आधुनिक भारतइतिहास

भारत में कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना

कम्युनिस्ट पार्टी

भारत में वामपंथी आंदोलन का उदय आधुनिक उद्योगों के विकास, दो विश्व युद्धों के मध्यकाल में भयंकर आर्थिक मंदी तथा रूस में बोल्शेविक क्रांति के परिणामस्वरूप हुआ।

भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) ( Communist Party of India) भारत का एक साम्यवादी दल है। भारतीय कम्युनिष्ट पार्टी की स्थापना एम एन राय ने की।

मानवेन्द्र नाथ राय (नरेन्द्र नाथ भट्टाचार्य ) ने सोवियत संघ की यात्रा कर रुसी कम्युनिस्ट पार्टी से संबंध स्थापित किया।

अक्टूबर, 1920 में मानवेन्द्र नाथ ने ताशकंद में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना की।

राजा महेन्द्र प्रताप के नेतृत्व में भारतीयों का पहला प्रतिनिधि मंडल लेनिन से मिला, लेनिन से इस प्रतिनिधि मंडल को वर्ग संघर्ष की प्रेरणा मिली।

1921 में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्य थे- मानवेन्द्रनाथ, ए.टी.का. अवनी मुखर्जी, रोजा फिटिग्राफ, मोहम्मद अली, मोहम्मद शफीक आदि।

भारत में कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना के उद्देश्य से मानवेन्द्र नाथ राय अप्रैल, 1922 को भारत आये।

इस समय भारत में मार्क्सवादी विचारधारा का प्रचार-प्रसार करने में निम्नलिखित पत्रिकायें संलग्न थी- दी सोशलिस्ट(श्री पाद अमृत डांगे),नव युग(मुजफ्फर अहमद),बंगाल(काजी नजरुल),इंकलाब( गुलाम हुसैन पंजाब),लेबर किसान गजट (सिंगावरवेलु चेट्टियार मद्रास), वर्तमान(कानपुर), प्राणवीर(नागपुर,महाराष्ट्र) आदि।

भारत में साम्यवादी पार्टी की स्थापना की दिशा में प्रयासरत नेताओं को 1924 में सरकार ने गिरफ्तार कर उन पर कानपुर षड्यंत्र केस के अंतर्गत मुकदमा चलाया।

कानपुर षड्यंत्र केस के अंतर्गत साम्यवादी नेता मानवेन्द्र नाथ राय, सिंगारवेलु चेट्टियार , मुजफ्फर अहमद , श्री पाद अमृत डांगे, गुलाम हुसैन, रामचरण लाल शर्मा आदि पर सरकार के विरुद्ध षड्यंत्र रचेने, क्रांतिकारी गतिविधियों को संचालित करने,भारत में साम्राज्ञी की सत्ता को उखाङने का आरोप लगा कर मुकदमा चलाया गया।

1921 से 1925 के बीच भारत में अनेक स्थानों पर औपचारिक साम्यवादी गुटों की स्थापना हुई, अंतिम रूप से 1 दिसंबर, 1925 को भारत में साम्यवादी दल की स्थापना की घोषणा हुई।

27 दिसंबर,1925 को कानपुर में सत्यभक्त के नेतृत्व में अखिल भारतीय साम्यवादी दल का गठन हुआ।भारत के लिए पूर्ण स्वाधीनता की मांग करने वाली अखिल भारतीय साम्यवादी दल पहली पार्टी थी। इस पार्टी ने घोषणा की कि राजनीतिक स्वतंत्रता एक साधन है और आर्थिक स्वतंत्रता एक लक्ष्य है।

1923-27 के बीच भारत में मजदूर किसान पार्टियों की स्थापना की दिशा में प्रयास किया गया, जिसका प्रमुख उद्देश्य था मजदूरों, किसानों एवं नौजवानों में प्रगतिशील राजनीतिक विचारों का प्रचार – प्रसार करना।

लेबर स्वराज्य पार्टी नाम से भारत की पहली मजदूर किसान पार्टी की स्थापना बंगाल में की गई।

मजदूर किसान पार्टी ने कांग्रेस के अंदर एक शक्तिशाली वामपक्ष बनाने में तथा भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन को वामपक्ष की ओर झुकने मे उल्लेखनीय योगदान दिया।

1927-29 के बीच मजदूर किसान पार्टी ने भारत में मजदूरों के संघर्ष को उभारने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।

1927 में भारत में पहलीबार 1 मई को मई दिवस मनाया गया, जो भारत में मजदूरों की बढती हुई राजनीतिक चेतना की सूचक थी।

मजदूरों, किसानों तथा अन्य श्रमजीवी वर्ग में बढ रहे साम्यवादी प्रभाव को समाप्त करने के उद्देश्य से सरकार ने 1928 में पब्लिक सेफ्टी बिल पेश किया। पब्लिक सेफ्टी बिल के कानून बनने पर 1929 में लगभग 31 साम्यवादी नेताओं को गिरफ्तार कर सरकार ने उन पर मेरठ षड्यंत्र केस के अंतर्गत मुकदमा चलाया।

1929 में मेरठ षड्यंत्र केस के अंतर्गत जिन पर मुकदमा चलाया गया उनमें तीन ब्रिटिश नागरिक फिलिप स्प्रेट,बेन ब्रैडले, लेस्टर हचिन्सन भी शामिल थे। मेरठ षड्यंत्र केस में फंसे अभियुक्तों को बचाने के लिए राष्ट्रवादी नेता जवाहर लाल नेहरू, एम.ए.अंसारी, कैलाश नाथ काटजू, एम.सी.छागला आदि ने पैरवी की।

1929 के अंतिम चरण में भारतीय साम्यवादियों ने अपने को राष्ट्रीय कांग्रेस से पृथक कर उसे पूंजीपतियों की पार्टी घोषित कर दिया तथा सुभाझा और जवाहरलाल नेहरू को पूंजीपतियों का एजेन्ट बताया।

12 मार्च,1930 को गांधी द्वारा शुरु किये गये सविनय अवज्ञा आंदोलन को साम्यवादियों ने भारत में सशस्त्र क्रांति का उचित मार्ग समझा और आंदोलन जो अहिंसक था उसे कई स्थानों पर हिंसक रूप प्रदान कर दिया।

सविनय अवज्ञा आंदोलन को हिंसात्मक होता देख कर गांधी ने आंदोलन को स्थगित कर इरविन से समझौता किया।साम्यवादियों (भारत में) ने गांधी – इरविन समझौते को राष्ट्रवाद के साथ कांग्रेसी विश्वासघात की संज्ञा दी।

साम्यवादियों के भारत में बढ रहे प्रभाव से चिंतित ब्रिटिश सरकार ने 1934में भारतीय साम्यवादी दल पर प्रतिबंध लगा दिया। यह प्रतिबंध 1942तक लगा रहा।

1935 में साम्यवादी दल एक बार फिर कांग्रेस के निकट आया और इस बात को स्वीकार किया कि कांग्रेस भारत की जनता का केन्द्रीय जन संगठन है जो साम्राज्यवाद के विरोध में खङा है।

1939 में पी.सी.जोशी ने नेशनल फ्रंट में लिखा कि आज हमारा सबसे बङा वर्ग-संघर्ष राष्ट्रीय संग्राम है और कांग्रेस इसका मुख्य अंग है।

अक्टूबर,1934 में कांग्रेस समाजवादी दल का गठन कांग्रेस के भीतर हुआ। इस दल के प्रमुख सदस्य- जय प्रकाश नारायण,आचार्य नरेन्द्र देव,अच्युत पटवर्धन,अशोक मेहता,मीनू मसानी,डॉ. राम मनोहर लोहिया, कमलादेवी चट्टोपाध्याय, गंगा शरण सिंह,युसुफ मेहराले आदे थे।

सुभाष चंद्र बोस और जवाहरलाल नेहरु के समर्थन के बाद स्थापित कांग्रेस समाजवादी दल का मुख्य उद्देश्य कांग्रेस की भीतर ही रहकर कांग्रेस के समाजवादी मूल्यों से आबद्ध करना तथा इसकी बुनियादी नीतियों को बचाये रखना।

समाजवाद ही क्यों? नामक पुस्तक की रचना जयप्रकाश नारायण तथा समाजवाद एवं राष्ट्रीय आंदोलन नामक पुस्तक की रचना आचार्य नरेन्द्र देव ने की।

रामगढ मे हुए कांग्रेस के अधिवेशन(1940) में एक क्रांतिकारी समाजवादी दल का गठन किया गया।यह संगठन अंग्रेजों के बाद भारत में समाजवाद की स्थापना करना चाहता था।

भारतीय बोल्शेविक दल की स्थापना 1939 में बंगाल में की गई, इस दल के संस्थापक सदस्य थे, मजदूर नेता एच. दत्त मजूमदार, अजीत राय, शिशिर राय तथा विश्वनाथ दूबे।

1937 में मानवेन्द्र नाथ राय ने लीग ऑफ रेडिकल कांग्रेस मैन तथा सौम्येन्द्रनाथ टैगोर ने क्रांतिकारी साम्यवादी दल की स्थापना की।

द्वितीय विश्वयुद्ध(1939) शुरु होने पर भारतीय साम्यवादियों ने इसे लोकयुद्ध (People’s War) की संज्ञा दी ।

1942 के भारत छोङो आंदोलन का प्रारंभ में साम्यवादियों ने समर्थन किया, लेकिन कांग्रेस द्वारा सरकार के युद्ध (द्वितीय विश्व युद्ध) प्रयासों का समर्थन न करने पर साम्यवादियों ने अपने को आंदोलन से अलग कर लिया।

1946 में हुए नौसेना विद्रोह का साम्यवादियों द्वारा समर्थन किया गया।

Reference : https://www.indiaolddays.com/

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