इतिहासइस्लाम धर्ममध्यकालीन भारत

इस्लाम धर्म के सिद्धांत

इस्लाम धर्म के सिद्धांत

पैगम्बर मुहम्मद के उपदेशों तथा शिक्षाओं को ही सम्मिलित रूप से इस्लाम की संज्ञा दी जाती है। इस्लाम मत कट्टर एकेश्वरवाद में विश्वास करता है। इसके अनुसार सृष्टि का एकमात्र देवता अल्लाह (ईश्वर) है, जो सर्वशक्तिमान, सर्वज्ञ एवं असीम करुणा का सागर है। उसके अलावा कोई दूसरी सत्ता नहीं है। सभी मनुष्य उसी की संतान हैं, और इस प्रकार सभी मुसलमान सगे भाई-बहन हैं।
अल्लाह ही समय-समय पर अपनै पैगम्बरों को पृथ्वी पर भेजता है। इस्लाम के अनुसार मनुष्य को अल्लाह की इच्छा के समक्ष अपने आपको पूर्णतया अर्पित कर देना चाहिये। इस्लाम मानव मात्र की समानता में विश्वास करता है, जिसके अनुसार एक ही ईश्वर की सन्तान होने के कारण एक मनुष्य तथा दूसरे मनुष्य के बीच कोई भेद नहीं है। यह अवतारवाद, मूर्ति-पूजा तथा जाति-पाति का घोर विरोधी है।
इस धर्म की प्रमुख नैतिक शिक्षायें क्षमा-शीलता, ईमानदारी, दूसरों की भलाई के लिये कार्य करना, निर्धनों की सहायता करना और इसके लिये जकात देना, प्रतिशोध न लेना। संयम से काम लेना आदि हैं। यह धर्म, पाप तथा पुण्य में विश्वास रखता है। मनुष्य को ईश्वर से डरकर अच्छे कर्म करने चाहिये तथा बुरे कार्यों में विरत रहना चाहिये। स्वर्ग तथा नरक का निर्धारण मनुष्य के अच्छे-बुरे कार्यों के आधार पर ही किया जाता है। जो धर्म में आस्था नहीं रखते तथा बुरा काम करते हैं, उन्हें मृत्यु के बाद घोर कष्ट मिलता है।
इसके विपरीत भला कार्य करने वाले व्यक्ति शाश्वत सुख की प्राप्ति करते हैं। इस प्रकार यह मत कर्मवाद की भी मान्यता देता है, किन्तु पुनर्जन्म का सिद्धांत इस मान्य नहीं है।

इस्लाम धर्म के कर्मकाण्डीय पक्ष इस प्रकार हैं –

  • कलमा पढना,
  • दिन में पाँच बार नमाज अदा करना,
  • प्रत्येक शुक्रवार के दिन सामूहिक रूप से नमाज अदा करना,
  • जकात देना,
  • रमजान में रोजा रखना,
  • मक्का की (हज) यात्रा करना आदि।
References :
1. पुस्तक- प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति, लेखक- के.सी.श्रीवास्तव 

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