप्त कर दिया गया और रूस में जनतांत्रिक शासन व्यवस्था कायम कर दी गई। यह मार्च, 1917 में घटित हुआ। नई सरकार ने युद्ध को जारी रखा परंतु लेनिन के नेतृत्व में बोल्शेविक दल युद्ध को बंद करके रोटी रोजी की समस्या को हल करना चाहता था, अतः क्रांति के बाद रूस में गृह-कलह का सूत्रपात हो गया, जिसमें रूस लेनिन और उसके दल को सफलता मिली।

7 नवंबर, 1917 को जनतांत्रिक सरकार का तख्ता पलट दिया गया और लेनिन के नेतृत्व में बोल्शेविक सरकार की स्थापना की गई, जिसने दिसंबर, 1917 में जर्मनी के साथ ब्रेस्टलिटोवस्क की संधि कर ली। इस प्रकार, रूस प्रथम महायुद्ध से अलग हो गया, यद्यपि इसके लिये उसे काफी बङी कीमत चुकानी पङी। मित्र राष्ट्रों के लिये यह संधि एक भयंकर आघात थी। इससे उनकी शक्ति कमजोर हो गई जबकि जर्मनी के हौंसले बढ गए।

अमेरिका का युद्ध में शामिल होना

रूस के पृथक हो जाने से मित्र राष्ट्रों को जो क्षति पहुँची थी, उसे अमेरिका ने दूर कर दिया। उसने मित्र राष्ट्रों का पक्ष लेकर जर्मनी के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी। जब महायुद्ध शुरू हुआ था तब अमेरिका ने तटस्थ रहने की घोषणा की थी, परंतु निम्नलिखित कारणों से उसे अपनी तटस्थता का त्याग करना पङा

जर्मन पनडुब्बियाँ प्रत्येक राष्ट्र के सैनिक तथा व्यापारिक जहाजों को डुबो रही थी। जब उन्होंने अमेरिका के लूसिटानिया जहाज को भी डुबो दिया तो अमेरिका का क्रोधित होना स्वाभाविक ही था। इस जहाज के साथ लगभग 100 अमेरिकन नागरिकों को भी अपने प्राणों से हाथ धोना पङा था।

बेलिज्यम की तटस्थता को भंग करने तथा रैन्स के प्राचीन गिरजाघर को नष्ट कर देने से अमेरिकन जनता में जर्मनी के विरुद्ध काफी उत्तेजना फैल गई थी।

अमेरिकन लोगों को अभी यह बात याद थी कि उनके स्वतंत्रता संघर्ष में लाखाों फ्रेंच नागरिकों ने भाग लिया था। आज जब उन्हीं फ्रेंचजनों को जर्मन सेनाएँ बर्बरतापूर्वक मौत के घाट उतार रही थी तो वे फ्रांस की सहायता के लिये अपनी सरकार से माँग करने लगे।

अमेरिका की मातृभूमि अथवा जननी ग्रेट जर्मनी के विरुद्ध युद्धरत था और रूस के पृथक हो जाने से ब्रिटेन तथा उसके साथियों की स्थिति नाजुक हो गई थी। ऐसी स्थिति में अमेरिका द्वारा उसकी सहायता करना स्वाभाविक ही था।

1918 की घटनाएँ

रूस के पृथक हो जाने से जर्मनी पूर्वी मोर्चे से निश्चित हो गयी और उसने अपनी संपूर्ण शक्ति पश्चिमी मोर्चे की तरफ लगा दी। हिण्डेनबर्ग रक्षा पंक्ति के दक्षिण की तरफ फ्रांसीसियों की और उत्तर की तरफ अंग्रेजों की मजबूत मोर्चाबंदी थी। जर्मनी की योजना दोनों मोर्चाबंदियों के मध्य आक्रमण करने की थी ताकि उन दोनों का संपर्क समाप्त किया जा सके।

फलस्वरूप प्रथम आक्रमण अंग्रेजों की रक्षा पंक्ति की तरफ किया गया और ब्रिटिश फौजों को आमीन तक पीछे हटना पङा। ऐसा प्रतीत होता था कि आमीन पर भी जर्मनी का अधिकार हो जाएगा, परंतु फ्रेंच सेना की सहायता से ब्रिटिश फौजों ने जर्मन सेना की प्रगति को रोक दिया। इसके बाद जर्मन सेनाओं ने दक्षिण की तरफ फ्रांसीसियों पर आक्रमण किया।

फ्रांसीसियों को परास्त होकर पीछे हटना पङा और सोअरसो तथा शातोथियोरी पर जर्मनी का अधिकार हो गया। जर्मन सेनाएँ आगे बढती गयी और पेरिस केवल 40 मील दूर रह गया, परंतु उसी समय फ्रांसीसियों ने पूरी शक्ति के साथ आक्रमण किया और जर्मन सेना की प्रगति सेना की प्रगति रोक दी गयी।

जर्मनी की पराजय

जर्मनी की सफलताओं ने मित्र राष्ट्रों को यह सबक सिखा दिया कि जब तक वे आपसी एकता तथा सहयोग से काम नहीं करेंग तब तक जर्मनी को परास्त करना संभव नहीं होगा। परिणामस्वरूप अप्रैल, 1918 में फर्डिनैण्ड फ्रांच को मित्र राष्ट्रों की सेनाओं का सर्वोच्च सेनापति नियुक्त किया गया। जुलाई तक लगभग 10 लाख अमेरिकन सैनिक भी फ्रांस पहुँच गए।

इससे मित्र राष्ट्रों की शक्ति में चौगुनी वृद्धि हो गई। 15 जुलाई को जर्मन फौजों ने पेरिस की तरफ रवानगी की, परंतु उन्हें बुरी तरह परास्त होकर वापस लौटना पङा। इसके बाद मित्र राष्ट्रों ने प्रत्याक्रमण किया और जर्मन फौजों को भागकर हिण्डेनबर्ग रक्षा पंक्ति का आश्रय लेना पङा।

जर्मनी के आंतरिक साम्राज्य में आंतरिक विद्रोह भी उठने लग गए। सर्वप्रथम यूक्रेनिया के लोगों ने विद्रोह का झंडा फहराया। इसके बाद फिनलैण्ड में भी गृह युद्ध शुरू हो गया। उधर मित्र राष्ट्रों के सर्वोच्च सेनापति फ्रांच ने अपनी सेनाओं का पुनर्गठन किया और बाल्कन प्रायद्वीप में अपनी गतिविधियाँ बढा दी। जर्मनी और आस्ट्रिया बाल्कन में सैनिक सहायता न पहुँचा सके और अकेले बल्गेरिया को मित्र राष्ट्रों का सामना करना पङा।

वह अधिक समय तक मैदान में न टिक सका और 29 सितंबर, 1918 को बल्गेरिया ने आत्म-समर्पण कर दिया। मध्य-पूर्व में अरबों ने विद्रोह करके तुर्की की शक्ति को कमजोर बना दिया। मित्र राष्ट्रों ने अरबों की सहायता से सीरिया, मेसोपोटामिया आदि प्रदेशों पर अपना अधिकार कर लिया।

जर्मनी अपने साथी तुर्की को किसी प्रकार की सहायता न पहुँचा सका और विवश होकर 31 अक्टूबर, 1918 को तुर्की को मित्र राष्ट्रों के सामने आत्म-समर्पण करना पङा।

अब जर्मनी केवल आस्ट्रिया की सहायता पर निर्भर था, परंतु आस्ट्रिया की आंतरिक स्थिति भी काफी नाजुक हो चुकी थी। उसके साम्राज्य की विभिन्न जातियाँ अपनी स्वतंत्रता के लिये संघर्ष की तैयारी कर रही थी और उनमें से कुछ को मित्र राष्ट्रों का सहयोग एवं समर्थन भी मिलना शुरू हो गया था।

इधर इटली ने आस्ट्रिया पर जबरदस्त आक्रमण कर रखा था और इटालियन सेनाओं ने ट्रेण्ट तथा ट्रिस्ट पर अधिकार कर लिया था। इस प्रकार आस्ट्रिया की स्वयं की स्थिति डगमगा रही थी और उसकी लङखङाती स्थिति को सम्भालना जर्मनी की सीमा से बाहर था। परिणामस्वरूप 3 नवंबर, 1918 को आस्ट्रिया ने भी मित्र राष्ट्रों के सम्मुख आत्म-समर्पण कर दिया। 11 नवंबर को आस्ट्रियन सम्राट ने सिंहासन त्याग दिया।

अब केवल जर्मनी बच गया। उसे संपूर्ण विश्व के सम्मुख अकेले लङना था और अकेले जर्मनी के लिये इस महान चुनौती का सामना करना असंभव था, अतः 9 नवम्बर, 1918 को जर्मन सम्राट कैसर विलियम द्वितीय ने भी सिंहासन त्याग दिया। 10 नवम्बर को जर्मनी में राजतंत्र का अंत हो गया और साम्यवादी नेता फ्रेडरिक के नेतृत्व में जर्मन को युद्ध बंद करने का आदेश दिया। युद्ध विराम के लिये मित्र राष्ट्रों की तरफ से निम्न शर्तें प्रस्तुत की गयी थी –

  1. जर्मन सेनाएँ जीते हुये प्रदेशों तथा आल्सेस-लारेन के प्रदेशों को दो सप्ताह में खाली कर देंगी।
  2. जर्मन सेनाएँ राइन के पश्चिमी तट को खाली करके पुर्व की तरफ जर्मनी सीमा में चली जाएँगी।
  3. आस्ट्रिया, रूस तथा तुर्की में स्थित जर्मन फौजों को तत्काल हटा लिया जाएगा।
  4. जर्मन के अधिकार में मित्र राष्ट्रों की जो युद्ध-सामग्री है, उसे यथाशीघ्र वापस लौटा दिया जाय।

पराजित जर्मनी के सामने मित्र राष्ट्रों की शर्तें स्वीकार करने के अलावा अन्य कोई विकल्प नहीं था, अतः 11 नवम्बर, 1918 के दिन उसने युद्ध-विराम संधि पर हस्ताक्षर कर दिए। इसी के साथ प्रथम महायुद्ध का अंत हुआ।

1. पुस्तक- आधुनिक विश्व का इतिहास (1500-1945ई.), लेखक - कालूराम शर्मा

Online References
wikipedia : प्रथम विश्वयुद्ध : घटनाएँ

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