इतिहासप्राचीन भारतवैदिक काल

ऋग्वैदिक काल की आर्थिक व्यवस्था

आर्थिक व्यवस्था- ऋग्वैदिक आर्य ग्रामीण संस्कृति से जुङे हुए थे।

  • अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार पशुपालन था।
  • गाय, घोङा पवित्र तथा महत्वपूर्ण पशु थे।
  • बैल , भेङ, कुत्ता भी आर्य लोग पालते थे। ऊँट तथा हाथी से भी परिचित थे।
  • व्याघ्र (बाघ) का उल्लेख ऋग्वेद में नहीं मिलता ।
  • सबसे महत्वपूर्ण गाय को माना जाता था।  तथा दूसरे स्थान पर घोङा था।
  • कृषि द्वितीयक (गौण) पेशा मानी जाती थी। ऋग्वेद में कृषि को हीन कर्म बताया गया है। पूरे ऋग्वेद में केवल 24 श्लोक में ही कृषि का उल्लेख मिलता है तथा 33 बार कृषि श्ब्द मिलता है।
  • ऋग्वैदिक देवताओं से पशुओं की सुरक्षा हेतु प्रार्थनाएँ की गई थी।
  • कृषि में लकङी के हल,फॉल जैसे उपकरणों का प्रयोग किया गया था। 
  • कृत्रिम सिंचाई का भी उल्लेख मिलता है। कृषि से संबंधित कई शब्द मिलते हैं- अवल = कुंआ

                                                                                                                                                                  कुल्ला= नहर 

                                                                                                                                                                 पर्जन्य= बादल 

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  • कृषि उत्पादन सिमित था।
  • कृषि निर्वाह अर्थव्यवस्था थी।
  • सीता- हल की रेखा।
  • उर्वर- जुता हुआ खेत।
  • यव- जौ – एकमात्र फसल जौ की ही होती थी ।
  • धान्य – अनाज ।
  • कीवाश- हलवाला।
  • करिषु – खाद ।
  • ऋग्वैदिक काल में गेहूँ तथा चावल नहीं थे।
  • ऋग्वेद में आर्यों का उल्लेख 33 बार हुआ है।

        पूषण देवता-      सङक निर्माण, चारागाह तथा पशुपालन से संबंधित देवता थे।

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