इतिहासराजस्थान का इतिहास

बूँदी चित्रकला शैली का इतिहास

बूँदी चित्रकला शैली – राजस्थानी चित्रकला शैली में बूँदी शैली का बङा महत्त्वपूर्ण स्थान है। कोटा राज्य के अलग हो जाने के बाद यद्यपि बूँदी एक छोटा सा राज्य रह गया था, फिर भी यहाँ की चित्रकला निरंतर विकसित होती रही। 1569 ई. में राव सुर्जन हाङा ने मुगलों की अधीनता स्वीकार कर मुगल साम्राज्य की बङी सेवा की। अतः बूँदी की चित्रकला पर मुगल प्रभाव पङने लगा और धीरे-धीरे यह मुगल प्रभाव बढता ही गया। प्रारंभ में बूँदी पर मेवाङ का राजनैतिक प्रभाव होने के कारण यहाँ की चित्रकला मेवाङी शैली से भी प्रभावित थी। 1625 ई. के आस-पास बने दो चित्र रागमाला और रागिनी भैरव में तीन विभिन्न शैलियों का संगम दिखाई देता है। रागिनी भैरव के चित्र में गोल शैली चेहरे और ठुड्डी तथा रंग योजना मेवाङी शैली के अनुरूप है और वेश भूषा भी मेवाङी है। घने पेङ, फूल, चिङियों, मछलियों आदि का चित्रण स्थायी वातावरण के आधार पर हुआ है। चित्र में नीचे की ओर दिखाये गये पानी में कमल के फूलों और बतखों के अंकन में मांडू (मालवा) का प्रभाव दिखाई देता है। इस प्रकार इस चित्र में तीन शैलियों का संगम हुआ है, जो एक नयी शैली का प्रदर्शन कर रहा है।

बूँदी चित्रकला शैली

मेवाङ चित्रकला शैली का इतिहास

मुगलों में घनिष्ठ संबंध स्थापित होने के बाद बूँदी चित्रकला पर मुगल प्रभाव लगातार बढता गया। 1692 ई. के बसंत रागिनी के चित्र में राजा और रानी बगीचे में खङे नये चाँद का अवलोकन कर रहे हैं। इसमें वृक्षों, फूलों, पानी के कुण्ड अथवा तालाबों का अंकन केवल पृष्ठभूमि के लिये नहीं हुआ है, बल्कि इनके अंकन द्वारा संपूर्ण चित्र को रोमाण्टिक बनाने का प्रयास किया गया है। इसमें रंगों का संयोजन मुगल शैली से उन्नत है, लेकिन सरू के वृक्ष, चारों कोनों में फव्वारे आदि में मुगल व दक्षिणी प्रभाव दिखाई देता है। इसी प्रकार 17 वीं शताब्दी के वासुकसज्जा नायिका के चित्र में घने वृक्ष, पशु-पक्षी और फूलों से युक्त बाग के मध्य नायिका को दिखाया गया है। इसमें बगीचे आदि का सौन्दर्य बूँदी के जंगलों के अनुरूप है, किन्तु संपूर्ण चित्र की बनावट और डिजाइन मुगल शैली के अनुरूप है। महाराव उम्मेदसिंह के काल में बूँदी चित्रकला अपने समृद्धि के शिखर पर पहुँच गयी थी। इस काल में बने चित्र विभिन्न ऋतुओं का प्रदर्शन करते हैं, जैसे वर्षा ऋतु दिखाने के लिये चित्र में काले बादल, झूमते हाथी, नाचते मोर, बहते हुए झरने और पहाङों पर घूमते हुए शेर का अंकन हुआ है। महल की खिङकी में नायक-नायिका, वर्षा ऋतु में रोमांस के लिये अंकित किये गये हैं। इसमें काले और नीले रंगों का प्रयोग अधिकता से हुआ है। ग्रीष्म ऋतु के चित्रों में शिकारियों को पेङ की छाया में अथवा प्रेमी-प्रेमिका को फव्वारों के पास बैठा दिखाया गया है। शीतऋतु के चित्रण में प्रेमी युगल को आलिंगनबद्ध दिखाया गया है, तालाब में कुमुदनी के फूल और किसानों को जलती हुई आग के पास दिखाया गया है। इस काल में नायिका भेद के चित्र भी विशेष कुशलता से बनाये गये हैं, जिसका आधार राधा और कृष्ण हैं। यद्यपि इनमें चमकीले रंगों का प्रयोग अत्यधिक मात्रा में हुआ है फिर भी ये चमकीले रंग मोह विहीन नहीं लगते।

यद्यपि महाराव विशनसिंह (1773-1821 ई.) के काल में शिकार के दृश्य अधिकता से मिलते हैं तथा प्रेम और रोमांस के चित्रण में कमी आ गयी थी, लेकिन अब चित्रों की बनावट और रंगों के संयोजन में परिवपक्वता आ गयी। महाराव रामसिंह (1821-1862 ई.) के काल में वैष्णव धर्म से संबंधित चित्र अधिक मिलते हैं। इसके बाद 19 वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में अन्य राज्यों की भाँति बूँदी कलम भी पतनोन्मुख दिखाई देती है। इस समय के एक चित्र में एक अँग्रेज पुरुष और उसकी पत्नी को पियानो बजाते बताया गया है, जो अँग्रेजों से बढते हुए संपर्क का परिणाम था।

References :
1. पुस्तक - राजस्थान का इतिहास, लेखक- शर्मा व्यास

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