मौर्य शासक बिन्दुसार (अमित्रघात) कौन था
चंद्रगुप्त मौर्य की मृत्यु के बाद उसका पुत्र बिंदुसार मौर्य साम्राज्य की गद्दी पर बैठा। बिंदुसार को जितना साम्राज्य अपने पिता चंद्रगुप्त मौर्य से उत्तराधिकार में प्राप्त में हुआ था, उसको उसने बिना किसी नुकसान के बनाये रखा। चंद्रगुप्त मौर्य की मृत्यु कैसे हुई?
बिंदुसार (298 ईसा पूर्व से 273 ईसा पूर्व) का प्रारंभिक जीवन
जैन परंपराओं में बिंदुसार की माता का नाम दुर्धरा मिलता है।
बिन्दुसार का अलग-2 ग्रंथों में अलग-2 नामों से वर्णन किया गया है जैसे –
- जैन ग्रंथ – सिंहसेन ।
- यूनानी – अमित्रोकेट्स।
- पुराण – भद्रसार, अमित्रघात।
यूनानी लेखकों ने उसे अमित्रोकेडीज कहा है। जिसका संस्कृत में रूपांतर अमित्रघात (शत्रुओं को नष्ट करने वाला) होता है। यह उसकी उपाधि थी। जैन ग्रंथ उसे सिंहसेन कहते हैं।
इन उपाधियों से स्पष्ट है कि वह कोई दुर्बल अथवा विलासी शासक नहीं था। परंतु अपनी किन विजयों के उपलक्ष में उसने उन उपाधियों को ग्रहण किया था, यह निश्चित रूप से ज्ञात नहीं है। कुछ बाद के बौद्ध तथा जैन ग्रंथों से पता चलता है, कि बिन्दुसार के शासन के अंत के कुछ वर्षों तक चाणक्य विद्यमान था। तिब्बती इतिहासकार तारानाथ ने बिन्दुसार की उपलब्धियों का इस प्रकार विवरण दिया है- उसने 6 नगरों तथा उनके राजाओं को नष्ट कर पूर्वी और पश्चिमी समुद्रों के बीच के संपूर्ण भाग पर अधिकार कर लिया।
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यह वर्णन कहाँ तक सत्य है, यह निश्चित कर सकना कठिन है। इस कथन से पता चलता है, कि बिन्दुसार के समय कुछ प्रदेशों में विद्रोह हुए और उसने उन्हें दबा दिया। दिव्यावदान तक्षशिला में होने वाले विद्रोह का वर्णन करता है। जिसको दबाने के लिये बिन्दुसार ने अपने पुत्र अशोक को भेजा था।
अशोक ने उदारतापूर्ण नीति का अनुसरण करते हुए वहाँ शांति और व्यवस्था स्थापित की थी।संभव है इसी प्रकार के कुछ अन्य उपद्रव पूर्वी तथा पश्चिमी प्रदेशों में हुए हों और बिन्दुसार ने सैनिक शक्ति द्वारा उन्हें शांत कर दिया हो।
बिंदुसार के समय में भी भारत का पश्चिमी यूनानी राज्यों के साथ मैत्री संबंध कायम रहा। स्ट्रैबो के अनुसार सीरिया के राजा एन्टियोकस ने डाइमेकस नामक अपना एक राजदूत बिन्दुसार की राज्य सभा में भेजा था। यह मेगस्थनीज के स्थान पर आया था। प्लिनी हमें बताता है, कि मिस्र के राजा टालमी द्वितीय फिलाडेल्फस (285-247 ईसा पूर्व) ने डाइनोसियस नामक एक राजदूत मौर्य दरबार में भेजा था। परंतु यह स्पष्टतः पता नहीं है कि यह राजदूत बिन्दुसार के समय आया था अथवा उसके पुत्र अशोक के समय, क्योंकि मिस्री नरेश इन दोनों मौर्य सम्राटों का समकालीन था।
मेगस्थनीज और उसकी इंडिका का वर्णन।
एथेनियस नामक एक अन्य यूनानी लेखक ने बिन्दुसार तथा सीरिया के राजा एन्टियोकस प्रथम के बीच एक मैत्रीपूर्ण पत्र-व्यवहार का विवरण दिया है, जिसमें भारतीय शासक ने सीरियाई नरेश से तीन वस्तुओं की माँग की थी –
- मीठी मदिरा
- सूखी अंजीर
- एक दार्शनिक (सोफिस्ट)।
सीरियाई सम्राट ने प्रथम दो वस्तुएँ भिजवा दी, परंतु तीसरी वस्तु अर्थात् दार्शनिक के संबंध में यह कहला भेजा, कि यूनानी कानूनों के अनुसार दार्शनिकों का विक्रय नहीं किया जा सकता। इस विवरण से पता चलता है, कि बिन्दुसार के समय में भारत का पश्चिमी एशिया के साथ व्यापारिक संबंध था। इससे बिन्दुसार की दार्शनिक रुचि का भी पता चलता है।
प्रशासन के क्षेत्र में बिन्दुसार ने अपने पिता की व्यवस्था का ही अनुगमन किया। अपने साम्राज्य को उसने प्रांतों में विभाजित किया तथा प्रत्येक प्रांत में कुमार (उपराजा) नियुक्त किये।
प्रशासनिक कार्यों के लिये अनेक महामात्रों की भी नियुक्ति की गयी। दिव्यावदान के अनुसार अवंति राष्ट्र का उपराजा अशोक था। बिन्दुसार की सभा में 500 सदस्यों वाली एक मंत्रिपरिषद् भी थी, जिसका प्रधान खल्लाटक था। वह कौटिल्य के बाद हुआ था। बिन्दुसार के शासन काल की अन्य बातों के बारे में जानकारी प्राप्त नहीं है।
ऐसा प्रतीत होता है कि उसने 25 वर्षों तक राज्य किया और उसकी मृत्यु 273 ईसा पूर्व के लगभग हुई थी।
थेरवाद परंपरा के अनुसार बिन्दुसार ब्राह्मण धर्म का अनुयायी था। दिव्यावदान से पता चलता है, कि उसकी राज्यसभा में आजीवक संप्रदाय का एक ज्योतिषी निवास करता था।
बिन्दुसार के दरबार में 500 मंत्रियों की सभा थी जिसका प्रमुख खल्लाटक था।
बिंदुसार ने आजीवक धर्म को प्रश्रय दिया। तथा बिंदुसार के गुरु का नाम पिंगलवत्स था।
बिंदुसार के समय तक्षशिला में हुए एक विद्रोह को अशोक सफलतापूर्वक समाप्त करता है। आगे चलकर फिर से तक्षशिला में विद्रोह हुआ, सुशीम को भेजा गया लेकिन असफल रहा।
बिंदुसार के समय अशोक उज्जैन का उपराजा था।
बिंदुसार का महत्त्व-
बिंदुसार ने वृहद मौर्य साम्राज्य का सफलतापूर्वक संकलन किया।
Reference : https://www.indiaolddays.com/