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प्रमुख बौद्ध लेखक (बौद्ध साहित्यिक)

कई लेखक ऐसे हुए हैं जिन्होंने बौद्ध धर्म के बारे में कई ग्रंथ लिखे हैं,जिनसे बौद्ध धर्म की  जानकारी प्राप्त होती है। इनसे जानकारी प्राप्त कर बौद्ध धर्म को जानने में काफी हद तक सहायता मिलती हैं।

कई महत्वपूर्ण लेखक तथा उनकी लिखि गई रचनाएँ निम्नलिखित हैं-

अश्वघोष -यह एक बौद्ध लेखक था

अश्वघोष कनिष्क का दरबारी तथा  सातवाहन शासक यज्ञश्री शातकर्णी का समकालीन था।

अश्वघोष अयोध्या का निवासी था।  इसको  मगध पर आक्रमण करके कनिष्क अपने दरबार में  लाया था।

अश्वघोष की रचनाएँ-

  • बुद्ध चरित- इस ग्रंथ में 97 सर्गों(अध्याय) में बुद्ध की जीवन गाथा है। इसमें महात्मा बुद्ध के जीवन के बारे में बताया गया है।
  • सौंदरानंद – इस ग्रंथ में18 सर्गों(अध्याय) में बुद्ध के चचेरे भाई सौंदरानंद के बौद्ध संघ में प्रवेश लेने का उल्लेख है।
  • शारिपुत्र प्रकरण- इसके 8 सर्गों(अध्याय) में लिखित बुद्ध के शिष्य शारिपुत्र के बौद्ध धर्म में दीक्षा लेने का वर्णन मिलता है। यह ग्रंथ मध्य एशिया से प्राप्त हुआ तथा भारतीय साहित्य का प्रथम अधूरा नाटक है।
  • सबसे प्राचीन जो  पूर्ण नाटक है, वह नाटक है भास द्वारा रचित वासवदत्ता। 

बुद्धघोष की रचनाएँ-

बौद्ध ग्रंथों का सबसे बङा टीकाकार बुद्धघोष को माना जाता है। इसके द्वारा लिखित ग्रंथ विशुद्धिमग्ग है।

  • विशुद्धिमग्ग – यह ग्रंथ हीनयान शाखा का है।

नागार्जुन की रचनाएँ –

नागार्जुन को भारत का आंइस्टीन कहा जाता है।

नागार्जुन द्वारा रचित रचनाएँ-

  • माध्यमिक कारिका
  • प्रज्ञापारमिता

असंग की रचनाएँ-

असंग की रचनाएँ महायान शाखा से संबंधित हैं।जो निम्नलिखित हैं-

  • सूत्रालंकार
  • लंकावतार सूत्र

वसुबंधु की रचनाएँ-

  • प्रमाण समुच्चय
  • आलंबन परीक्षा

चंद्रगोमित की रचनाएँ-

  • शिक्षा समुच्चय

धर्मकीर्ती –

यह लेखक 7वी. शता. के थे। धर्मकीर्ती नामक लेखक  महायान शाखा से संबंधित भिक्षु थे,जिसे भारत का काण्ट कहा गया है।

अन्य ग्रंथ जो बौद्ध धर्म में अपना महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं।
  • दिव्यावदान –

यह ग्रंथ हीनयान तथा महायान दोनों शाखाओं से संबंधित है। इसमें बौद्ध कथाओं का संग्रह है। इसकी आधी कथाएँ विनय पिटक से तथा बाकि की आधी कथाएँ सूत्रालंकार से ली गई हैं।

  • ललित विस्तार –

यह ग्रंथ महायान शाखा से संबंधित है। इसमें महात्मा बुद्ध की लीलाओं का वर्णन किया गया है। इसकी रचना किसी एक व्यक्ति ने नहीं की बल्कि कई व्यक्तियों ने मिलकर की थी।

Reference : https://www.indiaolddays.com/

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