इतिहासराजस्थान का इतिहास

मत्स्य संघ का निर्माण कैसे हुआ

मत्स्य संघ – 15 अगस्त, 1947 ई. को स्वतंत्रता के साथ ही देश का विभाजन हो गया और इस विभाजन के पूर्व ही भारतीय उप महाद्वीपों में साम्प्रदायिक दंगे भङक उठे थे। अलवर और भरतपुर की रियासतें भी इन दंगों से अछूती न रह सकी। अलवर राज्य में रहने वाली मेव जाति ने राज्य में अशांति और आतंक फैला दिया था और इस आतंक ने भरतपुर राज्य को भी अपनी चपेट में ले लिया था। इस समय अलवर राज्य के दीवान डॉ. एन.बी.खरे थे, जो वायसराय की कार्यकारिणी के सदस्य रह चुके थे, फिर वे काँग्रेस पार्टी के सदस्य भी रहे और बाद में हिन्दू महासभा के अध्यक्ष बन गये थे। अलवर और भरतपुर में मेव व मुसलमानों का कत्लेआम तथा अलवर से मेवों को खदेङने के लिये उपयोग में लिए जाने वाले हथकंडों के कारण भारत सरकार को इस प्रकार की शिकायतें मिली कि अलवर में दंगे भङकाने में अलवर के महाराजा तेजसिंह और दीवान डॉ. एन.बी.खरे का हाथ है। अलवर और भरतपुर में बिगङती हुई कानून और व्यवस्था की स्थिति को देखते हुए सरदार पटेल ने अक्टूबर, 1947 ई. में संबंधित राज्यों तथा प्रांतीय प्रतिनिधियों का एक सम्मेलन आयोजित किया जिसमें महाराजा तेजसिंह और डॉ.खरे को भी बुलाया गया। इस बैठक में सरदार पटेल ने साम्प्रदायिक शांति और कानून एवं व्यवस्था बनाये रखने की आवश्यकता पर जोर दिया। सम्मेलन में उपस्थित सभी सदस्यों ने कानून एवं व्यवस्था बनाये रखने में सरकार को पूरा सहयोग देने का आश्वासन दिया, लेकिन सम्मेलन में डॉ.खरे का रवैया उचित नहीं था, क्योंकि डॉ. खरे ने अलवर के आंतरिक प्रशासन में भारत सरकार के हस्तक्षेप को पसंद नहीं किया।
राजस्थान में प्रजा मंडल आंदोलन

सम्मेलन की समाप्ति के कुछ दिन बाद अलवर और भरतपुर में व्याप्त साम्प्रदायिक तनाव के संबंध में भारत सरकार को पुनः शिकायतें मिलने लगी। अतः भारत सरकार के गृह मंत्रालय ने गुप्तचर विभाग से जाँच करवाने के बाद यह अनुभव किया कि अलवर राज्य में साम्प्रदायिक सद्भभावना स्थापित करने क लिए डॉ.खरे को पदच्युत करना उचित रहेगा। इसी बीच 30 जनवरी, 1948 ई. को दिल्ली में हिन्दू महासभा के कार्यकर्त्ता नाथूराम गोड्से ने महात्मा गाँधी की हत्या कर दी। इस हत्या के संबंध में तरह-तरह की अफवाहें फैलने लगी। डॉ.खरे के संबंध में यह अफवाह फैली कि डॉ. खरे हिन्दू महासभा के सक्रिय कार्यकर्त्ता होने के कारण अलवर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आर.एस.एस.) के कार्यकर्त्ताओं के प्रशिक्षण का महत्त्वपूर्ण केन्द्र बना हुआ है तथा अलवर राज्य ने गाँधीजी की हत्या के लिये उत्तरदायी कुछ षडयंत्रकारियों को शरण भी प्रदान की है। डॉ. खरे की कट्टर हिन्दूवादी विचारधारा के कारण ऐसी अफवाहों को काफी बल प्राप्त हो रहा था। भारत सरकार को भी इसी प्रकार की शिकायतें प्राप्त हो रही थी। अतः भारत सरकार ने अलवर राज्य का प्रशासन तत्काल प्रभाव से अपने हाथ में ले लिया तथा 7 फरवरी, 1948 ई. को अलवर के महाराजा तेजसिंह व डॉ. खरे को तब तक के लिये दिल्ली में ही रहने का आदेश दिया जब तक कि उनके विरुद्ध गाँधी हत्याकाण्ड में उनके हाथ होने के आरोप की जाँच पूरी नहीं हो जाती। उधर भरतपुर में भी साम्प्रदायिक दंगों से भारत सरकार इस निर्णय पर पहुँची कि वहाँ का प्रशासन राज्य में कानून और व्यवस्था बनाये रखने में सर्वथा निकम्मा सिद्ध हुआ है। इसके पहले कि भारत सरकार इस संबंध में कोई कदम उठाती, स्वयं भरतपुर के महाराजा ब्रिजेन्द्रसिंह ने भरतपुर का प्रशासन भारत सरकार को सौंप दिया।

गाँधी हत्याकांड में अलवर महाराजा और डॉ.खरे के हाथ होने के आरोपों की जाँच करने के लिये भारत सरकार ने एक जाँच समिति नियुक्त की थी। अलवर महाराजा और डॉ. खरे दिल्ली में एक प्रकार से नजरबंद थे और भारत सरकार का, उनके प्रति अपनाया गया रवैया काफी कठोर था। ऐसा करना तत्कालीन परिस्थितियों में अनिवार्य भी था, क्योंकि अल्पसंख्यकों का विश्वास अर्जित करने, उनमें आत्मविश्वास की भावना उत्पन्न करने तथा साम्प्रदायिक सद्भाव बनाये रखने के लिये ऐसा कदम उठाने के अतिरिक्त अन्य कोई विकल्प नहीं था। इसी बीच जाँच समिति ने अपनी जाँच पूरी कर ली तथा समिति ने अलवर महाराजा व खरे को निर्दोष घोषित कर दिया। अब अन रियासतों के भविष्य के बारे में निर्णय करना शेष रह गया था।

अलवर और भरतपुर राज्यों की सीमाओं में लगी हुई धौलपुर और करौली की दो छोटी-छोटी रियासतें थी। भारत सरकार की नीति विलीनीकरण और समूहीकरण की थी। ये चारों रियासतें भारत सरकार द्वारा निर्धारित मापदंड के अनुसार पृथक अस्तित्व बनाये रखने के योग्य नहीं थी। अतः यह सोचा गया कि इन चारों राज्यों को मिलाकर एक संघ निर्माण कर लिया जाय। जिस समय अलवर महाराजा और डॉ. खरे दिल्ली में ही थे तब भारत सरकार ने 27 फरवरी, 1948 ई. को चारों राज्यों के शासकों की बैठक दिल्ली में आयोजित की जिसमें भारत सरकार ने इन चारों रियासतों को मिलाकर संघ बनाने का प्रस्ताव रखा। बैठक में उपस्थित सभी ने प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। श्री कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी के आग्रह पर इस नये संघ का नाम मत्स्य संघ रखा गया, क्योंकि महाभारत काल में यह क्षेत्र मत्स्य प्रदेश के नाम से ही विख्यात था। मत्स्य संघ में सम्मिलित चारों राज्यों के शासकों को यह स्पष्ट कर दिया गया कि भविष्य में यह संघ, राजस्थान अथवा उत्तर प्रदेश प्रान्त में विलीन किया जा सकता है, क्योंकि आर्थिक दृष्टि से यह संघ आत्म-निर्भर नहीं हो सकेगा। इस नये संघ के राजप्रमुख धौलपुर के महाराजा को तथा उप-राजप्रमुख करौली के महाराजा को बनाया गया। इस मत्स्य संघ का विधिवत उद्घाटन भारत सरकार के मंत्री श्री एन.बी.गाडगिल ने 18 मार्च, 1948 ई. को किया। अलवर प्रजा मंडल के प्रमुख नेता श्री शोभाराम कुम्हावत मत्स्य संघ के प्रधानमंत्री बने, जिन्होंने राज्यों से एक-एक प्रतिनिधि लेकर चार सदस्यों का मंत्रिमंडल गठित किया। इस प्रकार राजस्थान के एकीकरण का प्रथम चरण पूरा हुआ।

References :
1. पुस्तक - राजस्थान का इतिहास, लेखक- शर्मा व्यास

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