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झाँसी में 1857 की क्रांति का विवरण

सी में 1857 की क्रांति

झाँसी में 1857 की क्रांति (Revolution of 1857 in Jhansi)

1857 की क्रांति के कारण एवं स्वरूप

झाँसी में 1857 की क्रांति (jhaansee mein 1857 kee kraanti) – झाँसी 1857 के संग्राम का एक प्रमुख केन्द्र बन गया जहाँ हिंसा भड़क उठी और झाँसी में 1857 की क्रांति प्रारंभ हो गयी। रानी लक्ष्मीबाई ने झाँसी की सुरक्षा को सुदृढ़ करना शुरू कर दिया और एक स्वयंसेवक सेना का गठन प्रारम्भ किया। इस सेना में महिलाओं की भर्ती की गयी और उन्हें युद्ध का प्रशिक्षण दिया गया। साधारण जनता ने भी इस संग्राम में सहयोग दिया। झलकारी बाई जो लक्ष्मीबाई की हमशक्ल थी को उसने अपनी सेना में प्रमुख स्थान दिया।

झाँसी में 1857 की क्रांति

रानी लक्ष्मीबाई मराठा शासित झाँसी राज्य की रानी और 1857 की राज्य क्रान्ति की द्वितीय शहीद वीरांगना थी। प्रथम शहीद वीरांगना रानी अवन्ति बाई लोधी थी। लक्ष्मीबाई ने सिर्फ 29 वर्ष की उम्र में अंग्रेज साम्राज्य की सेना से युद्ध किया और रणभूमि में वीरगति को प्राप्त हुई।

1854 में झाँसी को अंग्रेजी राज्य में मिला दिया गया था। अतः झाँसी में भी अंग्रेजों के विरुद्ध व्यापक असंतोष था। 5 जून,1857 को झाँसी की सेना ने भी विद्रोह कर दिया था तथा अंग्रेज अधिकारियों को दुर्ग में घेरकर 8 जून को उनकी हत्या कर दी।

आरंभ में रानी लक्ष्मीबाई ने विद्रोहियों का समर्थन नहीं किया तथा सागर डिविजन के कमिश्नर को पत्र लिखकर अपनी स्थिति भी स्पष्ट की। अर्सकाइन ने भी रानी को प्रशासन का उत्तरदायित्व सौंपा, फिर भी अंग्रेजों ने झाँसी पर आक्रमण किया, तब भी रानी अंग्रेजों से सहायता प्राप्त करना चाहती थी, किन्तु अंग्रेजों ने उसे संदेह की दृष्टि से देखा।

विवश होकर रानी ने झाँसी के विद्रोहियों का नेतृत्व ग्रहण कर लिया। रानी का दमन करने के लिये ह्यूरोज सेना लेकर बुंदेलखंड की ओर आया। रानी ने स्वयं सेना का संचालन किया और उसकी वीरता को देखकर अंग्रेजों ने भी दांतों तले अंगुलियाँ दबा ली। ग्वालियर से तांत्या टोपे भी रानी की सहायता के लिए आ पहुँचा।

किन्तु कुछ देशद्रोहियों ने किले के फाटक खोल दिये, जिससे शत्रु सेना को अंदर आने का मार्ग मिल गया। अतः रानी लक्ष्मीबाई 4 अप्रैल,1858 को रात के अंधेरे में नगर से बाहर चली गई और बङी बहादुरी से लङती हुई कालपी पहुँची। ह्यूरोज भी रानी का पिछा करते हुए कालपी आ पहुँचा और वहाँ घमासान युद्ध हुआ। मई, 1858 में कालपी पर अंग्रेजों का अधिकार हो गया। वहाँ से रानी ग्वालियर पहुँची,तथा ग्वालियर पर अधिकार कर लिया।

ह्यूरोज भी ग्वालियर पहुँचा और रानी को घेर लिया। अतः रानी ने यहाँ से भी भागने का प्रयास किया, किन्तु उसका घोङा सामने पङे नाले को पार न कर सका और वहीं गिर गया। रानी स्वयं इतनी घायल हो चुकी थी कि उसका बचना असंभव हो गया। इस प्रकार, रानी लक्ष्मीबाई ने एक शहीद की भाँति मृत्यु का वरण किया।

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