इतिहासदिल्ली सल्तनतमध्यकालीन भारत

दिल्ली सल्तनत में न्याय व्यवस्था कैसी थी?

दिल्ली सल्तनत में न्याय व्यवस्था – न्याय और शासन व्यवस्था के क्षेत्र में भी इल्तुतमिश ने महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। न्याय के लिये उसने राजधानी तथा सभी प्रमुख नगरों में काजी तथा अमीरेदाद नियुक्त किए। इनके निर्णयों के विरुद्ध लोग प्रधान काजी की अदालत में अपने मुकद्दमे पेश करते थे। सुल्तान न्याय का स्त्रोत माना जाता था। अंतिम फैसला उसी के द्वारा किया जाता था। न्याय शासन में सुल्तान सर्वोपरि था। इल्तुतमिश की न्याय व्यवस्था के संबंध में इब्नबतूता लिखता है, कि सुल्तान के महल के सम्मुख संगमरमर के दो सिंह बने हुए थे, जिनके गले में घंटियाँ लटकी हुई थी। पीङित व्यक्ति इन घंटियों को बजाता था। उसकी फरियाद सुनकर तुरंत न्याय की व्यवस्था की जाती थी। न्याय विभाग प्रारंभ से ही केंद्रीय विभाग था। सुल्तान ही विभिन्न प्रांतों में काजी-उल-कुजात की सिफारिश से काजियों की नियुक्ति करता था। मुख्य नगरों के अमीर-ए-दारद को भी वही नियुक्त करता या पदच्युत करता था। उनका तबादला भी सुल्तान ही करता था। सुल्तान के बाद काजी-उल-कुजात ही सर्वोच्च न्याय अधिकारी था। इल्तुतमिश ने अनेक हिंदू सरदारों को अपने क्षेत्रों पर राज्य करने का अधिकार दिया था, जहाँ की न्याय व्यवस्था में हस्तक्षेप नहीं किया गया। गाँवों में पंचायत उन मामलों पर निर्णय करती थी जो केवल हिंदुओं के विवादों से उत्पन्न होते हों। जहाँ पर हिंदू और मुस्लिम के बीच विवाद होता था वह मामला काजी द्वारा सुलझाया जाता था।

Related Articles

error: Content is protected !!