प्राचीन भारतइतिहाससातवाहन वंश

सातवाहन साम्राज्य का विनाश कैसे हुआ?

यज्ञश्री की मृत्यु के बाद सातवाहन साम्राज्य के विघटन की प्रक्रिया आरंभ हुई। यह अनेक छोटे-2 राज्यों में विभाजित हो गया। पुराणों में यज्ञश्री के बाद शासन करने वाले विजय, चंद्रश्री तथा पुलोमा के नाम मिलते हैं, परंतु उनमें से कोई इतना योग्य नहीं था, कि वह विघटन की शक्तियों को रोक सके।

सातवाहन वंश का अंतिम शासक यज्ञश्री शातकर्णी

दक्षिण-पश्चिम में सातवाहनों के बाद आभीर, आंध्रप्रदेश में ईक्ष्वाकु तथा कुंतल में चुटुशातकर्णी वंशों ने अपनी स्वतंत्र सत्ता स्थापित कर ली।

इन शक्तियों का विवरण निम्नलिखित है-

आभीर-

इस वंश का संस्थापक ईश्वरसेन था, जिसने 248 -49 ईस्वी के लगभग कलचुरिचेदि संवत् की स्थापना की। इसके पिता का नाम शिवदत्त मिलता है, नासिक में उसके शासनकाल के 9 वें वर्ष का एक लेख प्राप्त हुआ है। यह इस बात का सूचक है कि नासिक क्षेत्र के ऊपर उसका अधिकार था। अपरांत तथा लाट प्रदेश पर भी उसका प्रभाव था, क्योंकि यहाँ कलचुरि – चेदि संवत् का प्रचलन मिलता है। आभीरों का शासन चौंथी शती. तक चलता रहा।

ईक्ष्वाकु –

इस वंश के लोग कृष्णा-गुण्टूर क्षेत्र में शासन करते थे। पुराणों में उन्हें श्रीपर्वतीय (श्रीपर्वत का शासक)तथा आंध्रभृत्य (आंध्रों का नौकर) कहा गया है। पहले वे सातवाहनों के सामंत थे, किन्तु उनके पतन के बाद उन्होंने अपनी स्वतंत्रता घोषित कर दी। इस वंश का संस्थापक श्रीशांतमूल था। अपनी स्वतंत्र सत्ता स्थापित करने के उपलक्ष में उसने अश्वमेघ यज्ञ किया। वह वैदिक धर्म का अनुयायी था। उसका पुत्र तथा उत्तराधिकारी माठरीपुत्र वीरपुरुषदत्त हुआ। जिसने 20 वर्ष तक राज्य किया।

वैदिक धर्म

अमरावती तथा नागार्जुनीकोंड से उसके लेख मिलते हैं। इनमें बौद्ध संस्थाओं को दिये जाने वाले दान का विवरण मिलता है।

वीरपुरुषदत्त का पुत्र तथा उत्तराधिकारी शांतमूल द्वितीय हुआ, जिसने लगभग ग्यारह वर्षों तक राज्य किया। उसके बाद ईक्ष्वाकु वंश की स्वतंत्र सत्ता का क्रमशः लोप हुआ। इस वंश के राजाओं ने आंध्र की निचली कृष्णा घाटी में तृतीय शता. के अंत तक शासन किया। तत्पश्चात् उनका राज्य काच्ची के पल्लवों के अधिकार में चला गया। ईक्ष्वाकु वंश के लोग बौद्ध मत के पोषक थे।

चुटुशातकर्णी वंश-

महाराष्ट्र तथा कुन्तल प्रदेश के ऊपर 3 सदी. में चटुशातकर्णी वंश का शासन स्थापित हुआ। उनके शासन का अंत कदंबों द्वारा किया गया।

Reference : https://www.indiaolddays.com/

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