इतिहासराजस्थान का इतिहास

राणा हम्मीर कौन था

राणा हम्मीर

राणा हम्मीर – राणा हम्मीर अपने समय का पराक्रमी, साहसी एवं चतुर शासक सिद्ध हुआ। वह सीसोदे के सरदार लक्ष्मणसिंह का पोता था। लक्ष्मणसिंह चित्तौङ की घेरेबंदी के समय अपने सात पुत्रों सहित मारा गया था।

उसका लङका अजयसिंह भाग्यवश जीवित रहा। उसकी मृत्यु के बाद हम्मीर सीसोद का सरदार बना। उसने 1326 ई. के आसपास चित्तौङ को जीता और मेवाङ के सिसोसिया राजवंश की नींव रखी जो स्वतंत्र भारत में भी कुछ वर्षों तक मेवाङ का शासन करता रहा।

चारण-भाटों के वृत्तांतों तथा कुछ बाद के शिलालेखों के आधार पर हम्मीर की प्रारंभिक गतिविधियों का उल्लेख किया जा सकता है। उसने अरावली पहाङों में स्थित केलवाङा को अपना केन्द्र बनाया तथा अपने दैनिक दस्तों की सहायता से आसपास के क्षेत्रों में अपना प्रभाव बढाना शुरू किया।

एकलिंग माहात्म्य के अनुसार उसने पङौस के क्षेत्र भीलवाङा के सरदार राघव को परास्त किया। श्रृंगी ऋषि के लेख के अनुसार हम्मीर ने पहाङी भीलों के विद्रोही सरदार को परास्त कर उस क्षेत्र के भीलों को अपना अनुयायी बनाया।

राणा हम्मीर

राणा हम्मीर की सबसे बङी उपलब्धि

राणा हम्मीर की सबसे बङी उपलब्धि ईडर के राजा जैत्रकर्ण पर विजय प्राप्त करना है। उसने एक कुशल राजनीतिज्ञ का परिचय देते हुये बून्दी के हाङा देवीसिंह पर विजय प्राप्त करने में सहयोग दिया और चौहान मालदेव के लङके बनवीर, जिससे उसने चित्तौङ छीना था, को रतनपुर, खैराङ, गोङवार आदि की जागीरें प्रदान कर उसे अपना सरदार बनाया।

कर्नल टॉड ने हम्मीर की उपलब्धियों का मूल्यांकन करते हुये लिखा है कि – वह अपने समय का प्रबल हिन्दू राजा था और मारवाङ, जयपुर, बून्दी, ग्वालियर, चंदेरी, रायसीन, सीकर, कालपी, आबू के शासक उसके अधीन थे। परंतु टॉड का यह कथन विवादास्पद है और कुछ के अनुसार अतिशयोक्तिपूर्ण भी है।

फिर भी दिल्ली सल्तनत की राजनीतिक स्थिति के आधार पर यह कहा जा सकता है कि अलाउद्दीन के निर्बल उत्तराधिकारियों तथा तुगलक वंश के संस्थापक गियासुद्दीन तुगलक को आंतरिक समस्याओं तथा राजनीतिक षड्यंत्रों एवं विद्रोहों के कारण राजस्थान की तरफ ध्यान देने का विशेष समय न मिला होगा और इससे प्रोत्साहित होकर हम्मीर को अपनी गतिविधियों को तेज करने तथा अपने प्रभाव क्षेत्र की सीमा को बढाने का अवसर मिल गया होगा।

प्रो.ब्राउन सहित अनेक विद्वानों का मानना है कि मुहम्मद तुगलक ने राजपूताने के मामले में किसी प्रकार का हस्तक्षेप ने करने की नीति अपनाई।

डॉ.गोपीनाथ शर्मा ने लिखा है कि हम्मीर ने अपने शौर्य से एक शक्तिशाली शासक का स्थान अवश्य प्राप्त कर लिया था और मेवाङ की सीमाओं का विस्तार करने में सफलता प्राप्त कर ली थी। इसीलिए इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि आसपास के हिन्दू शासकों ने उसके राजनीतिक प्रभाव को मान्यता दी हो।

References :
1. पुस्तक - राजस्थान का इतिहास, लेखक- शर्मा व्यास
Online References
wikipedia : राणा हम्मीर

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