चंद्रगुप्त मौर्य का अंत कैसे हुआ
चंद्रगुप्त मौर्य एक महान विजेता, साम्राज्य निर्माता एवं कुशल प्रशासक था।एक सामान्य कुल में उत्पन्न होते हुए भी अपनी योग्यता और प्रतिभा के बल पर वह एक सार्वभौम सम्राट के पद पर पहुँच गया था।
उसने देश में पहली बार एक सुसंगठित शासन व्यवस्था की स्थापना की और वह व्यवस्था इतनी उच्चकोटी की थी कि आगे आने वाली पीढियों के लिये आदर्श स्वरूप बनी रही। वह एक धर्म-प्राण व्यक्ति था। जैन परंपराओं के अनुसार अपने जीवन के अंतिम दिनों में वह जैन हो गया था। तथा भद्रबाहु की शिष्यता ग्रहण कर ली। उसके शासन काल के अंत में मगध में बारह वर्षों का भीषण अकाल पङा।
पहले तो चंद्रगुप्त ने अकाल से निपटने की पूरी कोशिश की, किन्तु उसे सफलता नहीं मिली। परिणामस्वरूप वह अपने पुत्र के पक्ष में सिंहासन त्याग कर भद्रबाहु के साथ श्रवणबेलगोला (मैसूर) में तपस्या करने चला गया। इसी स्थान पर 298 ईसा पूर्व में उसने जैन विधि से उपवास पद्धति द्वारा प्राण त्याग किया।इसे जैन धर्म में सल्लेखना कहा गया है। यहाँ उल्लेखनीय है कि श्रवणबेलगोला की एक छोठी पहाङी आज भी चंद्रगिरी कही जाती है। वहां चंद्रगुप्त बस्ती नामक एक मंदिर भी है।
Reference : https://www.indiaolddays.com/