1911 की चीनी क्रांतिइतिहासविश्व का इतिहास

वर्साय की संधि

वर्साय की संधि

प्रथम विश्वयुद्ध के बाद पराजित जर्मनी ने 28 जून 1919 के दिन वर्साय की सन्धि पर हस्ताक्षर किये। इसकी वजह से जर्मनी को अपनी भूमि के एक बड़े हिस्से से हाथ धोना पड़ा, दूसरे राज्यों पर कब्जा करने की पाबन्दी लगा दी गयी, उनकी सेना का आकार सीमित कर दिया गया और भारी क्षतिपूर्ति थोप दी गयी।

वर्साय की सन्धि को जर्मनी पर जबरदस्ती थोपा गया था। इस कारण एडोल्फ हिटलर और अन्य जर्मन लोग इसे अपमानजनक मानते थे और इस तरह से यह सन्धि द्वितीय विश्वयुद्ध के कारणों में से एक थी।

वर्साय की संधि

वर्साय की संधि का प्रारूप 7 मई 1911को जर्मन प्रतिनिधियों को सौंपा गया था। जर्मन प्रतिनिधिमंडल अपने विदेश मंत्री वॉन ब्रोकडोर्फ राजाओं के नेतृत्व में 30 अप्रैल को वर्साय पहुँचा। जर्मन प्रतिनिधियों को ट्रायनन पैलेस होटल में ढहराया गया और इस होटल को काँटेदार तारों से घेर दिया गया तथा जर्मन प्रतिनिधियों को किसी भी देश के प्रतिनिधि अथवा पत्रकार से संपर्क स्थापित करने से मना कर दिया गया। एक प्रकार से उन्हें नजरबंद कैदियों की भाँति रखा गया।

संधि के प्रारूप को तैयार देखकर जर्मन प्रतिनिधियों को बङी निराशा हुई, क्योंकि वे इस विश्वास के साथ आए थे कि संधि की शर्तें आमने-सामने के वार्तालाप के बाद ही तय होंगी। जर्मन प्रतिनिधियों को कहा गया कि वे तीन सप्ताह के भीतर संधि प्रस्तावों पर अपना लिखित वक्तव्य दे दें।

संधि की शर्तों ने समस्त जर्मन जनता को विचलित कर दिया। जर्मनी के राष्ट्रपति ने इन शर्तों को असह्य, घातक एवं पूर्ति के अयोग्य बताया। इस पर ब्रिटेन के प्रधानमंत्री लॉयड जार्ज ने धमकी भरे स्वर में कहा, “जर्मन लोग कहते हैं, कि वे संधि पर हस्ताक्षर नहीं करेंगे। जर्मनी के राजनीतिज्ञ भी यही बात करते हैं। लेकिन हम लोग कहते हैं महानुभावों, आपको इस पर हस्ताक्षर करना ही है। अगर आप वर्साय में ऐसा नहीं करते हैं तो आपको बर्लिन में करना ही होगा”।

29 मई को जर्मन प्रतिनिधिमंडल ने अपनी आलोचना मित्रराष्ट्रों को प्रस्ताव कर दी। मित्रराष्ट्रों ने मामूली संशोधन स्वीकार कर लिये और संधि का प्रारूप वापस लौटा दिया और यह धमकी भी दी गई कि यदि जर्मनी ने पाँच दिन के अंदर संधि पर हस्ताक्षर नहीं किए तो पुनः युद्ध छेङ दिया जाएगा।

जर्मनी की तत्कालीन शिडमान सरकार ने संधि को अस्वीकार करते हुये त्यागपत्र दे दिया। अंत में गुस्टावबौर ने नई सरकार बनाई और संधि को स्वीकार किया। 28 जून,1919 को नई सरकार के प्रतिनिधियों ने वर्साय के शीशमहल में संधि पर हस्ताक्षर किए। हस्ताक्षर करने के बाद जर्मन प्रतिनिधि ने कहा, हमारे प्रति फैलाई गयी उग्र घृणा की भावना से हम आज सुपरिचित हैं। हमारा देश दबाव के कारण आत्म-समर्पण कर रहा है, किन्तु वह यह कभी नहीं भूलेगा कि यह अन्यायपूर्ण संधि है।

वर्साय की संधि

वर्साय की संधि में 15 भाग, 439 धाराएँ और 80,000 शब्द थे। इस संधि-पत्र में जर्मनी के साथ की गयी व्यवस्थाओं के अलावा राष्ट्रसंघ, अन्तर्राष्ट्रीय श्रमिक संगठन और अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय का संविधान तथा उससे संबंधित व्यवस्थाएँ भी सम्मिलित थी।

प्रादेशिक व्यवस्था

सन् 1870-71 के फ्रेंको-प्रशियन युद्ध में फ्रांस को जर्मनी से पराजित होना पङा था और परिणामस्वरूप अल्सास और लोरेन के प्रदेशों से हाथ धोना पङा था। वर्साय संधि द्वारा जर्मनी को इन दोनों प्रांतों से हाथ धोना पङा और ये प्रांत पुनः फ्रांस को सौंप दिये गये। रास के औद्योगिक प्रदेश पर जर्मनी की सर्वोच्च सत्ता को तो स्वीकार किया गया परंतु उसका शासन प्रबंध राष्ट्रसंघ के एक आयोग को सौंपा गया।

सार प्रदेश की कोयले की खानों का स्वामित्व 15 वर्ष की अवधि के लिये फ्रांस को सौंपा गया। इसके बाद सार के निवासियों को यह तय करने का अधिकार दिया गया कि वे फ्रांस के साथ रहना चाहते हैं अथवा जर्मनी के साथ चूँकि अधिकांश लोग जर्मन थे, अतः यह पक्की संभावना थी कि वे जर्मनी के साथ मिलेंगे और 1935 में ऐसा ही हुआ। मार्सनेट, यूपेन तथा मालमेडी नामक जर्मन क्षेत्र बेल्जियम को जर्मन आक्रमण से हुई क्षति की एवज में दिए गए।

1864 ई. में जर्मनी ने डेनमार्क से श्वेसविग प्रांत छीनकर अपने राज्य में मिला लिया था। वर्साय की संधि के अनुसार इस प्रांत में जनमत संग्रह किया गया और परिणामस्वरूप यह प्रांत डेनमार्क को वापस लौटा दिया गया। इस प्रकार युद्ध में सम्मिलित हुए बिना ही डेनमार्क को प्रादेशिक लाभ प्राप्त हो गया।

जर्मनी के पूर्वी सीमांत को तय करना सबसे अधिक कठनिक कार्य सिद्ध हुआ। क्योंकि बाल्टिक सागर से चेकोस्लोवाकिया तक,एक-दूसरे के विरोधी और एक-दूसरे से घृणा करने वाले जर्मन और पोल लोग बसे हुए थे। वर्साय संधि के अनुसार पश्चिमी प्रशा, पोजन तथा साइलीशिया के कुछ भाग पोलैण्ड को देने पङे।

इससे पोलैण्ड को बाल्टिक सागर तक पहुँचने का एक गलियारा मिल गया परंतु पूर्वी जर्मनी का शेष जर्मनी से संबंध टूट गया। डेन्जिग जर्मन आबादी प्रधान नगर था परंतु पोलैण्ड का प्राकृतिक सामुद्रिक द्वार भी था। इसलिये डेन्जिग को जर्मनी से पृथक करके राष्ट्रसंघ के संरक्षण में रखा गया। डेन्जिग नगर का शासन जर्मन जनता के निर्वाचित प्रतिनिधियों की संख्या को सौंप दिया गया और डेंजिग बंदरगाह का प्रबंध पोलैण्ड को सौंप दिया गया। पूर्व में, जर्मनी को मेमल बंदरगाह और उसकी पार्श्वभूमि लिथुआनिया को देनी पङी।

ब्रेस्ट लिटोवस्क की संधि के द्वारा जर्मनी ने एक बहुत बङा भू-भाग रूस से छीनकर अपने राज्य में मिला लिया था। वर्साय संधि के अनुसार इस विस्तृत-भ भाग में जर्मनी को हटने के लिये विवश किया गया और तीन नवीन राज्यों, एस्थोनिया, लेटाविया और लिथुआनिया की स्थापना की गयी।

सुदूर उत्तर में फिन लोगों का निवास था जिन्होंने युद्ध समाप्ति के पूर्व जर्मनी की सहायता से रूसी प्रांतों को हङप कर स्वतंत्र फिनलैण्ड की स्थापना कर ली थी। वर्साय संधि ने उनकी स्वतंत्रता को मान्यता दे दी।

जर्मनी के उपनिवेश मैंडेट प्रणाली के अन्तर्गत ग्रेट ब्रिटेन, फ्रांस, बेल्जियम, दक्षिण अफ्रीकन संघ, आस्ट्रिलिया, न्यूजीलैण्ड और जापान को सौंप दिए गए। मैंडेट प्रणाली का अर्थ यह था कि पिछङे हुए देशों का समुचित कल्याण एवं विकास करना सभ्य देशों का पवित्र कर्त्तव्य है।

अतः विभिन्न देशों को राष्ट्रसंघ की ओर से ये देश पवित्र धरोहर के रूप में सौंपे गए हैं। इस प्रणाली के अंदर जर्मन दक्षिण-पश्चिमी अफ्रीका, दक्षिण-अफ्रीकन संघ को प्राप्त हुआ। जर्मन पूर्वी अफ्रीका ग्रेट ब्रिटेन को सौंपा गया। टोगोलैण्ड तथा कैमरून फ्रांस और ग्रेट ब्रिटेन को सौंपे गए। प्रशांत महासागर में भूमध्य रेखा के दक्षिण के जर्मन टापू आस्ट्रेलिया और न्यूजीलैण्ड को सौंपे गए और भूमध्य रेखा के उत्तर के टापू और चीन के शाण्टुंग प्रदेश में जर्मन अधिकार जापान को प्रदान कर दिये गये।

वर्साय की प्रादेशिक व्यवस्था के अनुसार जर्मनी को यूरोप में 25,000 वर्ग मील से भी अधिक भूमि और लगभग 70 लाख नागरिकों से वंचित होना पङा। लगभग 65 प्रतिशत कच्चे लोहे, 72 प्रतिशत जस्ते, 57 प्रतिशत राँगे के कच्चे माल से हाथ धोना पङा। उसे अपने सारे उपनिवेशों से भी हाथ धोना पङा।

सैनिक व्यवस्थाएँ

विल्सन का मत था कि भविष्य में सभी देश निःशस्त्रीकरण की दिशा में सक्रिय प्रयत्न करेंग। इंग्लैण्ड के अधिकांश विचारक भी इसी मत से सहमत थे। परंतु फ्रांस की हठधर्मी के कारण इस समस्या को भविष्य के लिये छोङ दिया गया। अभी केवल जर्मनी को निःशस्त्र करना ही पर्याप्त समझा गया।

वर्साय की सैनिक व्यवस्था के अन्तर्गत जर्मनी की जल, स्थल और वायुसेना पर अनेक प्रकार के प्रतिबंध लगाए गये। जर्मनी में अनिवार्य सैनिक सेवा को समाप्त कर दिया गया और यह व्यवस्था की गयी कि आगामी बारह वर्ष तक जर्मनी की स्थल सेना एक लाख से अधिक नहीं होगी।

सैनिक अधिकारियों को कम से कम 25 वर्ष तक और साधारण सैनिकों को 12 वर्ष तक सेना में रहना होगा। जर्मनी के प्रधान सैनिक कार्यालय को उठा दिया गया और अस्त्र-शस्त्र, गोला-बारूद तथा अन्य युद्ध-सामग्री का उत्पादन सीमित कर दिया गया। सभी प्रकार के टैंकों, लोहे की सैनिक कारों तथा बारूद लङाकू हवाई जहाजों पर प्रतिबंध लगा दिया गया। वायुसेना से संबंधित समस्त सामग्री को नष्ट कर दिया गया।

जर्मन नौ-सेना को काफी कम कर दिया गया। अब जर्मनी दस हजार टन के 6 युद्ध पोतों, 6 क्रूजरों, 12 विध्वंसक पोतों और 12 टारपीडो नौकाओं से अधिक नहीं रख सकता था। पनडुब्बियाँ रखने पर प्रतिबंध लगा दिया गया और उसके पास जो पनडुब्बियाँ थी उन्हें या तो मित्र राष्ट्रों (इंगलैंड, जापान, संयुक्त राज्य अमेरिका, रूस तथा फ्रांस)ने अपने अधिकार में ले लिया या फिर नष्ट कर दिया गया। जर्मन नौ सेना की

संख्या 15,000 तक सीमित कर दी गई। जर्मनी के सभी नौ-सैनिक अड्डों को समाप्त कर दिया गया। फ्रांस की सुरक्षा की दृष्टि से राइन नदी के बाएँ किनारे पर जर्मन प्रदेश में तथा दाएँ तट पर 50 किलोमीटर के भीतर असैनिकीकरण कर दिया गया। इस क्षेत्र में सेना रखने अथवा किलेबंदी करने पर प्रतिबंध लगा दिया गया।

इस प्रकार वर्साय संधि के द्वारा सैनिक दृष्टि से जर्मनी को एकदम पंगु बना दिया गया। ई.एच. कार ने लिखा है कि जर्मनी का जिस कठोरतापूर्वक और संपूर्ण रूप से निःशस्त्रीकरण किया गया, उतना और किसी देश का कभी नहीं किया गया था। वस्तुतः जर्मनी जैसे देश के लिये यह एक घोर अपमान था।

आर्थिक व्यवस्था

युद्ध बंदी के संबंध में होने वाले प्रारंभिक वार्तालाप के समय ही मित्र राष्टों ने जर्मनी को स्पष्ट रूप से बता दिया था, कि जल, थल, और नभ की लङाई के परिणामस्वरूप नागरिकों को जो हानि उठानी पङी है, उसकी पूर्ति जर्मनी को करनी पङेगी। इसमें फ्रांस तथा अन्य देशों के वीरान प्रांतों को फिर से आबाद करने का व्यय, डुबोए गए जहाजों के पुनर्निर्माण का व्यय आदि भी सम्मिलित था।

वर्साय संधि की धारा 231 में क्षतिपूर्ति को आधार पर स्पष्ट करते हुये कहा गया है – क्योंकि यह युद्ध जर्मनी और उसके साथियों द्वारा प्रारंभ किया गया, अतः जर्मनी यह स्वीकार करता है, कि इससे होने वाली क्षति के लिये वह तथा उसके साथी देश उत्तरदायी हैं। परंतु क्षतिपूर्ती की धनराशि का निर्धारण कठिन काम था, अतः यह काम एक क्षतिपूर्ति आयोग को सौंप दिया गया। इस आयोग को 1 मई, 1921 तक अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करनी थी।

आयोग की रिपोर्ट के आने तक की अवधि के लिये यह तय किया गया कि जर्मनी अपने सोना, जहाज, माल, जमानत आदि के रूप में 5 अरब डॉलर की धनराशि मित्रराष्ट्रों को देगा। इसके अलावा जर्मनी को 5 वर्षों तक मित्र राष्ट्रों के लिये 20 लाख टन के जहाज प्रतिवर्ष बनाने होंगे। जर्मनी को 1600 अथवा उससे अधिक टनों के सभी व्यापारिक जहाज मित्रराष्ट्रों को सौंपने होंगे।

जर्मनी को आगामी 10 वर्षों तक फ्रांस को 70 लाख टन, बेल्जियम को 80 लाख टन और इटली को 77 लाख टन कोयला प्रतिवर्ष देना होगा। इसके अलावा यह भी निश्चित किया गया कि मित्रराष्ट्रों के क्षतिग्रस्त क्षेत्रों के पुनर्निर्माण के लिये जर्मनी को पर्याप्त मात्रा में मशीनें, औजार, पत्थर, ईंट, लकङी, स्टील, सीमेण्ट, चूना आदि सामान देना होगा। जर्मन उपनिवेशों तथा मित्र राष्ट्रों में जो भी सरकारी अथवा गैर सरकारी जर्मन पूँजी थी उसे जब्त कर लिया गया। मिस्र, मोरक्को और चीन में जर्मनी के विशेष व्यापारिक अधिकारों को समाप्त कर दिया गया।

अन्य व्यवस्थाएँ

अन्य व्यवस्थाओं में सर्वप्रथम धारा 231 है जिसमें अकेले जर्मनी को यह मानना पङा कि वह सारी तबाही और बरबादी के लिये दोषी थी। इस युद्ध की दोष संबंधी युद्ध अपराध धारा ने जिम्मेदारी संबंधी विवाद को और बढा दिया। वस्तुतः जर्मन जनता ने कभी इस बात को स्वीकार नहीं किया कि युद्ध का वास्तविक उत्तरदायित्व जर्मन नेताओं पर था। वर्साय संधि में राष्ट्रसंघ की स्थापना संबंधी प्रावधान रखे गए। रूस और जर्मनी के मध्य संपन्न ब्रेस्टलिटोवस्क की संधि को अमान्य ठहराया गया। इस संधि के द्वारा बेल्जियम, पोलैण्ड, यूगोस्लाविया और चेकोस्लोवाकिया की स्वतंत्रता को मान्य ठहराया गया।

वर्साय की संधि में की गई व्यवस्था निम्नलिखित थी

राष्ट्रसंघ

राष्ट्रसंघ का निर्माण एवं संगठन वर्साय-संधि का एक अत्यंत महत्वपूर्ण अंग था। संधि के प्रथम भाग का संबंध इसी से है। यह मूलतः राष्ट्रपति विल्सन का सृजन था। उसका ख्याल था कि राष्ट्रसंघ को शांति-सम्मेलन की सबसे महान कृति होनी चाहिए।

प्रादेशिक व्यवस्था

एल्सस-लॉरेन प्रदेश : वर्साय-संधि द्वारा प्रादेशिक परिवर्तन करके जर्मनी का अंग-भंग कर दिया गया। 1871 में जर्मनी ने फ्रांस से एल्सेस-लॉरेन के प्रदेश छीन लिये थे।

राइनलैंड : फ्रांस की सुरक्षा की दृष्टि से जर्मनी के राइनलैण्ड में मित्र राष्ट्रों की सेना 15 वर्षों तक रहेगी तथा राइन नदी के आस-पास के क्षेत्र को स्थाई रूप से निःशस्त्र कर दिया जाए ताकि जर्मनी किसी प्रकार की किलेबंदी न कर सके।

सार क्षेत्र : सार क्षेत्र जर्मनी में कोयला क्षेत्र के लिए प्रसिद्ध था। इस प्रदेश की शासन व्यवस्था की जिम्मेवारी राष्ट्रसंघ को सौंप दी गई किन्तु कोयले की खानों का स्वामित्व फ्रांस को दिया गया। यह भी तय हुआ कि 15 वर्षों बाद जनमत संग्रह द्वारा निश्चित किया जाएगा कि सार क्षेत्र के लोग जर्मनी के साथ रहना चाहते हैं या फ्रांस के साथ। यदि सारवासी जर्मनी के साथ मिलने की इच्छा प्रकट करें तो जर्मनी फ्रांस को निश्चित मूल्य देकर खानों को पुनः खरीद ले।

बेल्जियम एवं डेनमार्क की प्राप्ति : यूपेन मार्शनेट और मलमेडी का प्रदेश बेल्जियम के अधीन कर दिया गया। श्लेशविग में जनमत संग्रह करके उसका उत्तरी भाग डेनमार्क को दे दिया गया।

जर्मनी की पूर्वी सीमा : जर्मनी को सबसे अधिक नुकसान पूर्वी सीमा पर उठाना पड़ा। मित्र राष्ट्रों ने स्वतंत्र पोलैण्ड राज्य के निर्माण का निर्णय किया। डान्जिंग को स्वतंत्र नगर के रूप में परिवर्तित किया गया और उसे राष्ट्र संघ के संरक्षण में रख दिया गया।

पोलैण्ड को समुद्री मार्ग देने के लिए डाजिंग के बंदरगाह का उपयोग करने का अधिकार दिया गया। मेमेल का बंदरगाह जर्मनी से लेकर लिथुआनिया को दे दिया गया। जर्मनी ने चेकोस्लोवाकिया के राज्य को मान्यता दी। इस प्रकार प्रादेशिक व्यवस्था के तहत जर्मनी को 25 हजार वर्ग मील का प्रदेश और 70 लाख की आबादी खोनी पड़ी।

जर्मन उपनिवेश संबंधी व्यवस्था 

मित्र राष्ट्र जर्मन उपनिवेशों को अपने-अपने साम्राज्य में मिलना चाहते थे किन्तु विल्सन ने इसका कड़ा विरोध किया। विल्सन के विरोध के कारण मित्र राष्ट्रों ने संरक्षण प्रणाली की शुरूआत की। इसका आशय यह था कि जो देश बहुत पिछड़े हुए है उनका समुचित कल्याण व विकास करना।

सभ्य राष्ट्रों में पवित्र धरोहर के रूप राष्ट्रसंघ की ओर से इसकी उन्नति के लिए दिया जाना चाहिए। Mindet व्यवस्था के तहत जर्मनी को अपनी सभी उपनिवेश छोड़ने पड़े और उन्हें मित्र-राष्ट्रों के संरक्षण में रखा गया। प्रशांत महासागर के कई द्वीपों तथा अफ्रीकी महादेशों में स्थित उपनिवेश जर्मनी को खोने पड़े।

सैनिक व्यवस्था

जर्मन सेना की अधिकतम संख्या एक लाख कर दी गई। अनिवार्य सैनिक सेवा पर प्रतिबंध लगा दिया गया। हवाई जहाजों को प्रतिबंधित कर दिया गया। इसके अतिरिक्त नौसेना शक्ति को भी सीमित कर दिया गया। जर्मनी की नौसेना के केवल 6 युद्धपोत रखने की इजाजत दी गई। 

पनडुब्बियों को मित्र राष्ट्रों को सौंपने की बात की गई। निःशस्त्रीकरण की इस व्यवस्था का पालन करवाने तथा निगरानी रखने के लिए जर्मनी के खर्च पर मित्र राष्ट्रों का एक सैनिक आयोग स्थापित किया गया। इस प्रकार सैनिक दृष्टि से जर्मनी को पंगु बना दिया गया।

आर्थिक व्यवस्था

वर्साय संधि की 231वीं धारा के तहत जर्मनी व उसके सहयोगी राज्यों को युद्ध के लिए एक मात्र जिम्मेदार माना गया। अतः मित्रराष्ट्रों को युद्ध में जो क्षतिपूर्ति उठानी पड़ी थी, उसके लिए जर्मनी को क्षतिपूर्ति करने को कहा गया कि 1921 तक जर्मनी 5 अरब डालर मित्रराष्ट्रों को दे। मित्र राष्ट्रों को जर्मनी से कुछ वस्तु के आयात-निर्यात पर विशेष सुविधाएं दी गई। नील नहर का अन्तर्राष्ट्रीयकरण कर उसे सभी जहाजों के लिए खुला छोड़ दिया गया।

नैतिक दायित्व

संधि की 231वीं धारा के अनुसार सारी क्षति और युद्ध के लिए जर्मनी को उत्तरदायी ठहराया गया।

राजनैतिक व्यवस्था

राजनीतिक व्यवस्था के अंतर्गत राष्ट्रसंघ की स्थापना वार्साय की संधि का महत्वपूर्ण अंग थी। विल्सन के प्रभाव के कारण ही राष्ट्रसंघ की धाराओं को वार्साय की संधि में रखा गया। राष्ट्रसंघ का उद्देश्य अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग एवं सुरक्षा को कायम करना था।

1. पुस्तक- आधुनिक विश्व का इतिहास (1500-1945ई.), लेखक - कालूराम शर्मा

Online References
wikipedia : वर्साय की संधि

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