इतिहासराजस्थान का इतिहास

सिरोही का राजस्थान में विलय कब हुआ

सिरोही का राजस्थान में विलय – गुजरात के नेता सिरोही स्थित माउण्ट आबू के शैलानी केन्द्र को गुजरात का अंग बनाना चाहते थे। अतः नवम्बर, 1947 ई. में सरदार पटेल को यह सुझाव दिया गया कि राजपूताना एजेन्सी के कुछ राज्यों को गुजरात स्टेट्स एजेन्सी को सौंप दिया जाय, क्योंकि उन राज्यों की अधिकांश जनता गुजराती भाषा-भाषी है। ये राज्य थे – सिरोही, पालनपुर, दांता, ईडर, विजयनगर, डूँगरपुर, बाँसवाङा और झाबुआ। भारत सरकार ने उक्त सुझाव पर विचार करने के बाद केवल पालनपुर, दांता, ईडर और विजयनगर के राज्यों को गुजरात स्टेट्स एजेन्सी को सौंपने का निर्णय लिया। किन्तु गुजरात के नेताओं का भारत सरकार पर निरंतर दबाव बना रहा कि सिरोही को भी गुजरात स्टेट्स एजेन्सी के अन्तर्गत रख दिया जाय। सरदार पटेल स्वयं गुजराती थे और सम्भवतः गुजराती नेताओं के प्रति उनकी सहानुभूति स्वाभाविक थी। अतः नवम्बर, 1947 ई. में ही, सिरोही को भी गुजरात स्टेट्स एजेन्सी के अन्तर्गत कर दिया। मार्च, 1948 ई. में गुजरात के राज्यों के शासकों ने अपने राज्यों को बंबई प्रान्त (उस समय गुजरात प्रदेश और महाराष्ट्र बंबई प्रान्त के ही अंग थे) में मिलाने का अनुरोध किया। अतः मार्च, 1948 ई. में जब रियासती विभाग ने संयुक्त राजस्थान के निर्माण का निर्णय लिया, तब उसने स्टेट्स एजेन्सी की माँग पर सिरोही को बंबई प्रांत से पृथक रखना पङा। कुछ दिनों बाद उदयपुर ने भी संयुक्त राजस्थान में शामिल होने का फैसला कर लिया। इस अवसर पर अखिल भारतीय देशी राज्य लोक परिषद् की राजपूताना प्रान्तीय सभा के महामंत्री पंडित हीरालाल शास्त्री ने अपने 10 अप्रैल, 1948 ई. के तार में सरदार पटेल को लिखा कि, यह जानकर प्रसन्नता हुई कि उदयपुर संयुक्त राजस्थान में शामिल हो रहा है। इससे सिरोही का राजस्थान में शामिल होना और भी अवश्यंभावी हो गया है। फिर हमारे लिये सिरोही का अर्थ है, गोकुल भाई। बिना गोकुल भाई के हम राजस्थान को नहीं चला सकते। सरदार पटेल ने जब इसका कोई प्रत्युत्तर नहीं दिया तब श्री शास्त्रीजी ने 14 अप्रैल को एक दूसरा तार और भेजा। किन्तु सरदार पटेल का विचार था कि जब गुजरात स्टेट्स एजेन्सी के सभी राज्यों को बंबई प्रान्त में मिलाना तय हो गया है तो फिर सिरोही को अलग रखने का कोई औचित्य नहीं है। अतः भारत सरकार ने सिरोही राज्य की अभिभाविका रानी के सलाहकार तथा राजस्थान प्रदेश काँग्रेस कमेटी के अध्यक्ष श्री गोकुल भाई भट्ट को बातचीत के लिये दिल्ली बुलाया। गोकुल भाई का कहना था कि इस समय सिरोही के भविष्य का फैसला करना उचित नहीं होगा, उचित तो यही होगा कि स्वयं भारत सरकार कुछ समय के लिये सिरोही का प्रशासन सँभाल ले, तदनुसार 8 नवम्बर, 1948 ई. को सिरोही राज्य की अभिभाविका रानी के साथ एक समझौता कर भारत सरकार ने सिरोही के प्रशासन का दायित्व सँभाल लिया और इसके दो महीने बाद ही भारत सरकार ने अपनी ओर से शासन संचालित करने हेतु सिरोही का शासन बंबई प्रान्त को सौंप दिया।

इस बीच सिरोही के प्रश्न को लेकर राजस्थान की जनता के बीच काफी उत्तेजना फैल चुकी थी। 18 अप्रैल, 1948 ई. को, उदयपुर के संयुक्त राजस्थान में मिलने के बाद पुनर्गठित संयुक्त राजस्थान के उद्घाटन के अवसर पर राजस्थान के कार्यकर्त्ताओं का एक शिष्टमंडल पंडित जवारलाल नेहरू से मिला और उन्हें सिरोही के संबंध में प्रदेश की जन भावनाओं से अवगत कराया। पंडित नहेरू ने दिल्ली लौटते ही सरदार पटेल को पत्र लिखा जिसमें उन्होंने कहा कि राजस्थान भर के कार्यकर्त्ताओं का जिस प्रश्न पर सर्वाधिक रोष है वह सिरोही के बारे में ………….मुझे बार-बार कहा गया कि गत 300 वर्षों से भाषा और अन्य हर प्रकार से सिरोही राजस्थान प्रदेश का अंग रहा है। अतः उसे राजस्थान में ही मिलना चाहिए। मैंने उनसे (कार्यकर्त्ताओं से) कहा कि मुझे इस विषय के विभिन्न पहलुओं की जानकारी नहीं है, अतः मैं इस संबंध में कुछ भी कहने की स्थिति में नहीं हूँ। किन्तु साधारणतया जहाँ मतभेद हो, वहाँ जनता की राय ही मान्य होनी चाहिए। सरदार पटेल ने 22 अप्रैल को पंडित नेहरू को प्रत्युत्तर देते हुये लिखा कि सिरोही के संबंध में मेरी इन लोगों से कई बार बातचीत हुई। सभी मुद्दों पर विचार करने के बाद ही हम इस निर्णय पर पहुँचते हैं कि सिरोही, गुजरात में ही जाना चाहिए। उन्हें (राजस्थान वालों को) सिरोही नहीं चाहिए उन्हें तो गोकुल भाई भट्ट चाहिए। उनकी यह माँग सिरोही को, राजस्थान को दिये बिना भी पूरी की जा सकती है।

सरदार पटेल अत्यन्त चतुर राजनीतिज्ञ था। उसने जनवरी, 1950 ई. में माउण्ट आबू सहित सिरोही का एक भाग तो गुजरात में मिला दिया और गोकुल भाई भट्ट के जन्म स्थान हातल सहित सिरोही का शेष भाग राजस्थान को दे दिया। इस प्रकार श्री शास्रीजी की माँग के अनुसार सरदार पटेल ने राजस्थान को गोकुल भाई भट्ट दे दिया। किन्तु इस निर्णय से सिरोही में एक व्यापक आंदोलन उठ खङा हुआ। यह आंदोलन तभी समाप्त हुआ जब भारत सरकार ने अपने निर्णय पर पुनर्विचार का आश्वासन दिया। राजस्थान के साथ किये गये इस अन्याय का निराकरण 1 नवम्बर, 1956 ई. को हुआ, जबकि राज्य पुनर्गठन आयोग की सिफारिश के आधार पर सिरोही का माउण्ट आबू वाला क्षेत्र पुनः गुजरात से पृथक कर राजस्थान में मिलाया गया।

References :
1. पुस्तक - राजस्थान का इतिहास, लेखक- शर्मा व्यास

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