संगम काल का चोल राज्य
संगम युगीन राज्यों में सर्वाधिक शक्तिशाली चोलों का राज्य था। यह पेन्नार तथा दक्षिणी वेल्लारु नदियों के बीच स्थित था। इसके अन्तर्गत चित्तूर, उत्तरी अर्काट, मद्रास से चिंगलपुत्त तक का भाग, दक्षिणी अर्काट, तंजौर, त्रिचनापल्ली का क्षेत्र सम्मिलित था। संगम काल का सबसे प्रथम एवं महत्त्वपूर्ण शासक करिकाल है। उसके प्रारंभिक जीवन के विषय में जो सूचना मिलती है, उसके अनुसार उसका बचपन बङी कठिनाई से बीता था। बचपन में उसका पैर जल गया तथा बाद में चलकर वह अपने शत्रुओं द्वारा बंदी बना कर कारागार में डाल दिया गया। इस प्रकार उसका पैतृक राज्य भी उससे छीन लिया गया। किन्तु करिकाल बङा वीर तथा हिम्मती था। 190 ई. के लगभग उसने अपने समस्त शत्रुओं को हराकर अपने राज्य पर पुनः अपना अधिकार जमा लिया। इसके बाद करिकाल का समकालीन चेर तथा पाण्ड्य राजाओं के एक संघ को भी पराजित किया। उसके बाद वाहैप्परण्डल के युद्ध में उसने नौ शत्रु राजाओं के एक संघ को जीता। इन विजयों के फलस्वरूप कावेरी नदी-घाटी में करिकाल की स्थिति अत्यन्त सुदृढ हो गयी।
करिकाल की उपलब्धियों का अत्यन्त अतिश्योक्तिपूर्ण विवरण हमें प्राप्त होता है। वह स्वयं एक विद्वान, विद्वानों का आश्रयदाता तथा महान निर्माता था। पुहारपत्तन का निर्माण इसी के समय में हुआ था। इसके अलावा उसने कावेरी नदी के मुहाने पर बाँध बनवाया तथा उसके जल का उपयोग सिंचाई के लिये करने के उद्देश्य से नहरों का निर्माण करवाया था। पेरुनानन्नुपादे में उसे संगीत के सप्तस्वरों का विशेषज्ञ बताया गया है। इस प्रकार करिकाल एक महान विजेता एवं प्रजावत्सल शासक था। प्रारंभिक चोल शासकों में वह एक महान शासक था।
करिलकाल के बाद चोलों की शक्ति निर्बल पङने लगी। उसके तीन पुत्र थे – नलंगिल्ली, नेडुमुदुक्किलि तथा मावलत्तान। इनमें नलंगिल्ली के संबंध में कुछ-कुछ जानकारी प्राप्त होती है। ऐसा लगता है, कि इस समय चोल वंश दो शाखाओं में विभक्त हो गया। नलंगिल्ली ने करिकाल के तमिल राज्य पर शासन किया। उसकी एक प्रतिद्वन्दी शाखा नेडुनगिल्ली के अधीन संगठित हो गयी। दोनों के बीच एक दीर्घकालीन गृहयुद्ध छिङा। अंत में कारियारु के युद्ध में नेडुनगिल्ली पराजित हुआ तथा मार डाला गया। इस युद्ध का विवरण मणिमेकलै में प्राप्त होता है। इन दो राजाओं का एक अन्य समकालीन कलिवलवन् था, जो उरैयूर में राज्य करता था। वह एक शक्तिशाली शासक था, जिसने चेरों को हराकर उनकी राजधानी करूर के ऊपर अधिकार जमा लिया।
इन शासकों के अलावा संगम साहित्य में चोल वंश के कुछ अन्य राजाओं के नाम भी प्राप्त होते हैं – कोप्परुन्जोलन, पेरुनरकिल्लि, कोंचेगणान् आदि । संगम युगीन चोल शासकों ने तीसरी-चौथी शती तक शासन किया। उसके बाद उरैयूर के चोल वंश का इतिहास अंधकारपूर्ण हो जाता है। नवीं शता. के मध्य विजयालय के नेतृत्व में पुनः चोल सत्ता का उत्थान हुआ।
References : 1. पुस्तक- प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति, लेखक- के.सी.श्रीवास्तव
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