इतिहासराजस्थान का इतिहास

गुहिल कौन थे

गुहिल

गुहिल – गुहिलों का अभ्युदय

राजस्थान के इतिहास में गुहिलवंशीय राजपूतों का स्थान अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। प्राचीन राजस्थान के इतिहास में गुप्त शासकों की केन्द्रीय शक्ति के क्षीण हो जाने के बाद कुछ समय के लिये राजस्थान पर हूणों का दबदबा बना रहा। उनके बाद राजस्थान के अलग-अलग क्षेत्रों में राजपूतों के विभिन्न राजवंशों ने अपने-अपने राज्य स्थापित किये।

इन राजपूत राजवंशों में गुहिल राजवंश का एक स्वतंत्र स्थान है। इस वंश के लिये गुहिलोत, गोहिल्य, गोमिल आदि शब्दों का प्रयोग किया जाता रहा है। वास्तव में राजस्थान के इतिहास को गौरवपूर्ण बनाने का श्रेय मेवाङ के इस गुहिल वंश को ही जाता है। मेवाङ की पहले राजधानी नागदा थी। कालांतर में नागदा ही चित्तौङ कहलाने लगा।

इस वंश के प्रमुख नेता गुह ने अपने राज्य की स्थापना दक्षिण-पश्चिमी राजस्थान में की और यहीं से इस गुहिल वंश की अन्य शाखाएँ राजस्थान के विभिन्न भागों में फैल गयी थी।

गुहिल

गुहिलों की उत्पत्ति

गुहिल वंश की उत्पत्ति और उसके आदि निवास स्थान के बारे में विद्वानों में काफी मतभेद हैं। अबुल फजल के अनुसार गुहिल ईरान के बादशाह नौशेरवाँ आदिल के वंशज हैं। बाद के मुस्लिम इतिहासकारों ने भी अबुल फजल को आधार मानते हुये उन्हें ईरान के बादशाह का वंशज बता दिया है अर्थात् गुहिलों को विदेशियों की सन्तान बता दिया है, जो किसी भी विद्वान को मान्य नहीं है।

कर्नल जेम्स टॉड ने राजपूतों को विदेशियों की संतान बताया है और जैन ग्रन्थों के आधार पर गुहिलों को वल्लभी के राजा शिलादित्य का वंशज बताया है। टॉड के विवरणानुसार वल्लभी राज्य पर शिलादित्य शासन करता था। 524 ई. में विदेशियों ने उसके राज्य पर आक्रमण किया।

भयंकर संघर्ष में शिलादित्य अपने परिवार के सभी सदस्यों के साथ मारा गया। केवल उसकी पत्नी पुष्पावती बच गई। वह गर्भवती थी और वल्लभी पर विदेशियों के आक्रमण के पूर्व अम्बाभवानी की तार्थ यात्रा पर गई हुई थी। उसी रानी ने गोह (गुहदत्त) को जिन्म दिया, जो आगे चलकर मेवाङ का स्वामी बना।

इतिहासकार स्मिथ भी गुहिलों को विदेशियों की संतान मानते हैं। वे राजपूतों को हूणों से संबंधित मानते हैं, जो पाँचवी और छठी शताब्दियों में भारत में बस गये थे। और यहाँ के प्राचीन क्षत्रियों में घुल-मिल गये थे। वीर-विनोद के लेखक कविराजा श्यामलदास यह तो मानते हैं कि गुहिलों का आदि निवास स्थान वल्लभी रहा, परंतु वे गुहिलों को विदेशियों की संतान नहीं मानते।

उनका कहना है कि वल्लभी के राजवंश का ही एक व्यक्ति गुहिल अथवा गुहदत्त आनंदपुर से मेवाङ आया था। उनके मतानुसार गुहिल क्षत्रियों के छत्तीस राजवंशों में से एक था। डॉ.ओझा ने ठोस तर्कों के आधार पर अबुल फजल, कर्नल टॉड और स्मिथ के मतों का खंडन करते हुये गुहिलों को विशुद्ध सूर्यवंशी राजपूत बतलाया है।

अपने मत की पुष्टि में उन्होंने बापा रावल के सिक्के तथा कुछ प्राचीन शिलालेखों का हवाला दिया है।

डॉ.डी.आर.भंडारकर ने गुहिलों को नागर ब्राह्मणों की संतान कहा है। अपने मत की पुष्टि में वे भी कई शलिलेखों तथा एकलिंग माहात्म्य का हवाला देते हैं, जिनमें गुहिलों के लिये विप्र, ब्राह्मणों के कुल को आनंद देने वाला आदि शब्दों का प्रयोग किया गया है। नैणसी ने गुहिलों को आदिरूप से ब्राह्मण तथा जानकारी से क्षत्रिय बतलाया है।

परंतु डॉ.ओझा ने इन मतों का जोरदार खंडन किया है। उनके अनुसार इन शब्दों का अर्थ ब्राह्मणों तथा ब्राह्मण धर्म की रक्षा के संदर्भ में लिया जाना चाहिये। डॉ. गोपीनाथ शर्मा ने व्यक्तिगत अनुसन्धान के बाद गुहिलों का ब्राह्मणवंशीय माना है।उनका मानना है कि महाराणा कुम्भ ने बङी छान-बीन के बाद अपने वंश के संबंध में स्पष्ट रूप से ब्राह्मणवंशीय होना अंकित करवाया था। वे लिखते हैं।

प्राचीन भारतीय शासक वंशों में कण्व, शुंग आदि वंश ब्राह्मणवंशीय थे, तो नागदा के गुहिलों का ब्राह्मणवंशीय होना कोई आश्चर्य की बात नहीं है। … यह भी एक बङे महत्त्व की बात है कि बारहवीं शताब्दी के पहले के किसी लेखक ने स्पष्ट रूप से गुहिलों को सूर्यवंशी नहीं लिखा है। सूर्यवंशी या क्षत्रिय लिखने की परिपाटी चित्तौङ के 1278 ई. के लेख के आस-पास अपनाई गई प्रतीत होती है।

वस्तुतः गुहिलों के आदि निवास स्थान तथा उनकी उत्पत्ति के विषय में अभी निश्चित रूप से कहना संभव नहीं है और इस विषय पर अधिक अनुसंधान की आवश्यकता है।

राजस्थान में गुहिलों की शाखाएँ

यह तो अनुमान लगाया जा सकता है कि शुरू में गुहिल लोग मेवाङ क्षेत्र में आकर बस गये थे। मेवाङ में शक्तिशाली बनने के बाद इस वंश के अन्य साहसी एवं महत्त्वाकांक्षी व्यक्तियों ने राजस्थान के अन्य क्षेत्रों में अपने-अपने राज्य स्थापित करने का प्रयास किया और उनमें से कुछ सफल भी रहे।

चूँकि मेवाङ का गुहिल वंश इनमें सबसे अधिक शक्तिशाली एवं प्रतिष्ठावान था, अतः इस वंश के नवोदित शासकों ने भी अपने-अपने वंश को गुहिल से आरंभ करना सम्मानजनक समझा। शिलालेखों एवं ताम्रपत्रों में गुहिल की 24 शाखाओं का उल्लेख किया गया है।

टॉड भी 24 शाखाओं का उल्लेख करता है, यद्यपि उसके नाम नैणसी के नामों से पूरी तरह से मेल नहीं खाते। इन 24 शाखाओं में कल्याणपुर के गुहिल, बागङ के गुहिल, चाटसू के गुहिल, मारवाङ के गुहिल, धोङ के गुहिल, काठियावाङ के गुहिल और मेवाङ के गुहिल अधिक प्रसिद्ध रहे।

कल्याणपुर के गुहिलों के बारे में अधिक जानकारी नहीं मिलती। चाटसू के गुहिलों ने लंबे समय तक शासन किया और इस वंश के शासकों को गौङों को परास्त करने, अरबों की प्रगति को रोकने तथा प्रतिहारों को सहयोग देने और बाद में मालवा के एक क्षेत्र को अधिकृत करने का गौरव मिला।

बाद में चाटसू के गुहिलों ने चौहानों की अधीनता स्वीकार कर ली और मालवा क्षेत्र के गुहिल कुमारपाल सोलंकी के सामन्त बन गये। कुमारपाल के सामन्त की हैसियत से विजयपाल गुहिल ने बागङ के कुछ भाग पर अधिकार जमा लिया। परंतु इसके बाद बागङ के लिये विभिन्न वंशों में संघर्ष जारी रहा और बारहवीं सदी के मध्य में मेवाङ के गुहिलों की सहायता से आहङा गुहिलों ने इस क्षेत्र को अपने अधिकार में ले लिया।

धोङ (जहाजपुर के निकट) के गुहिल स्वतंत्र शासक के रूप में सफल नहीं हो पाये और उन्हें अन्य राजवंश का सामन्त बन कर रहना पङा। मारवाङ में बसे गुहिल भी लंबे समय तक अपनी स्वतंत्रता को कायम नहीं रख पाये और चौदहवीं सदी में उन्हें परास्त होकर राठौङों का प्रभुत्व स्वीकार करना पङा।

References :
1. पुस्तक - राजस्थान का इतिहास, लेखक- शर्मा व्यास
Online References
wikipedia : गुहिल कौन थे

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