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वर्साय की संधि की ओलाचना

वर्साय की संधि की ओलाचना

वर्साय की संधि की ओलाचना

वर्साय की संधि का अलग-अलग लोगों के लिये अलग-अलग अर्थ है। एक ओर मित्रराष्ट्रों के पक्षपाती इसमें लोकतंत्र, राष्ट्रीय आत्म-निर्णय, न्याय, कानून का शासन और सैनिकवाद के विरुद्ध सुरक्षा की विजय समझते थे, दूसरी ओर कुछ लोग इसे प्रतिशोध की प्रवृत्ति, आर्थिक अवास्तविकता और राष्ट्रीय अल्पसंख्यकों पर जुल्म का प्रतीक समझते थे।

वस्तुतः यह शांति संधि, आदर्शवादिता और नैतिकता दोनों का सम्मिश्रण थी और इसके साथ इसमें पुरानी शक्ति-प्रतिद्वन्द्विता का भी पुट था। इस संधि से जिन लोगों को लाभ हुआ उन्होंने इसमें राष्ट्रीय आत्म-निर्णय के स्वप्न को साकार होते देखा और जिन्हें नुकसान हुआ, उन्होंने इसे दुःखपूर्ण एवं लादी गयी संधि कहा।

वर्साय की संधि की आलोचना

लॉयड जार्ज ने ब्रिटिश संसद में कहा था कि प्रस्तावित संधि को जर्मनी के साथ किसी प्रकार का अन्याय नहीं कहा जा सकता। इस संधि पर केवल वहीं अन्याय का आरोप लगा सकता है जो जर्मनी के युद्ध कार्यों को भी न्यायसंगत ही समझता हो। गैथोर्न हार्डी ने तो यहाँ तक कहा है कि ऐसे आदर्श स्वरूप की शांति-संधि आज तक कभी नहीं की गई।

इसके विपरीत अनेक विद्वान वर्साय संधि की कटु आलोचना करते हैं। पंडित जवाहरलाल नेहरू के शब्दों में, मित्रराष्ट्र घृणा और प्रतिशोध की भावना से भरे हुए थे और वे पौण्ड भर मांस ही नहीं चाहते थे, अपितु जर्मनी के अधमरे शरीर से खून की आखिरी बूँद तक लेना चाहते थे। इसी प्रकार, फिलिप स्नोडेन ने कहा है कि यह एक शांति संधि नहीं वरन् दूसरे युद्ध की घोषणा है। यह जनतंत्र तथा युद्ध में वीरगति पाने वालों के साथ विश्वासघात है। वस्तुतः वर्साय की संधि में अनेक दोष थे।

अपमानजनक एवं कठोर शर्तें

वर्साय की संधि की शर्तें अत्यधिक कठोर एवं अपमानजनक थी और उनकी पूर्ति होना असंभव था। संधि निर्माताओं का मूल उद्देश्य जर्मनी को सदैव के लिये पंगु बनाकर उसे एक सबक सिखाना था। लॉयड जार्ज ने सपष्ट कहा था कि इस संधि की धाराएँ युद्ध में मृत शहीदों के खून से लिखी गई हैं।

जिन लोगों ने इस युद्ध को शुरू किया था उन्हें दुबारा ऐसा न करने की शिक्षा अवश्य देनी है। इससे साफ जाहिर है कि संधि की शर्तें प्रतिशोध की भावना से प्रेरित होकर बनाई गई थी। जर्मनी पर हर्जाने की विशाल धन राशि थोपी गई जिसे वह अदा नहीं कर सकता था। जर्मनी को अपमानजनक रूप में निशस्त्र किया गया जबकि मित्र राष्ट्र सशस्त्र बने रहे। उसके समस्त उपनिवेश छीन लिए गए। यूरोप में भी उसका बहुत बङा भू-भाग छीन लिया गया।

15 वर्ष के लिये उसका सार का प्रदेश भी ले लिया गया और राइनलैण्ड में मित्रराष्ट्रों की सेनाएँ रख दी गई। वर्साय की संधि में प्रथम विश्व युद्ध का सारा दोष जर्मनी के मत्थे थोप कर उसका प्रबल राष्ट्रीय अपमान किय गया। ऐसी अपमानजनक एवं कठोर शर्तें दुनिया का कोई भी स्वाभिमानी राष्ट्र अधिक समय तक सहन नहीं कर सकता था और इससे मुक्त होने का एक ही रास्ता था – युद्ध में सफलता प्राप्त करना। इस प्रकार, वर्साय की संधि में द्वितीय महायुद्ध के बीच बो दिए गए थे।

वर्साय की संधि

एकपक्षीय समझौता

वर्साय की संधि का एक प्रमुख दोष यह था कि इसकी शर्तें एकपक्षीय थी। संधि की शर्तें मित्रराष्ट्रों के द्वारा तैयार की गयी थी और जर्मन प्रतिनिधियों से विचार-विमर्श नहीं किया गया। उन्हें केवल हस्ताक्षर करने अथवा युद्ध को पुनः छेङने की धमकी भरा आदेश दिया गया था।

जर्मनी पर जो शर्तें लादी गयी उन शर्तों से मित्रराष्ट्रों को मुक्त रखा गया। उदाहरणार्थ, निःशस्त्रीकरण केवल जर्मनी के लिये था, मित्रराष्ट्रों के लिये नहीं। इसी प्रकार, युद्धकाल में दोनों पक्षों के द्वारा क्रूर कृत्य किए गए परंतु केवल जर्मन लोगों पर ही अभियोग चलाए गए।

जर्मनी के समस्त उपनिवेश छीन लिए गए परंतु मित्रराष्ट्रों के पास उपनिवेश बने रहे। इस प्रकार एकपक्षीय शर्तों के कारण जर्मन जनता में यह भावना व्याप्त हो गई कि वर्साय की संधि में उसके अन्याय किया गया है और इस अन्याय का प्रतिकार भावी युद्ध में सफलता प्राप्त करके ही किया जा सकता है। इस संबंध में एडम्स गिबन्स ने लिखा है कि पारस्परिकता के अभाव में वह एक शक्ति की शांति थी।

आरोपित संधि

वर्साय की संधि को एक आरोपित संधि कहा जाता है। यह संधि मित्रराष्ट्रों द्वारा जर्मनी पर थोपी गई थी। यह एक प्रकार का आदेश था जिस पर हस्ताक्षर करने के अलावा जर्मनी के पास कोई विकल्प नहीं था। संधि पर विचार-विमर्श करना तो दूर रहा, हस्ताक्षर करवाने के लिये भी जर्मनी के प्रतिनिधियों और अपराधियों की भाँति पहरे में लाया-ले जाया गया।

इस सार्वजनिक अपमान से पीङित जर्मन जनता वर्साय की संधि को प्रारंभ से ही आरोपित संधि मानती रही और नैतिक दृष्टि से इसका पालन करने के लिये अपने आपको बाध्य अनुभव नहीं किया। इस संदर्भ में ई.एच.कार ने लिखा है, इन अनावश्यक अपमानों के, जिनका औचित्य केवल यही हो सकता है, कि युद्ध की तीव्र कटुता अब भी अवशिष्ट थी, जर्मनी में व अन्यत्र व्यापक मनोवैज्ञानिक परिणाम हुए।

लॉर्ड ब्राइस ने भी ब्रिटिश-संसद में कहा था कि शांति केवल संतोष से ही हो सकती है, किन्तु इन संधियों के परिणाम राष्ट्रों को असंतुष्ट बनाना है। फलस्वरूप परिणाम स्वाभाविक क्रांतियाँ और युद्ध होंगे।

राजनीतिज्ञों की शांति

वर्साय की संधि द्वारा स्थापित शांति की चर्चा करते हुये जनरल स्मट्स ने कहा था कि यह संधि राजनीतिज्ञों की शांति थी, जनसाधारण की नहीं । इस संधि में नवीन जीवन का आश्वासन, महान मानवीय आदर्शों, नवीन अन्तर्राष्ट्रीय व्यवस्था तथा न्यायसंगत एवं श्रेष्ठ विश्व के निमित्त जन आकांक्षाओं की पूर्ति का उल्लेख नहीं था।

इसमें ऐसी प्रादेशिक व्यवस्थाएँ थी जिनमें संशोधन की सख्त आवश्यकता थी। इसमें ऐसी क्षति पूर्तियों का समावेश किया गया जिन्हें यूरोप के औद्योगिक पुनरुत्थान को गंभीर हानि पहुँचाए बिना पूरा करना संभव नहीं था। इससे जनसाधारण को वास्तविक शांति उपलब्ध नहीं हो पाई।

संधि के द्वारा स्थापित आर्थिक व्यवस्था को चर्चिल ने मूर्खतापूर्ण कहा। मार्शल फौच ने तो भविष्यवाणी कर दी थी कि वर्साय की शांति संधि नहीं बल्कि बीस वर्षों के लिये एक युद्ध-विराम संधि है।

कमजोर राजनीतिक व्यवस्था

वर्साय की संधि के परिणास्वरूप यूरोप में जो एक नवीन राजनीतिक व्यवस्था अस्तित्व में आई वह काफी कमजोर सिद्ध हुई। आत्म-निर्णय के आधार पर अनेक छोटे-छोटे नवीन राष्ट्रों का निर्माण किया गया। परंतु इन राष्ट्रों के पास अपनी स्वतंत्रता को बनाए रखने अथवा अपनी आंतरिक समस्याओं को हल करने योग्य साधन तथा सामर्थ्य नहीं थी।

आस्ट्रिया, चेकोस्लोवाकिया, एस्थोनिया, लेटाविया, लिथुआनिया आदि राष्ट्र शुरू से ही अनेक प्रकार की समस्याओं से उलझे रहे। हंगरी, बल्गेरिया, रूमानिया आदि देश काफी निर्बल हो चुके थे। इन छोटे राष्ट्रों के दोनों तरफ दो बङे असंतुष्ट देश जर्मनी और रूस थे।

चूँकि छोटे राष्ट्रों के पास इन बङे राष्ट्रों का मुकाबला करने की शक्ति नहीं थी अतः अवसर मिलते ही इन बङे राष्ट्रों ने उन्हें हङपने तथा उन पर हावी होने का प्रयत्न शुरू करके वर्साय की व्यवस्था को मृतप्रायः बना दिया।

विश्ववासघाती संधि

जर्मनी का कहना था कि उसने विल्सन के चौदह बिन्दुओं को आधार मानकर आत्मसमर्पण किया था परंतु वर्साय की संधि में इनका उल्लंघन करके जर्मनी के साथ जबरदस्त विश्वासघात किया गया। विल्सन ने इस चौदह-सूत्री योजना के आधार पर शत्रु राष्ट्रों से संधि करने की अपील की थी।

परंतु जब तक जर्मनी को अपनी पराजय का पूर्ण विश्वास नहीं हो गया तब तक उसने विल्सन की अपील पर ध्यान ही नहीं दिया। चौदह बिन्दुओं के प्रति जर्मनी का रुख प्रारंभ से ही नकारात्मक रहा और प्रत्यक्ष प्रमाण रूस के साथ की गई ब्रेस्ट-लिटोवस्क की संधि और रूमानिया के साथ की गयी संधि है।

इस प्रकार जर्मनी ने विल्सन और मित्रराष्ट्रों की उदारता और सहानुभूति को ठोकर मारकर उन्हें क्रोधित कर दिया था और उन्होंने यह तय कर लिया था कि उनके हितों के लाभ की दृष्टि से चौदह सूत्रों में आवश्यक किए जा सकेंगे। अतः जब जर्मनी ने चौदह बिन्दुओं को स्वीकार किया तब तक चौदह बिन्दुओं का कायाकल्प हो चुका था।

1. पुस्तक- आधुनिक विश्व का इतिहास (1500-1945ई.), लेखक - कालूराम शर्मा

wikipedia : वर्साय की संधि

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