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नेपोलियन बोनापार्ट का इटली अभियान

नेपोलियन बोनापार्ट का इटली अभियान

1796-97 ई. में फ्रांस की स्थिति काफी सुधर गई थी। हालैण्ड को जीतकर फ्रांस ने वहां एक पिछलग्गू गणतंत्र स्थापित कर दिया था। बेल्जियम तथा राइन नदी के किनारे के सभी जर्मन राज्यों को भी फ्रांस ने जीति लिया था। प्रशा, स्पेन और टस्कनी युद्ध से हट गये थे।

अब केवल इंग्लैण्ड और आस्ट्रिया ने ही क्रांतिकारी फ्रांस के विरुद्ध युद्ध जारी रखा था। इटली के बहुत से क्षेत्र आस्ट्रिया के अधिकार में थे। इटली का पोप भी क्रांति का जबरदस्त शत्रु था और उसी के इशारे पर फ्रांस में कई धार्मिक उपद्रव भङके थे। अतः फ्रांस के लिये इटली पर आक्रमण करना स्वाभाविक ही था।

बोनापार्ट का इटली अभियान सैनिक विशेषज्ञों की दृष्टि में युद्ध कला का अपने ढंग का एक अनूठा उदाहरण है और श्रेष्ठतम कोटि के रणकौशल का परिचायक है। नेपोलियन को सार्डिनिया और आस्ट्रिया की संयुक्त सेनाओं का मुकाबला करना पङा, जिनकी संख्या उसके सैनिकों से लगभग दुगुनी थी।

नेपोलियन के पास जो सैनिक थे, उनके पास ठीक पोशाक भी न थी। अधिकारियों तक के पास जूते न थे, इसलिये नेपोलियन ने शत्रु सेनाओं को आपस में मिलने का अवसर न देकर उन्हें पृथक-पृथक करके परास्त करने का निश्चय किया। सर्वप्रथम उसने डीगो के स्थान पर आस्ट्रिया की सेना को परास्त करके उसे पूर्व की तरफ खदेङ दिया।

यहाँ से वह पश्चिम की तरफ मुङा और अचानक सार्डिनिया की सेना पर टूट पङा और मोल्डवी नामक स्थान पर उसे पराजित किया। इससे सार्डिनिया की राजधानी टूरिन को जाने वाले मार्ग पर नेपोलियन का अधिकार हो गया। भयभीत सार्डिनिया ने संधि करना ही उचित समझा।

संधि के अनुसार सार्डिनिया ने सेवाय और नीस के प्रदेस फ्रांस को देना स्वीकार कर लिया। इसके बाद नेपोलियन ने अपना सारा ध्यान आस्ट्रियन सेना पर केन्द्रित कर दिया। सबसे पहले उसने आस्ट्रिया के इटालियन राज्य लोम्बार्डी को जीता। इस समय तक आस्ट्रिया की सेना आहदा नदी के उस पार चली गई थी।

शत्रु सेना तक पहुँचने के लिये लोदी के पुल को पार करना जरूरी था। इस लंबे पुल के दूसरे किनारे पर आस्ट्रिया का तोपखाना था। नेपोलियन ने भयंकर गोलाबारी के उपरांत भी पुल को पार करके शत्रु सेना को परास्त कर दिया। वास्तव में लोदी के पुल का युद्ध उसकी शूरवीरता का एक ज्वलंत उदाहरण था।

उस दिन से नेपोलियन अपने सैनिकों का आराध्य देव बन गया। इस युद्ध में पराजित होने के बाद आस्ट्रिया की सेना ने मान्युआ दुर्ग में आश्रय लिया। सामरिक दृष्टि से इसका बङा भारी महत्त्व था। नेपोलियन ने दुर्ग का घेरा डाल दिया। आठ महीने से भी अधिक घेरा चलता रहा और इस बीच आस्ट्रिया ने घेरा तोङने के लिये चार बार सेनाएँ भेजी, परंतु सभी अवसरों पर उन्हें परास्त होकर वापस लौटना पङा।

13-14 जनवरी, 1797 को रिवोली का युद्ध लङा गया, जिसमें आस्ट्रिया की सेना परास्त हुई और मान्टुआ ने आत्म समर्पण कर दिया। इसके बाद नेपोलियन आस्ट्रिया की राजधानी वियना से केवल 100 मील की दूरी पर था, अतः आस्ट्रिया को संधि के लिये विवश होना पङा। 18 अप्रैल, 1797 को लियोबेन की विराम-संधि हो गयी।

इस अभियान के समय नेपोलियन ने डाइरेक्टरी से पूछे बिना ही लङाई की, संधि की और राज्यों का निर्माण किया। एनकोना में पोप की सेना को हराने के बाद उसने पोप से धन वसूल किया, लूट का माल ले लिया और कुछ भूमि की हथिया ली। लोम्बार्डी राज्य को सिसलपाइन और जेनोआ को लाइगूरियन गणतंत्र में बदल दिया गया और दोनों को फ्रांसीसी ढंग से संविधान दे दिए। पेरिस के आदेश की अवहेलना करते हुये उसने नियपोलिटन अभियान में भाग नहीं लिया।

17 अक्टूबर, 1797 को आस्ट्रिया ने कैम्पोफोर्मियो की संधि पर हस्ताक्षर कर दिए। यह संधि नेपोलियन के इटालियन अभियान का चरमोत्कर्ष था। यह फ्रांसीसियों की बहुत बङी विजय थी। यूरोप की सबसे प्रतिक्रियावादी शक्ति ने फ्रांसीसी गणतंत्र की असाधारण विजयों को मान्यता दे दी।

इससे इटली में फ्रांस का स्थान सर्वोच्च हो गया। संधि के अनुसार आस्ट्रिया ने बेल्जियम और राइन नदी का पश्चिमी किनारा फ्रांस के लिये छोङ दिया, लोम्बार्डी पर अपना अधिकार त्याग दिया और नेपोलियन द्वारा निर्मित सिसलपाइन गणराज्य (लोम्बार्डी, पारमा, मोडेना, वेनेशिया और पोप के राज्यों के कुछ भाग को मिलाकर बनाया गया था) को मान्यता दे दी।

बदले में फ्रांस ने वेनिस का नगर तथा द्वीप डाल्मेशिया और आस्ट्रिया को सौंप दिये।

प्रसिद्धि लोलुप नेपोलियन ने इस बात की भी व्यवस्था कर ली थी, कि फ्रांस के लोगों को उसकी विजयों की नियमित जानकारी मिलती रहे। अतः जब वह पेरिस वापस लौटा तो जनता ने उसका इटली अभियान बहुत ही सफल रहा और वह सेना तथा जनता, दोनों की उत्सुकता का केन्द्र बन गया।

1. पुस्तक- आधुनिक विश्व का इतिहास (1500-1945ई.), लेखक - कालूराम शर्मा

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