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अधिनायक वाद का उदय

अधिनायक वाद का उदय

अधिनायक वाद का उदय (Rise of Totalitarianism)

इटली में फासिस्टवाद की स्थापना

प्रथम विश्वयुद्ध में सम्मिलित होते समय अमेरिकी राष्ट्रपति विल्सन ने कहा था कि हम विश्व को लोकतंत्र के लिए सुरक्षित बनाने के लिए युद्ध में सम्मिलित हो रहे हैं। लेकिन इसके परिणाम विपरीत ही हुए। महायुद्ध के बाद इटली, जर्मनी तथा स्पेन में अधिनायक तंत्रों की स्थापना हो गयी। इटली में 1860 ई. से ही जनतंत्र था। प्रथम विश्वयुद्ध से उत्पन्न परिस्थितियों का इटली जनतंत्र सामना नहीं कर सका तथा उसका अंत हो गया।

1870 ई. में एकीकरण के बाद इटली की विदेश नीति के तीन प्रमुख लक्ष्य थे –

क.) इटालियन प्रदेशों को इटली में सम्मिलित करना।
ख.) अफ्रीका में विशाल साम्राज्य स्थापित करना।
ग.) भूमध्य सागर में इटली का वर्चस्व स्थापित करके उसे रोमन झील बना देना।

अपनी महत्वाकांक्षा की पूर्ति हेतु इटली ने सदैव श्रगाल नीति का अनुसरण किया। इटली 1882 ई. में त्रिगुट संधि में सम्मिलित हो गया, किन्तु वह प्रथम विश्वयुद्ध में धुरी राष्ट्रों की ओर से सम्मिलित नहीं हुआ। 1915 ई. की लंदन संधि द्वारा मित्रराष्ट्रों ने इटली को ब्रेनर दर्रे तक क्षेत्र, टाइरोल, ट्रीस्ट, ट्रेन्टिनो, गोर्जिया, इरीट्रिया, डालमेशिया तथा टर्की के कुछ प्रदेश देने का वचन दिया।

यद्यपि जर्मनी तथा आस्ट्रिया ने भी इटली को फ्रान्स के अफ्रीकी उपनिवेश देने का आश्वासन दिया था, परंतु इटली मित्र राष्ट्रों की ओर से युद्ध में सम्मिलित हुआ, क्योंकि उसे इस ओर अधिक लाभ दिखाई दिया।

युद्धोत्तर इटली की निराशा

प्रथम विश्वयुद्ध में इटली की अधिकांश मोर्चों पर पराजय हुई। इस युद्ध में इटली के 6 लाख सैनिक मारे गए तथा लगभग 10 लाख घायल हुए। उसके 12 अरब डालर युद्ध पर खर्च हुए तथा 3 अरब डालर की संपत्ति नष्ट हो गयी। इतने बलिदान के बाद भी इटली को विजेता राष्ट्र होते हुए भी पेरिस शांति सम्मेलन से निराशा ही हाथ लगी।

इटली का प्रधानमंत्री औरलैण्डो पेरिस शांति सम्मेलन में केवल टाइरोल, ट्रेण्टिनो, ट्रीस्ट, इरीट्रिया, जारा, लगोस्टा टापू तथा डालमेशिया के तट का कुछ भाग ले पाया। उसका फयूम पर दावा ठुकरा दिया गया। टर्की से उसे मिलने वाले क्षेत्र यूनान को दे दिये गये। उसे अल्बानिया खाली करना पङा।

अफ्रीका में भी उसकी आशाओं के विपरीत बहुत थोङा क्षेत्र प्राप्त हुआ। जहाँ युद्धोपरांत ब्रिटेन को 90 लाख आबादी वाली 9 लाख 89 हजार वर्गमील भूमि तथा फ्रांस को 60 लाख आबादी की 2 लाख 53 हजार वर्गमील भूमि मिली। वहीं इटली को केवल 16 लाख 72 हजार आबादी की 8 हजार 900 वर्गमील भूमि प्राप्त हुई।

संधि की इन व्यवस्थाओं से जहाँ इटली को आघात पहुँचा, वहीं उसकी अन्तर्राष्ट्रीय प्रतिष्ठा को भी धक्का लगा। इटली में हङताओं तथा विद्रोहों का सिलसिला आरंभ हो गया। इस अराजकता एवं निराशा की स्थिति में वहाँ फांसीवादी आंदोलन आरंभ हुआ।

फासिस्टवाद के उदय के कारण

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