प्राचीन भारतइतिहासगुप्त कालचित्रकला

बाघ गुफा की चित्रकला किस काल की है

मध्य प्रदेश के धार से 80 किलोमीटर तथा इंदौर से उत्तर – पश्चिम 144 किलोमीटर दूर नर्मदा की सहायक बाघिनी नदी के बायें तट पर बाघ की पहाङी स्थित है। अजंता के समान यहाँ भी बौद्ध विहार बनवाये गये हैं। स्मिथ का अनुमान है, कि अजंता में गुहा निर्माण कार्य समाप्त होने के बाद बाघ में गुहायें उत्कीर्ण की गयी।

चैत्यगृह एवं विहार किसे कहते हैं ?

फर्ग्युसन तथा बर्गेस जैसे कुछ ताम्रपत्रों पर ब्राह्मी लिपि में लेख अंकित है, जिनका समय चौथी-पाँचवीं शताब्दी निर्धारित की गयी है। संभवतः इस क्षेत्र में शासन करने वाले गुप्तों के सामंतों द्वरा इन गुफाओं का निर्माण करवाया गया है।

बाघ की गुफायें विन्ध्य पहाङियों को काटकर बनाई गयी हैं। सर्वप्रथम 1818 ईस्वी में इनका पता डेंजर फील्ड ने लगाया था। इन गुफाओं की संख्या 9 है, जिनमें चौथी-पांचवी गुफाओं के भित्ति-चित्र सबसे अधिक सुरक्षित अवस्था में हैं। ये चित्र अजंता के चित्रों से इस अर्थ में भिन्न हैं, कि इनका विषय धार्मिक न होकर लौकिक जीवन से संबंधित है।

बाघ की चौथी-पांचवी गुफाओं को संयुक्त रूप से रंग महल कहा जाता है। इनका बरामदा परस्पर मिला हुआ है। इनके बरामदे तथा भीतरी दीवारों पर सर्वाधिक चित्र बनाये गये हैं। 6 दृश्य विशेष रूप से प्रसिद्ध हैं। पहले दृश्य राजभवन के एक खुले मंडप में बैठी हुई दो युवतियों का है, जिनमें एक राजकुमारी तथा दूसरी उसकी सेविका लगती है। राजकुमारी का शरीर आभूषणों से युक्त है। वह अपना हाथ सेविका के कंधों पर रखकर उसकी बातें ध्यान से सुन रही है।

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छत्र पर कबूतर के दो जोङे चित्रित किये गये हैं। दूसरा दृश्य दो जोङो का है, जो एक दूसरे के सम्मुख बैठकर शास्रार्थ में लीन प्रतीत होते हैं। बायीं ओर एक पुरुष-स्री है, जिनके सिर पर मुकुट होने से उनका राजा रानी होना सूचित होता है। दायीं ओर दूसरा जोङा सामान्य जन है।

पृष्ठ भाग पर वनस्पतियों का अंकन है। तीसरा एक संगीत का दृश्य है। इसमें पुरुषों तथा स्रोयों के दो अलग-2 समूह हैं। 6 पुरुषों का समूह स्रियों के संगीत का आनंद उठा रहा है। स्री समूह के मध्य एक स्री वीणा बजाते हुए चित्रित है। एक के सिर पर मुकुट है, जिससे वह नायिका लगती है। सभी अलंकृत वस्त्र तथा आभूषण धारण किये हुये चित्रित हैं।

ये सभी समूह में नृत्य करते हुये दर्शाये गये हैं। इनके हाथों में मृदंग, करताल, कांस्यताल आदि वाद्य यंत्र हैं। बायीं ओर सात स्रियों के बीच विचित्र वेशभूषा वाली नर्तकी है, जो मोतियों की माला पहने हुये है। तीन स्रियां डंडे बजा रही हैं। एक मृदंग तथा तीन मजीरा बजाते हुए दिखायी गयी हैं। दायें समूह में छः स्रियों के घेरे में भी एक नर्तक अथवा नर्तकी है। दोनों समूहों की स्रियों-पुरुषों की वेषभूषा सुंदर है। स्रियों के केश विन्यास आकर्षक हैं। इस चक्राकार नृत्य को भारतीय परंपरा में हल्लीसक कहा गया है। इस हल्लीसक की उत्पत्ति भगवान कृष्ण की रासलीला से मानी जाती है।भारतीय संगीत का यह रूप गुप्तकाल के आमोदपूर्ण नगर जीवन के सर्वथा उपयुक्त था। पाँचवें दृश्य में सामूहिक नृत्य को सम्राट तथा उसके घुङसवार सैनिक देखते हुये प्रदर्शित किये गये हैं। इस चित्र में घोङों पर सवार सैनिक किसी शोभायात्रा में जा रहे हैं। सभी स्री-पुरुषों ने सुंदर आभूषण एवं कपङे पहन रखे हैं। सम्राट राजसी वेशभूषा में है।

बाघ की गुफा की छत पर मनुष्य, पशु, पक्षी, पुष्प, लता पत्र आदि का मनोहर चित्रण है।

इस प्रकार हम कह सकते हैं, कि अजंता के ही समान बाघ की चित्रकला भी प्रशंसनीय है। जहाँ तक अजंता एवं बाघ के चित्रों में अंतर का प्रश्न है, वो यह है,कि बाघ की गुफा के चित्रों पर लेप नहीं लगया गया है। चिकनी दीवार पर चूने की सफेदी की जाती थी तथा उसके सूखने पर चित्र बनाये गये हैं।

Reference : https://www.indiaolddays.com

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