अलवर में जन आंदोलन
अलवर में जन आंदोलन – अलवर राज्य में जन जागृति के अग्रदूत पंडित हरिनारायण शर्मा थे, जिन्होंने अस्पृश्यता निवारण संघ, बाल्मीकि संघ और आदिवासी संघ स्थापित कर जन जातियों के उत्थान का कार्य किया। इसके अतिरिक्त खादी का प्रचार एवं साम्प्रदायिक एकता के लिये कार्य कर जनता में जागृति पैदा की। मार्च, 1933 ई. में ब्रिटिश सरकार ने अलवर महाराजा जयसिंह को गद्दी से उतारकर राज्य से निर्वासित कर दिया तथा महाराजा द्वारा मनोनीत उत्तराधिकारी के स्थान पर एक प्रतिक्रियावादी जागीरदार के पुत्र तेजसिंह को गद्दी पर बैठा दिया। अँग्रेजों की इस कार्यवाही के विरोध में पहली बार अलवर में एक आम सभा हुई, जिसमें ब्रिटिश सरकार की इस कार्यवाही की कटु आलोचना की गयी। राज्य सरकार ने हरिनारायण शर्मा, कुंजबिहारी लाल मोदी आदि अनेक नेताओं को बंदी बना लिया तथा जेल में उन्हें कठोर यातनाएँ दी गयी।
हरिपुरा काँग्रेस के प्रस्ताव पारित होने के बाद हरिनारायण शर्मा और कुंजबिहारी लाल मोदी के प्रयत्नों से 1938 ई. में अलवर राज्य प्रजा मंडल की स्थापना हुई, जिसका लक्ष्य महाराजा के नेतृत्व में उत्तरदायी शासन की स्थापना के लिये जनमत तैयार करना था। राज्य सरकार ने इस संस्था का पंजीकरण करने से इन्कार कर दिया, क्योंकि राज्य सरकार का कहना था कि इस संस्था का लक्ष्य जनता का प्रशासन से संबद्ध रहना ही होना चाहिए। प्रजा मंडल ने इसे स्वीकार नहीं किया और संघर्ष आरंभ हो गया। सरकार ने संस्था से संबद्ध अनेक कार्यकर्त्ताओं को बंदी बनाकर मुकदमे चलाये और दंडित किया। सरकारी स्कूल के एक अध्यापक मास्टर भोलानाथ को राज्य सेवा से पृथक कर दिया। अप्रैल, 1940 में अलवर में निर्वासित नगरपालिका परिषद का गठन हुआ, जिसमें 18 में से 10 सदस्य प्रजा मंडल के प्रति सहानुभूति रखते थे। अगस्त, 1940 ई. में प्रजा मंडल ने राज्य सरकार की, संस्था को पंजीकृत करने की शर्त स्वीकार कर ली। अतः प्रजा मंडल का पंजीकरण हो गया, लेकिन संगठन को किसी ध्वज के प्रयोग की अनुमति नहीं दी गयी।
1940 ई. में राज्य द्वारा युद्ध कोष के लिये चंदा वसूल किया जाने लगा। प्रजा मंडल ने न केवल इसका विरोध किया बल्कि राज्य द्वारा युद्ध कोष में अनुदान देने के विरुद्ध प्रचार भी किया। अतः प्रजा मंडल के अध्यक्ष हरिनारायण शर्मा और उपाध्यक्ष मास्टर भोलानाथ को गिरफ्तार कर उन पर मुकदमा चलाया। इससे भारत छोङो आंदोलन को प्रोत्साहन मिला। जनवरी, 1944 ई. में भवानी शंकर शर्मा की अध्यक्षता में प्रजा मंडल का पहला अधिवेशन हुआ, जिसमें राज्य द्वारा उत्तरदायी शासन स्थापित न करने की नीति की आलोचना की गयी। दिसंबर, 1944 ई. में, राजपूताने के राज्यों का एक केन्द्रीय संगठन स्थापित करने हेतु राजपूताना के सभी कार्यकर्त्ता अलवर में एकत्रित हुए। सभी कार्यकर्त्ताओं से विचार विमर्श के बाद फरवरी, 1946 ई. में उत्तरदायी शासन के लिये आंदोलन आरंभ कर दिया गया। सरकार ने प्रजा मंडल के अनेक नेताओं को गिरफ्तार कर लिया। जून, 1946 ई. में किसानों को भू स्वामित्व देने के संबंध में प्रजा मंडल ने आंदोलन किया। सरकार ने दमनकारी नीति से आंदोलन कुचलने का प्रयास किया। तीन दिन तक राजव्यापी हङताल से सरकार पर जनता का नैतिक दबाव पङा और नेताओं को रिहा करना पङा।
12 अगस्त, 1946 ई. को उत्तरदायी शासन के लिये पुनः आंदोलन प्रारंभ हुआ, जो दिल्ली में अंतरिम सरकार गठित होने के बाद समाप्त किया गया। 3 अक्टूबर, 1946 ई. को महाराजा ने संवैधानिक सुधारों हेतु एक समिति नियुक्त की। यद्यपि इसमें दो प्रजामंडल के प्रतिनिधि लिये गये, किन्तु सरकारी अधिकारियों व महाराजा के समर्थकों का बहुमत रखा गया। प्रजा मंडल ने इस समिति के कार्यक्षेत्र की आलोचना की, लेकिन जब सरकार ने विरोध पर ध्यान नहीं दिया तब नवम्बर में सत्याग्रह आंदोलन आरंभ करने तथा समिति से असहयोग की घोषणा की गयी। मई, 1947 में प्रजा मंडल ने अपनी न्यूनतम माँगों का एक प्रतिवेदन सरकार को दिया, जिसमें एक संविधान सभा की स्थापना करने और उसमें प्रजामंडल के सदस्यों का बहुमत रखने की माँग की गयी। महाराजा ने इसे स्वीकार नहीं किया। दिसंबर, 1947 ई. में महाराजा ने आश्वासन दिया कि अगले दो वर्षों में उत्तरदायी सरकार की स्थापना कर दी जायेगी तथा एक अंतरिम मंत्रिमंडल का गठन किया जायेगा। जिसमें आधे सदस्य जन नेता होंगे। किन्तु राज्य में राजनीतिक घटना-चक्र ऐसा घूमा कि मार्च, 1948 ई. में अलवर राज्य का मत्स्य संघ में विलय हो गया, जिससे सारी स्थिति बदल गयी।
References : 1. पुस्तक - राजस्थान का इतिहास, लेखक- शर्मा व्यास