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फ्रांसीसी उपनिवेशों की मुक्ति

स्वतंत्रता के बाद भारतीय भूमि पर कुछ फ्रांसीसी और पुर्तगाली बस्तियाँ रह गई थी। जिन पर हमारा शासन नहीं था। भारत सरकार ने इन बस्तियों के बारे में फ्रांस तथा पुर्तगाल की सरकारों से बातचीत की। फ्रांस की सरकार ने अपनी बस्तियाँ भारत सरकार को सौंपना स्वीकार कर लिया और 1 नवंबर, 1954 को पाण्डिचेरी, यनाम, माही, चंद्रनगर और कैरीकल की बस्तियाँ सौंप दी।

इन बस्तियों का शासन केन्द्रीय सरकार एक प्रमुख आयुक्त के माध्यम से चलाने लगी।

गोवा, दमन और दीव की मुक्ति-

फ्रांस की सरकार ने तो आपसी बातचीत के बाद भारतीय भूमि पर स्थित अपनी बस्तियाँ भारत सरकार को सौंप दी, परंतु पुर्तगाल की सरकार ने भारत भूमि से अपनी सत्ता को समाप्त करने से इंकार कर दिया। उधर भारतीय देशभक्त इन बस्तियों को आजाद कराने के लिए जोरदार संघर्ष कर रहे थे। पुर्तगाली शासन अमानवीय तरीके से आंदोलनकारियों को कुचल रहा था।

ऐसी स्थिति में भारत सरकार ने अपनी भूमि से विदेशी शासन के अंतिम अवशेष को समाप्त करने के लिए उसके विरुद्ध सैनिक कार्यवाही करने का निश्चय किया और 18 दिसंबर, 1961 को भारतीय सेना ने पुर्तगाली बस्तियों पर आक्रमण कर दिया।

केवल दो दिन के संघर्ष के बाद तमाम पुर्तगाली बस्तियों पर भारत का अधिकार हो गया। अब भारत-भूमि के किसी क्षेत्र पर विदेशी शासन नहीं रहा।

उपनिवेशवाद का अंतिम शासन केन्द्र सरकार के हाथ में ले लिया। अपने अधिकार को कानूनी जामा पहनाने के लिये संसद में संशोधन विधेयक रखा गया, जिसे निर्विरोध पास कर दिया गया। तब से गोवा, दमन और दीव भारतीय गणराज्य के अभिन्न अंग बन गये।

Reference : https://www.indiaolddays.com/

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