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अलाउद्दीन खिलजी का विजय अभियान

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अलाउद्दीन खिलजी दिल्ली सल्तनत का पहला शासक था जिसने साम्राज्यवादी नीति को अपनाया था। इसके अभियानों का वर्णन कई विद्वानों ने अपने ग्रंथों में किया है।यह विवरण निम्नलिखित है-

  • अमीर खुसरो के ग्रन्थ खजाइन उल फुतूह में अलाउद्दीन खिलजी के विजय अभियानों का वर्णन किया गया है।
  • जियाउद्दीन बरनी के फतवा ए जहाँदीरी तथा तारीख ए फिरोजशाही से भी अलाउद्दीन के विजय अभियानों का पता चलता है।
  • इसामी व फरिश्ता का वर्णन-

“शासक बनते ही अलाउद्दीन खिलजी ने अपने सेनानायक उलूग खाँ के नेतृत्व में मुल्तान का अभियान करवाया तथा जलालुद्दीन खिलजी के परिवार को नष्ट कर दिया।”

अलाउद्दीन खिलजी के विजय अभियानों में अनेक महत्त्वपूर्ण सेनानायकों का सहयोग मिला था।प्रमुख सेनानायक निम्नलिखित हैं-

  • उलूग खाँ ( अलमारु बेग )
  • नुसरत खाँ ( नुसरत जलेसरी )
  • अल्प खाँ ( संजर )
  • जाफर खाँ ( युसुफ खाँ ) – इसने सुस्तम की उपाधि धारण की थी।
  • मलिक काफूर ( ताजुद्दीन काफूर ) – इसे हजार दीनारी भी कहा जाता था, क्योंकि 1000 दीनार में गुजरात के अभियान में  इसे खरीदा गया था। यह अबीसिनियाई ( इथियोपिया ) का हिजङा था। इसने दक्षिण अभियान में सहयोग किया था।

अलाउद्दीन के अभियानों को दो भागों में बांटा जाता है-

(I.)उत्तर भारत के अभियान

(II.)दक्षिण भारत के अभियान

 उत्तर भारत का विजय अभियान-

 इस अभियान में अलाउद्दीन ने उत्तरी भारत के कई राज्यों को जीत लिया था। तथा जीते हुये राज्यों को अपने साम्राज्य में मिला लिया था, जबकि दक्षिण के राज्यों को जीतकर भी अपने साम्राज्य में मिलाने की बजाय अपनी अधीनता स्वीकार करवाकर अपने अधीन शासन करने का अधिकार दिया था। उत्तर भारत के विजित राज्य  निम्नलिखित हैं-

(1.) गुजरात अभियान (1299 ई.) – इस समय गुजरात का शासक कर्ण बघेल था। आक्रमण के कारण निम्नलिखित थे-

(i.) गुजरात का आर्थिक महत्त्व- गुजरात के बंदरगाह सूरत, भङौंच, कैम्बे, खंभात जैसे बंदरगाहों का महत्त्व। इन बंदरगाहों के द्वारा अरबी व ईरानी  घोङों का व्यापार होता था।

(ii.) राजा कर्ण बघेल के मंत्री माधव द्वारा सत्ता प्राप्ति हेतु अलाउद्दीन से सहायता मांगना।

अलाउद्दीन खिलजी ने उलूग खाँ व नुसरत खाँ के नेतृत्व में एक बङी सेना भेजी जिसने जैसलमेर को जीतते हुये गुजरात पर आक्रमण किया। कर्ण बघेल पराजित हुआ और अपनी पुत्री देवलदेवी के साथ देवगिरि के शासक रामचंद्रदेव के यहाँ शरण लेता है। जबकि कर्ण बघेल की पत्नी कमलादेवी बंदी बना ली जाती है तथा दिल्ली भेज दिया गया। जहां अलाउद्दीन उससे विवाह कर लेता है तथा मलिका-ए-जहां की उपाधि देता है।

इस अभियान के दौरान तुर्की सेना ने सूरत, भङौंच व कैम्बे जैसे क्षेत्रों को लूटा तथा सोमनाथ के मंदिर को क्षतिग्रस्त किया और मलिक – काफूर को खरीदा।

कर्ण बघेल के हाथों से गुजरात चला गया था लेकिन एक छोटे से क्षेत्र बघलाना पर कर्ण बघेल का अधिकार बचा था।

(2.)  रणथंभौर अभियान ( 1300-1301 ई. ) – यहाँ  का शासक हम्मीर देव चौहान था।

रणथंभौर पर आक्रमण के कई कारण थे जो इस प्रकार हैं-

(i.) रणथंभौर का सामरिक महत्त्व

(ii.) गुजरात अभियान के समय युद्ध की लूट के बंटवारे को लेकर नवमुस्लिम मंगोल सैनिक (मुहम्मद खाँ) तथा तुर्की सैनिकों में मतभेद हो गया। मंगोल सैनिक राजा हम्मीर देव चौहान के यहाँ शरण लेते हैं।मंगोलों से अलाउद्दीन खिलजी की शत्रुता थी।

अलाउद्दीन ने नुसरत खां के नेतृत्व में रणथंभौर पर आक्रमण करवाया, जिसमें नुसरत खां मारा गया। फिर अलाउद्दीन खिलजी ने स्वयं अभियान किया।

रणमल व रतिपाल नामक राजपूत सरदारों के विश्वासघात के कारण तुर्की सेना किले में घुस गयी हम्मीर लङता हुआ मारा गया तथा उसकी पत्नी संगदेवी ने जौहर किया।

यह पहला जौहर था।

इस अभियान में अमीर खुसरो भी अलाउद्दीन के साथ था, उसने इस जौहर का सजीव वर्णन किया है। इस अभियान में अमीर खुसरो भी अलाउद्दीन के साथ था, उसने इस जौहर का सजीव वर्णन किया है।

(3.) चित्तौङ अभियान(1303 ई.)- चित्तौङ का शासक राणा रत्नसिंह था।

चित्तौङ आक्रमण के कारण निम्नलिखित हैं-

(i.) चित्तौङ का सामरिक महत्त्व – चित्तौङ का दुर्ग दक्षिण के मार्ग पर स्थित मजबूत किला था।

(ii.) पद्मिनी को प्राप्त करने की लालसा।

 अलाउद्दीन ने कुछ महीने की घेराबंदी के बाद चित्तौङ दुर्ग को जीत लिया यहां पर भी पद्मिनी के नेतृत्व में जौहर हुआ। ( चित्तौङ का प्रथम साका )

अलाउद्दीन ने चित्तौङ का नाम अपने पुत्र खिज्रखां के नाम पर रखा तथा इसे  किलेदार बना दिया। इसके बाद अलाउद्दीन ने एक राजपूत अधिकारी मालदेव को चित्तौङ का किलेदार बनाया।लेकिन 1321 ई. में राणा हम्मीर ने चित्तौङ को पुनः जीत लिया।

(4.) मालवा का अभियान (1305 ई.) – यहाँ का शासक महलदेव था जो मंत्री कोका प्रधान की सहायता से शासन  करता था।

मालवा अभियान के कारण-

  • साम्राज्य विस्तार।

अलाउद्दीन खिलजी ने एन-उल-मुल्तानी के नेतृत्व में सेना भेजी व मालवा को जीत लिया।

(5.) शिवाना ( बाङमेर, राज. ) ( 1308 ई.) – यहाँ का शासक शीतलदेव / सातदेव, (सोनगरा चौहान) था। अलाउद्दीन खिलजी ने इसको हराया था।

(6.) जालौर (राज.) (1311ई.) – यहाँ का शासक कान्हङदेव सोनगरा चौहान थे। कुछ ग्रंथों के अनुसार जालौर अभियान के समय अलाउद्दीन ने अपनी दासी गुल-ए-बहिश्त के नेतृत्व में प्रतिकात्वक रूप से आक्रमण करवाया था।

पद्मनाभ द्वारा रचित कान्हङदेव प्रबंध में अलाउद्दीन के जालौर अभियान का वर्णन मिलता है।

  • सिवाना व जालौर के क्षेत्रों के क्षेत्रों को जीतकर अलाउद्दीन ने अपने अधिकारी कमालुद्दीन गर्ग को दोनों क्षेत्रों का अधिकारी बनाया।
  • अलाउद्दीन ने उत्तर भारत के क्षेत्रों को जीतकर प्रत्यक्ष रूप से अपने साम्राज्य में मिला लिया था।

दक्षिण भारत का विजय अभियान-

अलाउद्दीन खिलजी के दक्षिण अभियानों का उद्देश्य धन की प्राप्ति था, अतः दक्षिण के क्षेत्रों को जीतकर अलाउद्दीन ने व्यवहारिक नीति अपनाते हुये प्रत्यक्ष रूप से अपने साम्राज्य में मिलाने के बजाय दक्षिण के राज्यों पर अधिराजत्व (अपने अधीन बनाये रखना) का सिद्धांत अपनाता है।

दक्षिण के अभियान में विजित राज्य निम्नलिखित हैं-

(1.)देवगिरि (महाराष्ट्र ) (1306) – यहाँ का शासक रामचंद्रदेव (यादव वंश) था। देवगिरि पर आक्रमण के कारण निम्नलिखित हैं-

(i.) कर्ण बघेल की सहायता व संरक्षण देना।

(ii.) 1296 ई. के अभियान के बाद रामचंद्रदेव ने कर देना बंद कर दिया था।

(iii.) कमला देवी अपनी पुत्री देवल देवी को पाना चाहती थी।

अलाउद्दीन खिलजी ने मलिक मलिक काफूर एवं अल्प खाँ के नेतृत्व में देवगिरि अभियान भेजा।

अल्प खाँ ने कर्ण बघेल को पराजित किया तथा देवल देवी को दिल्ली भेज दिया, जहाँ अलाउद्दीन के पुत्र खिज्रखाँ से उसका विवाह करवा दिया। इसी पर एक ग्रंथ देवरानी खिज्रखाँ ( अाशिकाना ) लिखा गया।

मलिक काफूर ने रामचंद्रदेव को समान दिया, मित्रता स्थापित की रायरायां की उपाधि दी तथा 1 लाख टंका उपहार व नवसारी ( गुजरात ) का किला रामचंद्रदेव को दिया।बदले में रामचंद्रदेव को अपने अधीन देवगिरि की सत्ता पर पुनः स्थापित किया व नियमित रूप से कर तथा दक्षिण अभियानों के लिये सैन्य सहायता देने की संधि करी।

Note: “पराजित शासकों के साथ मित्रतापूर्ण संबंध बनाने के मामले में अलाउद्दीन अकबर का पूर्वगामी था।”

1313 ई. में रामचंद्रदेव की मृत्यु के बाद देवगिरि का शासक शंकरदेव ( सिंहनदेव ) नया शासक बना। इसने दिल्ली सल्तनत से संबंध विच्छेद किये। मलिक काफूर ने देवगिरि पर फिर से आक्रमण किया शंकरदेव मारा गया। देवगिरि के बङे भू-भाग को दिल्ली सल्तनत में मिला लिया गया।

1315 ई. में शंकरदेव के उत्तराधिकारी हरपालदेव के साथ अलाउद्दीन की संधि हुई। देवगिरि का शासक हरपालदेव का मान लिया गया।

(2.) काकतीय ( वारंगल ) वंश(1310-11 ई. )- यहाँ का शासक प्रतापरुद्र द्वितीय था। मलिक काफूर के नेतृत्व में 1310-11 ई. में अभियान किया गया। प्रतापरुद्र देव ने पराजय स्वीकार की। इस अभियान में रामचंद्रदेव ने सैन्य सहायता प्रदान की थी।

प्रतापरुद्र देव ने स्वयं दिल्ली जाने की बजाय अपनी सोने की मूर्ति अधीनता स्वरूप दिल्ली भेजी, वार्षिक कर देना स्वीकार किया। इसी अभियान में काफूर ने कोहिनूर हीरा लूटा-जिसका विवरण खाफी खां ने किया है।

(3.) द्वारसमुद्र के होयसल वंश के शासक ( 1311ई. )- यहाँ का शासक बल्लादेव तृतीय था। काफूर ने बल्लादेव को पराजित किया और दिल्ली भेजा। अलाउद्दीन ने बल्लादेव से मित्रता स्थापित करी, उसे 10 लाख टंका उपहार तथा छत्र आदि प्रदान किये।रामचंद्रदेव के सेनापति पारसदेव ने काफूर की सहायता की थी।बल्लादेव ने काफूर को मदुरा ( तमिलनाडु ) तक पहुँचने का रास्ता बताया था।

(4.) मदुरा के पाण्डय शासक ( 1311 ई. )- मारवर्मन कुल शेखर की मृत्यु के बाद  वीर पाण्डय तथा सुंदर पाण्डय दोनों  भाइयों के बीच सत्ता प्राप्ति के लिए  युद्ध चल रहा था। इसी समय काफूर ने आक्रमण कर दिया तथा दोनों भाई राजधानी छोङकर भाग गये।

अमीर खुसरो के अनुसार काफूर ने रामेश्वरम्( सुदूर तमिलनाडु ) तक अभियान किया और मंदिर को नष्ट कर मंदिर बनाये। इसी अभियान में मलिक काफूर को सर्वाधिक धन की प्राप्ति हुई।

वीर पाण्डय व सुन्दर पाण्डय न तो गिरफदार हुये तथा न अधीनता स्वीकार की।

Reference : https://www.indiaolddays.com/

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